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खुर्शीद ने कहा- सफल होने के लिए कांग्रेस को भाजपा की तरह करनी होगी सोच बड़ी, छोड़नी होगी निराशावादी सोच

कांग्रेस के मुखर नेताओं में शुमार पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा है कि अगर हमें सफल होना है तो भाजपा की तरह सोच बड़ी करनी होगी। फिर से मजबूत होने की राह में आगे बढ़ने के लिए सबसे पहले निराशावादी सोच छोड़नी होगी।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Tue, 18 May 2021 01:18 AM (IST)Updated: Tue, 18 May 2021 01:18 AM (IST)
खुर्शीद ने कहा- सफल होने के लिए कांग्रेस को भाजपा की तरह करनी होगी सोच बड़ी, छोड़नी होगी निराशावादी सोच
कांग्रेस के मुखर नेता सलमान खुर्शीद ने कहा कि निराशावादी सोच को त्यागकर आगे बढ़ना होगा।

बेंगलुरु, प्रेट्र। कांग्रेस के मुखर नेताओं में शुमार पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा है कि अगर हमें सफल होना है तो भाजपा की तरह सोच बड़ी करनी होगी। फिर से मजबूत होने की राह में आगे बढ़ने के लिए सबसे पहले निराशावादी सोच छोड़नी होगी। यह बात दिमाग से निकालनी होगी कि हमारा संगठन छोटा और कमजोर हो गया है, वह खोई ताकत फिर से प्राप्त नहीं कर सकता। खुर्शीद ने यह बात एक साक्षात्कार में कही है।

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पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा- कांग्रेस को छोटा और कमजोर नहीं समझना चाहिए

पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, हम पश्चिम बंगाल और असम को ही लें। जहां हाल ही में विधानसभा चुनाव हुए हैं। वहां भी हमें खुद को छोटा और कमजोर नहीं समझना चाहिए। अगर हमने खुद को ऐसा माना तो फिर हम कभी बड़ी ताकत नहीं बन सकेंगे।

खुर्शीद ने कहा- निराशावादी सोच छोड़कर प्रयास करने की जरूरत 

खुर्शीद ने कहा, उनका मानना है भाजपा ने यही किया। वह बड़ी सोच के साथ रणनीति बनाकर चली। यह रणनीति वहां के लिए बनाई-जहां वे थे ही नहीं। उन्होंने प्रयास किए-कई स्थानों पर उन्हें सफलता मिली। इसलिए हमें निराशावादी सोच छोड़कर प्रयास करने की जरूरत है। जब मन में आत्मविश्वास पैदा कर सही तरीके से प्रयास करेंगे तो सफलता जरूर मिलेगी।

खुर्शीद ने कहा- जिस तरह टैक्टिकल वोटिंग बंगाल में हुई वैसी असम में नहीं हुई

खुर्शीद ने कहा, हमें बंगाल के उन इलाकों में हुई चतुराई पूर्ण मतदान (टैक्टिकल वोटिंग) का विश्लेषण करने की जरूरत है। जहां पर कांग्रेस और वामपंथी गठबंधन पूरी तरह से साफ हो गया। एक विश्लेषक ने माना है कि जिस तरह की टैक्टिकल वोटिंग बंगाल में हुई वैसी असम में नहीं हुई। भविष्य में वोटिंग का अगर यही ट्रेंड बरकरार रहता है, तो हम क्या करेंगे। इसके बारे में हमें अभी से सोचना होगा। हमें अपने सहयोगी दलों के बारे में भी सोचना होगा, जिनके साथ मिलकर हम चुनाव लड़े थे। 


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