Move to Jagran APP

आप भी जानिए चीन से लगती सीमा पर बसे भारतीय गांवों का कैसा है हाल

चीन से लगती भारतीय सीमा पर स्थित गांवों की हालत बहुत बेहतर नहीं है। उत्तर से लेकर पूर्व तक की बात करें तो कहीं फोन की सुविधा नहीं है तो कहीं अब भी सड़क नहीं पहुंची है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 30 Jul 2018 01:51 PM (IST)Updated: Mon, 30 Jul 2018 09:07 PM (IST)
आप भी जानिए चीन से लगती सीमा पर बसे भारतीय गांवों का कैसा है हाल
आप भी जानिए चीन से लगती सीमा पर बसे भारतीय गांवों का कैसा है हाल

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। भारत और चीन के रिश्‍ते कभी किसी से अछूते नहीं रहे हैं। दोनों देश एक दूसरे को काफी अहम मानते हैं, लेकिन इसके बाद भी दोनों के बीच सीमा विवाद को लेकर हमेशा तनाव बना रहता है। डोकलाम विवाद को अभी ज्‍यादा समय नहीं बीता है। लेकिन इसके बाद भी भारतीय सीमा के आखिरी गांवों का हाल बेहद बुरा रहै। सामरिक दृष्टि से अहम इलाका होने के बावजूद ये गांव अब भी कई तरह की सुविधाओं से वंचित हैं। कहीं पर सही मायने में सड़कें तक नहीं पहुंची हैं तो कहीं पर आज भी संचार का माध्‍यम नहीं है। यह सुनकर पहली बार में हैरानी जरूर होती है लेकिन यह झूठ नहीं है। हिमाचल, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के गांव इसी तरह की कहानी बयां कर रहे हैं। मणिपुर के सेनापति जिले के लीसांग भारतीय सीमा का आखिरी गांव है। देश की आजादी के बाद इस गांव में इसी वर्ष बिजली पहुंचाई गई है।

loksabha election banner

डिजिटल क्रांति के दौर में एक ऐसा भी गांव
भारत डिजिटल क्रांति के नारे को एक दशक पूरा होने को है, लेकिन इस क्रांति की किरण भारत के सीमांत गांवों तक नहीं पहुंच पाई है। उत्तराखंड के सीमांत जनपद पिथौरागढ़ की धारचूला, मुनस्यारी और डीडीहाट तहसीलों के कई गांव आज भी संचार सुविधा से वंचित हैं। भारत-चीन सीमा पर बसे भारतीय गांवों के हजारों लोगों के यह क्रांति आज भी एक सपना जैसा ही है। यहां के लोगों को आज भी संचार की सुविधा उपलब्ध नहीं है। मजबूर भारतीय दूसरे देशों की संचार सेवा से अपना काम चला रहे हैं, इसके लिए उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। हालांकि सीमा पर टावर लगने की घोषणाएं घत 14 साल से हो रही हैं, लेकिन घोषणाओं को आज तक अमली जामा नहीं पहनाया जा सका है। डिजिटल क्रांति के इस दौर में चीन की सीमा से सटे गांव कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं।

यहां के लोग हैं मजबूर
आलम ये है कि कैलास मानसरोवर यात्रा या फिर भारत चीन व्यापार के दौरान सेटेलाइट फोन और वायरलेस सेट लगाकर यात्रियों और व्यापारियों को अपने घरों तक सूचना देने की व्यवस्था की जाती है। इस दौरान स्थानीय लोगों को भी इन सुविधाओं का लाभ मिल जाता है, लेकिन यात्रा और व्यापार खत्म होते ही ये सुविधाएं समेट ली जाती हैं। समान भौगोलिक परिस्थिति वाले पड़ोसी देश नेपाल ने इस क्षेत्र में दो-दो संचार कंपनियों की सुविधाएं उपभोक्ताओं को उपलब्ध करा रखी हैं। इनके सिग्नल भारतीय क्षेत्र में भी बढ़िया काम करते हैं। मजबूर भारतीय नेपाली संचार सुविधा का उपयोग करते हैं, लेकिन सेवाएं महंगी होने के कारण इनका उपयोग भी सीमित ही है। भारत में कई ऐसे क्षेत्र में जहां नेपाली संचार सेवा भी काम नहीं करती है। संचार सेवाओं की कमी सबसे अधिक आपदा काल में परेशान करती है।

चमोली का माणा गांव
चमोली जिले में स्थित माणा गांव सीमा के करीब आखिरी गांव है। चमोली जिले से तिब्बत जाने के लिए 3 दर्रे हैं, नीती, माना और बड़ाहोती के आगे तुन झीन ला। 1962 की जंग से पहले ये भारत और तिब्बत के बीच का कारोबार का रास्ता था। माणा में सेना और आईटीबीपी की यूनिट तैनात है जबकि माणा से आगे 40 से 50 किलोमीटर आईटीबीपी की फॉरवर्ड पोस्ट है। 

अरुणाचल प्रदेश का आखिरी गांव
छागलागाम गांव अरुणाचल प्रदेश में चीन की सीमा से लगता आखिरी गांव है। पहाड़ों और छोटे बड़े झरनों के बीच से होकर एक बेहद संकरा रास्‍ता यहां तक जाता है। छागलागाम में रहने वाले 50 परिवारों कमाई का ज़रिया इलाइची की खेती है। यहां पर रहने वाले मिश्मी जनजाति के हैं जिनके कई अपने सीमा पार चीन में रहते हैं। लेकिन यहां पर भी न टीवी है और न ही मोबाइल टावर। राशन खरीदने के लिए सबसे नजदीक जगह भी पूरे पांच घंटे दूर है। यहां के लोगों को चिकित्‍सा सुविधा की बात करें तो सबसे नजदीकी अस्‍पताल भी करीब पांच घंटे की दूरी पर मौजूद है। यहां के स्‍थानीय लोगों का यहां तक कहना है कि उन्‍होंने कई बार चीनी सैनिकों को अपने इलाके में घूमते हुए देखा है। हालांकि इस गांव का हाल भी कमोबेश सीमा से सटे दूसरे गांवों की ही तरह है। स्‍थानीय लोगों का यह भी कहना है कि चीन ने अपनी सीमा में बसे गांवों में लोगों को कई तरह की सुविधाएं दे रखी हैं, जो फिलहाल यहां पर नहीं हैं।

क्‍या कहते हैं पूर्व सेनाध्‍यक्ष
आपको बता दें कि 1962 में चीन और भारत के बीच युद्ध हो चुका है। सीमा से लगती परेशानियों को दूर करने के लिए एक बार पूर्व सेनाध्‍यक्ष वीपी मलिक ने यहां तक कहा था कि चीन से लगती सीमा पर लाइन ऑफ एक्‍चुअल कंट्रोल को नक्‍शे पर निर्धारित किया जाना चाहिए। इसका सबसे बड़ा फायदा तो यही होगा कि लोगों को यह पता चल जाएगा कि वह किस इलाके में हैं। हालांकि उनका यह भी कहना है कि चीन की वजह से यह अब तक नहीं हो पाया है। इसी वजह से चीनी सैनिक इस इलाके में दिखाई दे जाते हैं।

सिक्किम में भारतीय सीमा का आखिरी गांव
सिक्किम में गंगटोक से करीब 68 किमी दूर पूर्व की ओर कुप्‍पुप गांव पड़ता है। यह इस राज्‍य में सीमा के करीब आखिरी गांव है जो करीब 13,900 फीट की उंचाई पर स्थित है। इस गांव में करीब 200 घर हैं। यहां तक पहुंचना बेहद मुश्किल है। बर्फबारी के दौरान तो यह इलाका काफी हद तक कट जाता है। पिछले वर्ष डोकलाम को लेकर जो विवाद भारत और चीन के बीच गहराया था वह इस गांव से महज सात किमी की दूरी पर है। कुप्पुप गांव से नाथुला बॉर्डर पास तक का 7 किमी का यह क्षेत्र सुरक्षा की दृष्टि से काफी संवेदनशील है।

हिमाचल प्रदेश में भारतीय सीमा का आखिरी गांव
हिमाचल प्रदेश में चीन से लगती सीमा पर आखिरी गांव डोगरी, कौरिक, चारंग और छितकुल हैं। चीन की चाल को देखते हुए सामरिक दृष्टि से अहम बने इल इलाकों में सड़क बनाने का काम लगभग अंतिम चरण में है। यहां सीमी की निगरानी आईटीबीपी के हाथों में है। हिमाचल के किन्नौर में भी केंद्र सरकार सीमा से सटे इलाकों में तीन सड़कों का निर्माण किया है। इनमें 20.750 किलोमीटर लंबी छितकुल-दुमती और 19.900 किलोमीटर लंबी थांगी-चारंग सड़क भारत के आखिरी गांव तक पहुंचा दी गई है। वहीं छितकुल-दुमती सड़क काम अब अंतिम चरण में है।

4035 किमी लंबी है भारत-चीन सीमा
आपको बता दें कि भारत के पांच राज्यों के गांवों की सीमा चीन से सटी हुई है। किलोमीटर में यदि सीमा की बात करें तो यह उत्तर से लेकर पूर्व तक करीब 4035 किमी है। यहां आपको ये भी बता दें कि पिछले वर्ष जून से लेकर अगस्‍त तक करीब 72 दिनों तक डोकलाम पर दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने थीं। डोकलाम का यह इलाका भूटान का वह विवादित क्षेत्र है जिसपर चीन अपना दावा करता आया है। यहां पर सड़क निर्माण के बाद भारत और चीन के बीच तनातनी शुरू हुई थी।

चीन की सीमा पार कोशिश
इन गांवों की समस्‍या इस लिहाज से भी काफी बड़ी है क्‍योंकि पिछले दिनों ही सुरक्षा एजेंसियों ने गृह मंत्रालय को रिपोर्ट दी है कि भारत-चीन सरहद के नजदीक चीन अपने 630 गांवों को दोबारा बसा कर उनको मजबूत करने में लगा हुआ है। रिपोर्ट मुताबिक, चीन सरहद के जिन 630 गांव को दोबारा से बसा रहा है उन गांवों में आधुनिक व्यवस्था दे रहा है। इसके अलावा इन इलाकों में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी अपनी डिफेंस पोस्ट भी मजबूत कर रहा है।

तिब्‍बत के लिए मास्‍टर प्‍लान
चीन ने सरहद के नजदीक मौजूद अपने इन सभी गांव को 2020 तक तिब्बत में मौजूद शहरों से हाईवे के जरिए जोड़ने का प्लान तैयार किया है। सूत्रों के मुताबिक, चीन इस तरीके से भारत के सरहद के नज़दीक अपने गांव में स्ट्रैटिजिक पोजीशन को देखते हुए उनका विकास कर रहा है। साथ ही यहां पर अपने डिफेंस सिस्टम को मजबूत करने के लिए इन गांवों का आधुनिकीकरण कर रहा है।

जरा संभलकर! रिसर्च रोबोट को एक कमांड देकर आपका सारा डाटा चुरा सकते हैं हैकर्स
हत्‍या के दोषी ये कैदी अब अपनी भूल सुधार कर दूसरों का भर रहे हैं पेट, ये है प्रायश्चित


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.