भारतीय राजनीति का केंद्र बिंदु बने ज्योतिरादित्य हैं भविष्य का चमकदार सितारा, डालें एक नजर
2002 के लोकसभा चुनाव में जीतकर ज्योतिरादित्य देश की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचे थे। ये जीत उन्हें साढ़े चार लाख मतों से मिली थी।
नई दिल्ली (विकास तिवारी)। मध्य प्रदेश में महाराज के नाम से विख्यात ग्वालियर राजघराने के ज्योतिरादित्य सिंधिया इन दिनों भारतीय राजनीति के केंद्र-बिंदु हैं। विमान हादसे में पिता माधवराव की मौत के बाद सियासी मैदान में उतरे ज्योतिरादित्य कुछ ही वषों में राजनीति का चमकदार सितारा बन गए। देश और राज्य की सियासत में समान रूप से प्रभावी दखल रखने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य ने उपेक्षा के चलते आखिरकार कांग्रेस से 18 वर्ष पुरानी दोस्ती तोड़ते हुए अपने हाथों में कमल को थाम लिया। अब वह उस पार्टी (भाजपा) के झंडे तले सियासत करेंगे, जिसकी संस्थापक उनकी दादी विजयाराजे भी थीं।
उनकी यह राजनीतिक पारी किस तरह की होगी, इसके लिए हमें इंतजार करना होगा। राजसी वैभव के बीच एक जनवरी 1971 को बांबे (अब मुंबई) में जन्मे ज्योतिरादित्य सिंधिया का बचपन ग्वालियर के जय विलास पैलेस में बीता। इसके बाद उन्होंने कैंपियन और दून स्कूल में शिक्षा हासिल की। 1993 में हार्वर्ड कॉलेज से स्नातक किया। माधवराव सिंधिया और माधवी राजे के पुत्र ज्योतिरादित्य 1994 में गुजरात के गायकवाड़ राजघराने की बेटी प्रियदर्शनी के साथ विवाह बंधन में बंध गए। 2001 में उन्होंने स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी से एमबीए की डिग्री ली। 30 सितंबर 2001 को उत्तर प्रदेश में हुए एक विमान हादसे में पिता की मौत ने उन्हें हिला कर रख दिया। उन्होंने न सिर्फ खुद को, बल्कि परिवार को भी संभाला।
2002 में पिता के निधन से रिक्त हुई गुना संसदीय सीट के उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में सियासी पारी शुरू की। साढ़े चार लाख वोटों के अंतर से जीत हासिल कर महाराज देश की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंच गए। 2004 में वह गुना से ही 14वीं लोक सभा के लिए चुने गए। मोहक मुस्कान, विनम्र वाणी के साथ ही यह ज्योतिरादित्य की सियासी दक्षता ही थी कि 2008 में वह कई बड़े और कद्दावर नामों को पछाड़ कर न सिर्फ मंत्रिमंडल में शामिल हुए, बल्कि संचार और सूचना प्रौद्योगिकी जैसे अहम मंत्रलय के राज्य मंत्री बने। इसके बाद वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री बने। 2012 में ऊर्जा राज्य मंत्री का प्रभार मिला। वर्ष 2019 के चुनाव में ज्योतिरादित्य को गुना में हार का सामना करना पड़ा।
कहा जाता है कि माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस से किसी पद की डिमांड नहीं की, जबकि वह मप्र के मुख्यमंत्री बन सकते थे। ज्योतिरादित्य ने उपेक्षा होने पर न केवल खुद कमल थामा, बल्कि कांग्रेस के अन्य विधायकों को इस्तीफा दिलवाकर कमलनाथ सरकार को भी शायद अल्पमत में ला दिया है।गांधी परिवार से नजदीकियां : गांधी परिवार से दशकों पुराने रिश्ते होने के साथ ही ज्योतिरादित्य राहुल गांधी के करीबी मित्रों में रहे। उन्होंने विभिन्न पदों पर रहते हुए लगन के साथ पार्टी को मजबूत करने का काम किया। संसद में भी विभिन्न विषयों पर चर्चा के दौरान वह प्रखर वक्ता रहे। उन्होंने कई मौकों पर गांधी परिवार और कांग्रेस पार्टी की ढाल के रूप में काम किया। वह पार्टी के स्टार कैंपेनरों में एक रहे।
मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें प्रचार समिति का मुखिया बनाया। एक तरह से उनके चेहरे को आगे करके मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को चुनौती दी। यह महाराज की ही मेहनत का नतीजा था कि राज्य में मृतप्राय: हो चुकी कांग्रेस न सिर्फ बहुमत के करीब पहुंची बल्कि सत्ता पर भी काबिज हुई। पार्टी की आंतरिक राजनीति और खेमेबाज नेताओं के दांवपेच के चलते कांग्रेस हाईकमान ने उनके स्थान पर कमलनाथ को मुख्यमंत्री बना दिया। हालांकि, संतुलन साधने के लिए ज्योतिरादित्य को उपमुख्यमंत्री का पद देने की बात कही गई, जिसे महाराज ने नकार दिया। प्रांतीय राजनीति में पर्याप्त तवज्जो न मिलने के कारण सिंधिया समर्थक विधायकों व नेताओं का आक्रोश बढ़ता चला गया, जिसकी नतीजा पार्टी छोड़ने के रूप में सामने आया।
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