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    जानें कैसा रहा ज्योतिरादित्य सिंधिया का राजनीतिक सफर, पिता की मौत के बाद विरासत में मिली राजनीति

    By Manish PandeyEdited By:
    Updated: Wed, 11 Mar 2020 07:43 AM (IST)

    30 सितंबर 2001 को विमान हादसे में पिता माधवराव सिंधिया की मौत के बाद विदेश से पढ़ाई कर लौटे ज्योतिरादित्य ने राजनीति में उतरने का फैसला किया। ...और पढ़ें

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    जानें कैसा रहा ज्योतिरादित्य सिंधिया का राजनीतिक सफर, पिता की मौत के बाद विरासत में मिली राजनीति

    भोपाल, जेएनएन। पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. माधवराव सिंधिया की आज (10 मार्च को) 75वीं जयंती है। महज यह संयोग है या कुछ और कि पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 10 मार्च को ही कांग्रेस से अपना इस्तीफा दिया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्य प्रदेश की राजनीति में जाना-पहचाना नाम है। ज्योतिरादित्य, सिंधिया राजघराने के तीसरी पीढ़ी के नेता हैं और अपने गढ़ में गहरी पकड़ रखते हैं।

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    ज्योतिरादित्य सिंधिया का जन्म 1 जनवरी 1971 को मुंबई में हुआ था और उन्होंने 1993 में हावर्ड यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र की डिग्री ली। इसके बाद 2001 में उन्होंने स्टैनफोर्ड ग्रुजुएट स्कूल ऑफ बिजनेस से एमबीए किया। ज्योतिरादित्य की 1984 बड़ौदा के गायकवाड़ घराने की प्रियदर्शिनी से शादी हुई है और उनके एक बेटा महा आर्यमान और बेटी अनन्याराजे हैं।

    पिता से विरासत में मिली राजनीति

    राजनीतिक सफर की बात करें तो ज्योतिरादित्य सिंधिया को राजनीति विरासत अपने पिता स्व. माधवराव सिंधिया से मिली। माधवराव सिंधिया अपने समय के दिग्गज कांग्रेस नेता थे। शुरुआत में जनसंघ के टिकट से चुनाव लड़ने के बाद वो कांग्रेस में शामिल हुए। पहले दादी विजयाराजे सिंधिया, फिर पिता माधवराव सिंधिया और अब ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना की बागडोर संभाले हुए हैं। दादी विजय राजे बीजेपी की कद्दावर नेताओं में से एक थीं।

    पहली बार गुना सीट से लड़ा चुनाव

    30 सितंबर 2001 को विमान हादसे में स्व. माधवराव सिंधिया मौत हो गई थी। पिता की मौत के बाद विदेश से लौटे ज्योतिरादित्य ने राजनीति में उतरने का फैसला किया। ज्योतिरादित्य ने 2002 में पहली बार पिता के देहांत के बाद उनकी पारंपरिक गुना सीट से चुनाव लड़े और लोकसभा पहुंचे। 2004 में भी उन्होंने इसी सीट से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। यूपीए सरकार में पहली बार 2007 में सिंधिया ने केंद्रीय राज्य मंत्री का पदभार संभाला और यूपीए की मनमोहन सरकार 2012 में भी उन्होंने केंद्रीय राज्य मंत्री का स्वतंत्र प्रभार संभाला। 2014 के लोकसभा चुनाव मोदी लहर के बावजूद गुना में जीत दर्ज कराई।