हत्या के दोषी ये कैदी अब अपनी भूल सुधार कर दूसरों का भर रहे हैं पेट, ये है प्रायश्चित
हत्या के जुर्म में सजा काट रहे कैदी हर रोज अपने बनाए खाने को बेहद सस्ती कीमत पर बेचकर अपना प्रायश्चित कर रहे हैं। इनके खाने से जरूरतमंद अपना पेट भरते हैं।
शिमला (जागरण स्पेशल)। कैदियों को जेल की सलाखों के पीछे सजा भुगतनी पड़ती है। लेकिन हिमाचल प्रदेश में जेल प्रबंधन की कोशिश से अब कैदी अपनी गलती सुधार कर समाज में सहयोग कर रहे हैं। हिमाचल के सबसे बड़े अस्पताल इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (आइजीएमसी) शिमला के बाहर सड़क किनारे खड़ी एक वैन के पास हर दिन भीड़ लगी होगी है। इस वैन में राजमा, कढ़ी व चावल मिलते हैं। यहां ताजा व सस्ते दाम पर लोगों को खाना मिलता है। हॉफ प्लेट 25 रुपये व फुल प्लेट खाने के लिए 50 रुपये चुकाने होते हैं। असल में इस खाने को हत्या के जुर्म में सजा काट रहे कैदी बनाते हैं। इन कैदियों ने जिंदगी में की गई गलती से सबक लेकर खुद में सुधार किया है। अब ये लोग नई जिंदगी शुरू करने के सपने देख रहे हैं। हालांकि कैदियों का यह काम करना आसान भी नहीं था। उन्हें यहां तक पहुंचाने में मदद की हिमाचल जेल प्रशासन की मुहिम 'हर हाथ को काम' ने, जिससे उन्हें रोजगार भी मिला है।
ताजा खाना मिलता है यहां
कैदी ताजा, सस्ता व स्वादिष्ट खाना खिलाते हैं। यहां ज्यादातर शिमला मेडिकल कॉलेज में आए मरीजों के तीमारदार खाना खाते हैं। इसके अलावा सड़क से गुजर रहे दूसरे लोग भी खाना खाने पहुंच जाते हैं। जिनको पता है कि यहां ताजा खाना मिलता है, वे लोग भी आते रहते हैं। चौपाल की अंजना कुमारी, सुन्नी की सुनीता देवी, कांगड़ा के ज्ञान सिंह व बड़सर के ह्रïदय राम का कहना है कि शिमला में बाहर ताजा खाना बड़ी मुश्किल से मिलता है, लेकिन कैदी हर दिन ताजा व सस्ता खाना लोगों को खिला रहे हैं।
व्यवहार से होता है चयन
ऐसा नहीं है कि किसी भी कैदी को इस काम के लिए चुना जाता है। इसके लिए लंबी प्रकिया है। कैदियों की पृष्ठभूमि और व्यवहार के विस्तृत अध्ययन के बाद इस मुहिम के लिए चयन होता है। लोगों के बीच आने के बाद कोई भाग गया तो पकड़े जाने के बाद जिंदगी भर जेल में रहने की सजा सुनाई जाती है। इस सबके बीच जेल प्रशासन की यह मुहिम सच में तारीफ के काबिल है।
150 कैदियों की सुधर रही जिंदगी
कहते हैं इन्सान गलतियों का पुतला होता है। जिंदगी इतनी खुबसूरत है कि बड़ी से बड़ी गलती करने वाले को भी सुधरने का मौका देती है। जरूरत होती है इच्छाशक्ति व सही रास्ता दिखाने वाले की। कुछ ऐसा ही कर रहा है हिमाचल का जेल प्रशासन जो ऐसी मुहिम चला रहा है जिससे उम्रकैद की सजा काट रहे 150 कैदियों की अंधेरी जिंदगी में उजाले की नई किरण दिखी है। इससे इन कैदियों की जिंदगी सुधर रही है।
पत्नी की हत्या में कैद भूपिंदर, गलती का मलाल
46 वर्षीय भूपिंदर सोलन से हैं। पत्नी की हत्या के जुर्म में 18 साल से सजा काट रहे हैं मगर अपनी गलती का मलाल है। वह कहते हैं कि सुधार कर रहे हैं। जेल की ऊंची दीवारों और सलाखों के बीच कई साल तक आत्ममंथन किया। फैसला किया कि खुद को बदलना व सुधरना है। भूपिंदर ने अब मानवता की सेवा करने का निर्णय लिया है। वह हर रोज सुबह उठकर आइजीएमसी पहुंच कर खाना बनाते हैं। हर आने-जाने वाले को खाना खिलाते हैं। इससे न केवल अपने गुनाहों का प्रायश्चित कर रहे हैं बल्कि कुछ पैसे भी जोड़ लेते हैं। इसके अलावा लोगों को सबक भी दे रहे हैं।
जेल में तैयार किए बिस्किट बेचते हैं रामलाल
रामपुर के रहने वाले 60 वर्षीय रामलाल भी अपनी पत्नी की हत्या के दोष में 19 साल से सजायाफ्ता हैं। रामलाल की पत्नी ने उससे तंग आकर खुद पर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा ली थी। 19 साल के इस लंबे दौर ने रामलाल को भी झकझोर कर रख दिया। रामलाल ने भी भूपिंदर की ही तरह सबक लिया। वह दो साल से मोबाइल कैंटीन के साथ जुड़े। जेल में तैयार किए गए बिस्किट बेचते हैं। अब रामलाल की सजा पूरी होने वाली है। जेल से निकलने के बाद रामलाल अच्छा आदमी बनकर परिवार के साथ रहना चाहते हैं। रामलाल की ख्वाहिश है कि वह अपने गांव जाकर छोटी-मोटी दुकान कर लोगों को जुर्म के रास्ते पर न चलने के लिए प्रेरित करेंगे।
टका बैंच के पास बुक कैफे चलाते हैं कैदी
इससे पहले शिमला के ऐतिहासिक रिज मैदान के ठीक ऊपर टका बैंच पर बुक कैफे खुला है। वहां पर भी हत्या के दोषी दो कैदी सेवाएं दे रहे हैं। चौपाल के रहने वाले 37 वर्षीय कुलदीप पर हत्या का दोष है। वह 18 साल से कैद में है। उनके साथ हमीरपुर का जयचंद भी पत्नी की हत्या का गुनहगार है। वह नौ साल से जेल में है। अब यह दोनों भी सुधर रहे हैं।
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