'पूरे केरल में एक स्थायी बदलाव दिख रहा है', विशेष बातचीत में बोले भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर का मानना है कि केरल में वाम का गढ़ दरकने लगा है। तिरुअनंतपुरम नगर निगम में भाजपा की जीत और कई ग्राम पंचायतों प ...और पढ़ें

राजीव चंद्रशेखर इसे स्थायी बदलाव का संकेत मानते हैं (फाइल फोटो)
आशुतोष झा। वाम का एकमात्र गढ़ केरल भी दरकने लगा है और उत्प्रेरक का काम किया है भाजपा ने। पिछले 45 वर्षों में राज्य में कई बार सत्ता आई और गई लेकिन राजधानी तिरुअनंतपुरम के नगर निगम पर माकपा का कब्जा बरकरार रहा। अब जबकि उस नगर निगम पर जीत के साथ कई ग्राम पंचायतों पर भी भाजपा ने सेंध लगा दी है तो फौरी तौर पर कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर उत्साहित हो सकती है।
लेकिन पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर इसे स्थायी बदलाव का संकेत मानते हैं। वह कहते हैं कि अप्रैल 2026 में होने वाले विधानसभा चुनाव में लड़ाई अब राजग और यूडीएफ के बीच है। वाम के अंत की शुरुआत हो चुकी है। दैनिक जागरण के राजनीतिक संपादक आशुतोष झा की उनसे हुई बातचीत के पेश हैं प्रमुख अंश :
साढ़े चार दशक से जिस तिरुअनंतपुरम नगर निगम पर वामदलों का कब्जा था, उसे इस बार भाजपा ने जीता। बड़ी जीत है लेकिन प्रदेश अध्यक्ष के रूप में आप इसकी व्याख्या कैसे करेंगे?
-देखिए, व्याख्या तो बहुत आसान है..आपने खुद कहा कि वामपंथियों का 45 साल का गढ़ हमने ध्वस्त कर दिया। मैं कहूं तो जिस तरह 1987 में अहमदाबाद नगर निगम चुनाव जीतकर गुजरात में भाजपा ने अपनी नींव रखी और फिर छलांग लगाई, उसी तरह केरल मे भी माहौल बदलने का संकेत है यह।
तो आपका कहना है कि मुख्य रूप से एलडीएफ (वाम लोकतांत्रिक मोर्चा) और यूडीएफ (संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा) के बीच सिमटे केरल में अब एनडीए का भी प्रवेश हो गया है।
-आप थोड़ा गलत बोल रहे हैं। तीन मोर्चों की लड़ाई तो होगी ही लेकिन एनडीए और यूडीएफ के बीच लड़ाई होगी। हमारा अस्तित्व केरल में नया नहीं है। पिछले लोकसभा चुनाव में तिरुअनंतपुरम सीट से मैं बहुत कम वोट से हारा था। कारण जानते हैं- बाकी के दोनों गठबंधनों मे जब भी किसी को लगता है कि एनडीए बाजी मार सकता है तो एक-दूसरे को वोट ट्रांसफर कराते हैं। उनकी यह रणनीति अब नहीं चलेगी क्योंकि जनता का मन बदल चुका है। आगामी विधानसभा चुनाव में यह स्थापित हो जाएगा।
आपने दो रोचक बात कही- पहली यह कि केरल में वाम मोर्चे को आप तीसरा खिलाड़ी मान रहे हैं और दूसरी यह कि केरल भाजपा की तुलना आप गुजरात भाजपा से कर रहे हैं...।
-सही कहूं तो मैं यह तुलना गुजरात भाजपा के साथ साथ कर्नाटक भाजपा से भी करूंगा। कर्नाटक मे भी शिमोगा के नगर निगम से शुरूआत हुई। वहां पर बीएस येद्दयुरप्पा काउंसलर बने, चेयरमैन बने और फिर भाजपा का बड़ा विस्तार हुआ। जिस तरह केरल में यूडीएफ और एलडीएफ मिलकर भाजपा के विस्तार हो रोकते रहे हैं, उसी तरह कर्नाटक में जनता पार्टी-जनता दल और कांग्रेस का तालमेल था भाजपा के खिलाफ। केरल में इस बार के स्थानीय चुनाव मे भी दोनों एक दूसरे को कई स्थानों पर वोट ट्रांसफर करा रहे थे। तिरुअनंतपुरम में जिस बूथ पर कांग्रेस के दो सौ वोट होते थे वहा पूरा का पूरा वोट एलडीएफ को ट्रांसफर कराया। तो विपक्ष की यह रणनीति पूरे देश में बहुत दिनों से चल रही थी। बाकी के राज्यों में तो भाजपा को रोकने की इन लोगों की साजिश ध्वस्त हो चुकी है लेकिन केरल, तमिलनाडु जैसे राज्यों में अभी भी चल रही है। यहां भी ध्वस्त होनी तय है।
लेकिन वाम और कांग्रेस के साथ-साथ सामान्य तौर पर कई लोग तो यह कह रहे हैं कि तिरुअनंतपुरम के सांसद शशि थरूर ने भाजपा की मदद कर दी..। क्या सच है?
-(ठहाका मारकर हंसते हुए) थरूर ने मदद कर दी तो फिर इतने दिनों तक वह कांग्रेस को यह नगर निगम क्यों नहीं दिला पाए। कांग्रेस तो 20-25 साल से पसीना बहा रही थी यह कारपोरेशन जीतने के लिए और इसमें से 15 साल तो थरूर को भी हो गए। लेकिन मैं आपसे आग्रह करूगा कि इस जीत को सिर्फ तिरुअनंतपुरम तक सीमित मत कीजिए। हमने दो नगरपालिका जीते हैं और 11 पर दूसरे नंबर पर हैं। 41 ग्राम पंचायत जीते हैं और 125 ग्राम पंचायत में हम दो नंबर पर रहे। कुछ बहुत कम वोट से हारे। यानी पूरे केरल में एक स्थायी बदलाव दिख रहा है। बदलाव की यह प्रक्रिया अब रुकने वाली या पीछे मुड़ने वाली नहीं है। लोकसभा चुनाव के बाद राजनीतिक पंडित कह रहे थे भाजपा का अच्छा प्रदर्शन केवल संयोग है लेकिन स्थानीय निकाय चुनाव जमीनी चुनाव होते हैं, जमीन के मुद्दे पर होते हैं। यहां हमारा जो प्रदर्शन है, वह स्थायी है।
कुछ राज्यों में सामान्यतया यह देखा गया है कि भाजपा की ग्रोथ के साथ सनातन या मंदिर पालिटिक्स जुड़ता रही है। केरल के मामले में सबरीमाला को कैसे देखते हैं?
-हमारा पूरा अभियान तो विकसित केरल पर ही था। इसमें भ्रष्टाचारमुक्त शासन मुख्य है। यहीं एलडीएफ सरकार बड़े कठघरे में खड़ी होती है। उनके लिए भ्रष्टाचार इतना सामान्य हो गया है कि मंदिर में भी चोरी करते हैं। सबरीमाला मंदिर में साढ़े चार किलो के सोने की चोरी और गुरुवायु में 25 करोड़ की चोरी चुनाव में भ्रष्टाचार का मुद्दा बना। लेकिन दूसरी बात भी देखिए कि यह जो कुछ हो रहा है वह केवल हिंदू मंदिरों में ही हो रहा है। किसी चर्च या मस्जिद में सरकार की ओर से ऐसी चोरी होती तो सरकार को जाना पड़ जाता था। कम से कम संबंधित मंत्री का तो तत्काल इस्तीफा हो जाता। लेकिन यहां तो मुख्यमंत्री ही बचाव कर रहे हैं। यह सोच है उनकी हिंदुत्व के लिए। इसका ज्यादा फायदा तो कांग्रेस को ही मिला क्योंकि कई स्थानों पर तो वही मुख्य विपक्षी थी।
पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा 20 प्रतिशत वोट तक पहुंच गई थी। लेकिन इससे विधानसभा चुनाव तो नहीं जीता जा सकता है।
-हम बढ़ रहे हैं। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने स्थानीय निकाय चुनाव तक ही हमें 25 प्रतिशत वोट तक पहुंचने का लक्ष्य दिया था जो हम नहीं पहुंच पाए हैं क्योंकि त्रिशुर में जहां से हमारे सांसद है वहां वोट शेयर कम हो गया। इसकी हम समीक्षा कर रहे हैं। केरल में हमें तो दो गठबंधनों की साजिश से लड़कर आगे बढ़ना है और बढ़ेंगे ही। यह मानकर चलिए कि आगामी विधानसभा चुनाव में राजग डबल डिजिट में अच्छा अंक लाएगा।
डबल डिजिट को ज्यादा स्पष्ट करेंगे... इसका अर्थ सरकार में आने से है, मुख्य विपक्षी दल बनने से या फिर सिर्फ डबल डिजिट पार करना है क्योंकि कभी भी भाजपा वहां एक से ज्यादा सीट नही जीती है।
-मैं बड़बोला कभी नहीं रहा हूं। भाजपा के पक्ष में जिस तरह के बदलाव दिख रहे है, उसमें कुछ भी संभव है। लेकिन फिर से पुरानी बात ही दोहराता हूं, हमें अब जो भी वोट पड़ रहे हैं वह एलडीएफ या यूडीएफ के वोट रहे हैं। भाजपा ने उनके अंदर सेंध लगा दी है, उनके बीच तालमेल के बावजूद। उनके बीच यह भी रणनीति रही है कि राजग को रोकने के लिए सांप्रदायिकता का नैरेटिव फैला दो, लेकिन इस बार हमने विकास के नैरेटिव को स्थापित कर दिया है। साथ ही सांप्रदायिकता के मुद्दे पर उनको बेनकाब भी कर रहे हैं। कांग्रेस अभी जमाते इस्लामी के साथ है जो संविधान और धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ हैं। वहीं वाम एसडीपीआइ जैसे कट्टर मुस्लिम संगठन के साथ है। केरल के लोग आज यही तो समझ गए हैं कि जमात या फिर एसडीपीआइ कैसे तय करेगा कि कौन धर्मनिरपेक्ष और कौन सांप्रदायिक। हर गली-मोहल्ले तक आपको बदलाव की गूंज सुनाई देगी।
क्या बिहार चुनाव नतीजे का कोई प्रभाव केरल तक जाएगा?
-प्रभाव दिखना शुरू हो गया है। दोनों गठबंधन के नेताओं में बेचैनी है क्योंकि बिहार में भी लोगों ने विकास के लिए वोट दिया। दूसरा अहम फैक्टर यह है कि केरल में मुस्लिम वोटर अब वाम को छोड़कर कांग्रेस की ओर जा रहे हैं। बिहार में तो कांग्रेस का सफाया हो गया लेकिन केरल में थोड़ा लाभ मिल रहा है। लेकिन वक्त आने दीजिए केरल में भी कांग्रेस की विदाई तय है।

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