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Jammu and Kashmir: जानें- क्या है धारा 35A और कैसे इसे हटाया जा सकता है

संविधान के जानकारों की माने तो अनुच्छेद 35A जैसे एक्जीक्यूटिव ऑर्डर से संविधान में शामिल हुआ था वैसे ही उसे हटाया भी जा सकता है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Sun, 04 Aug 2019 11:48 PM (IST)Updated: Mon, 05 Aug 2019 12:20 PM (IST)
Jammu and Kashmir: जानें-  क्या है धारा 35A और कैसे इसे हटाया जा सकता है
Jammu and Kashmir: जानें- क्या है धारा 35A और कैसे इसे हटाया जा सकता है

माला दीक्षित, नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर पर बहस और चर्चाओं का बाजार गर्म है। सबसे ज्यादा चर्चा राज्य के निवासियों को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 35ए की है। यह अनुच्छेद भारत के अन्य हिस्सों में रहने वाले नागरिकों और जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासियों में भेद करता है।

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अनुच्छेद 35ए को खत्म करने या उसमें बदलाव को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं। ऐसे में 35ए की कानूनी हैसियत समझना और उसे संविधान में शामिल करने से लेकर हटाने की कानूनी प्रक्रिया जानना जरूरी हो जाता है। संविधान के जानकारों की माने तो अनुच्छेद 35ए जैसे एक्जीक्यूटिव ऑर्डर से संविधान में शामिल हुआ था, वैसे ही उसे हटाया भी जा सकता है।

35ए के कारण ही अन्य राज्य के लोगों को जम्मू-कश्मीर में अधिकार नहीं
अनुच्छेद 35ए में जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासियों को परिभाषित किया गया है। इसके मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में सरकारी नौकरी पाने, अचल संपत्ति खरीदने, बसने और राज्य सरकार की ओर से दी जाने वाली स्कॉलरशिप पाने का अधिकार सिर्फ राज्य के स्थायी निवासी को है। इस अनुच्छेद को प्रेसिडेंशियल ऑर्डर के जरिए 1954 में संविधान में जोड़ा गया था।

इसके कारण जम्मू-कश्मीर विधानसभा को राज्य का स्थायी निवासी तय करने का हक मिला और अनुच्छेद के कारण ही भारत के अन्य हिस्सों में रहने वाले नागरिकों का जम्मू-कश्मीर में सरकारी नौकरी पाने, संपत्ति खरीदने और वहां बसने का अधिकार खत्म हो गया।

किसी अनुच्छेद को संविधान में शामिल करने का ये हैं नियम
अनुच्छेद 35ए की कानूनी हैसियत के बारे में देश के जाने-माने वकील और पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी कहते हैं कि इसे संविधान में शामिल जरूर कर लिया गया, लेकिन ये कभी संविधान का हिस्सा नहीं था, क्योंकि इसे संविधान में शामिल करने के लिए तय प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ। इस पर न तो संविधानसभा में चर्चा हुई और न ही इसे कभी संसद में पेश किया गया। इस अनुच्छेद को राष्ट्रपति ने एक्जीक्यूटिव ऑर्डर जारी करके शामिल किया था। संविधान में किसी भी अनुच्छेद को शामिल करने से पहले उसका विधेयक संसद में पेश किया जाता है। संसद के दोनों सदनों से पास होता है उसके बाद ही उसे संविधान में शामिल किया जाता है। यह अनिवार्य प्रक्रिया इस अनुच्छेद को शामिल करने से पहले नहीं अपनाई गई। यहां तक कि इसे शामिल करने से पहले यह जम्मू-कश्मीर विधानसभा में भी नहीं पेश किया गया था।

35ए की कानूनी हैसियत कुछ नहीं 
रोहतगी कहते हैं कि ऐसे में इसकी कानूनी हैसियत कुछ नहीं है। यह जिस तरह संविधान में शामिल किया गया है उसी तरह इसे राष्ट्रपति के एक्जीक्यूटिव आदेश से हटाया जा सकता है। रोहतगी यह भी कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर राज्य 1947 की संधि के तहत भारत में विलय हुआ था। संविधान में अनुच्छेद 35ए 1954 में आया था। 1947 से 1954 तक भी तो जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा था तब भी सब चल रहा था तो इसके हटने के बाद भी चल सकता है।

अनुच्छेद 35ए दो लोगों के बीच हुए समझौते पर आधारित
अनुच्छेद 35ए को एक्जीक्यूटिव ऑर्डर से हटाने की बात से सुप्रीम कोर्ट के वकील डीके गर्ग भी इत्तफाक रखते हैं। वे कहते हैं कि अनुच्छेद 35ए दो लोगों के बीच हुए समझौते पर आधारित है। 1952 में शेख अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर के प्रधानमंत्री थे, तब वहां मुख्यमंत्री नहीं होता था। उस समय अब्दुल्ला और भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के बीच एक समझौता हुआ था जिसे 1952 दिल्ली एग्रीमेंट कहा गया और उसी के आधार पर प्रेसिडेंशियल ऑर्डर जारी करके अनुच्छेद 35ए को संविधान में शामिल किया गया। ऐसे में संविधान में शामिल होते हुए भी ये उसका हिस्सा नहीं माना जाएगा। 

35 ए को सुप्रीम कोर्ट में दी गई है चुनौती
अनुच्छेद 35ए को सुप्रीम कोर्ट में भी कई याचिकाओं के जरिए चुनौती दी गई है। शीर्ष अदालत ने इस पर केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब भी मांगा है, लेकिन आज तक दोनों सरकारों ने जवाब नहीं दाखिल किया।

याचिका दायर करने वालों में भाजपा नेता व वकील अश्वनी कुमार उपाध्याय भी शामिल हैं। इन्होंने भारतीय नागरिकों के साथ भेदभाव को आधार बनाते हुए कोर्ट से अनुच्छेद 35 खत्म करने की मांग की है। इस अनुच्छेद के खिलाफ इसके अलावा चार अन्य याचिकाएं भी लंबित हैं।

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