OBOR पर भारत का रुख स्पष्ट, रूस-चीन से स्पष्ट करनी होंगी अपनी आपत्तियां
भारत ने ओबीओआर प्रोजेक्ट पर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है। भारत के लिए यह जरूरी है कि रूस और चीन को भी अपनी आपत्तियों के बारे में बताए।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। चीन की महत्वाकांक्षी योजना वन बेल्ट वन रोड (ओबीओआर) से जुडने के बाबत भारत ने अपना रुख स्पष्ट करते हुए कुछ सकारात्मक संकेत दिए हैं। भारत ने इस बाबत साफ कर दिया है कि यदि चीन उसकी आपत्तियों पर ध्यान देता है और काम करता है तो ओबीओआर प्रोजेक्ट से भारत को इससे कोई परेशानी नहीं है। हालांकि जानकार मानते हैं कि भारत का रुख इस बाबत बदला नहीं है। भारत का रुख पहले भी यही था और आज भी यही है। यहां पर हम आपको बता दें कि बीते दिनों भारत-चीन-रूस के वित्त मंत्रियों की त्रिपक्षीय बैठक दिल्ली में हुई थी, जिसमें आपसी मुद्दों के अलावा ओबीओआर का मुद्दा भी चीन ने उठाया था। दरअसल, चीन भारत के महत्व को समझते हुए शुरुआत से ही यह चाहता रहा है कि भारत इसमें भागीदार बने। इसकी वजह यह है कि यदि भारत इसमें भागीदार बनता है तो क्षेत्र के अन्य देशों का भी चीन को सहयोग मिल सकता है। वहीं यदि भारत इससे किनारा करता है तो अन्य देश भी इससे किनारा कर सकते हैं।
ओबीओआर का फायदा ले सकता है भारत
भारत के प्रमुख थिंक टैंक विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन द्वारा आयोजित प्रथम अलेक्जेंडर कदाकिन व्याख्यान में रूसी विदेश मंत्री ने पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि भारत अपने रुख पर कायम रहते हुए भी इस प्रोजेक्ट का फायदा उठा सकता है। उन्होंने यहां तक कहा कि भारत के पास कुशल राजनेताओं और राजनयिकों की पूरी फौज है। इनके दम पर भारत बिना कुछ गंवाए ही ओबीओआर का फायदा ले सकता है। रूस के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा प्रोजेक्ट (सीपीईसी) में शामिल होने से संबंधित एक सवाल के जवाब में लावरोव ने कहा कि रूस के पास पहले ही इस तरह का कॉरिडोर है और कनेक्टिविटी पहल के लिए बड़े क्षेत्र उपलब्ध है। लावरोव के बयान के बाद भारत की तरफ से भी यह कहा गया है कि यदि भारत की आपत्तियों को तरजीह या उस पर ध्यान दिया जाता है तो वह इस बारे में सोच सकता है। हालांकि इन सभी के बीच माना यह भी जा रहा है कि रूस भी अब चीन के ओबीओआर में रूचि दिखाता दिखाई दे रहा है। गौरतलब है कि सेंट्रल एशिया के कई देश ओबीओआर में सहयोग के लिए पहले ही मसौदे पर साइन कर चुके हैं।
रूस से भी साझा करनी होंगी आपत्ति
ऑब्जरवर रिसर्च फाउंडेशन के प्रोफेसर हर्ष वी पंत का मानना है कि भारत के रुख में कोई बदलाव नहीं आया है। हालांकि कुछ समय से रूस और चीन के रिश्तों में जरूर नजदीकी देखी जा रही है। लिहाजा भारत के लिए यह जरूरी हो गया है कि वह इस प्रोजेक्ट से जुड़ी अपनी आपत्तियों को रूस से भी साझा करे और उसको अपने विश्वास में ले। उन्होंने यह भी कहा है कि पश्चिम देशों की राय है कि यह प्रोजेक्ट चीन की दादागिरी पर चलने वाला है और जो वह चाहता है वही इसमें होता है, इसलिए वह इसका विरोध करते हैं। दूसरी तरफ भारत के पड़ोसियों की यदि बात करें तो नेपाल, श्रीलंका और पाकिस्तान पहले ही इस प्रोजेक्ट को लेकर अपनी रजामंदी जता चुके हैं। प्रोफेसर पंत का कहना है कि चीन इस क्षेत्र में भारत के महत्व को नजरअंदाज नहीं कर सकता है।
भारत दर्ज करा चुका है स्पष्ट रूप से विरोध
गौरतलब है कि सीपैक को लेकर भारत अपना विरोध बेहद स्पष्ट शब्दों में दर्ज करा चुका है। भारत कह चुका है कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा जम्मू कश्मीर के उस हिस्से से होकर गुजरता है जिस पर पाकिस्तान ने अवैध रूप से कब्जा कर रखा है। भारत के इस बयान का समर्थन अमेरिका ने भी किया है। अमेरिका साफ कर चुका है कि यह आर्थिक गलियारा विवादित क्षेत्र से होकर गुजरता है। अमेरिका ने भी इसका विरोध किया है। इसके अलावा रूसी विदेश मंत्री लावरोव ने भी भारत की स्वतंत्र विदेश नीति दृष्टिकोण की सराहना की। उनका कहना है कि किसी भी विवाद का हल शांतिपूर्ण तरीके से ही निकाला जा सकता है। बल व युद्ध का उपयोग करने भी समस्या का समाधान नहीं होता है। लावरोव ने रूस व भारत की साझेदारी को मजबूत करते हुए कहा कि दोनों देश मिलकर एशिया प्रशांत क्षेत्र में कई समस्याओं का समाधान कर सकते है।
पाकिस्तान को हड़पना, चीन की चाल
हालांकि सीपैक को लेकर जानकारों की राय बेहद स्पष्ट है कि चीन इसके जरिए पाकिस्तान को हड़पना चाहता है। जानकारों की मानें तो अरबों डॉलर के इस प्रोजेक्ट के जरिए चीन पाकिस्तान पर अपनी आर्थिक पकड़ को मजबूत करना चाहता है। ग्वादर से लेकर चीन तक के बीच बन रहे इस कॉरिडोर से जितना फायदा चीन को है उतना अन्य किसी देश को नहीं है। यहां पर एक बात और ध्यान में रखने वाली है और वह ये है कि हाल ही में चीन ने सीपैक के तहत आने वाले तीन प्रोजेक्ट्स की फंडिंग फिलहाल रोक दी है। इसको लेकर पाकिस्तान के राजनेताओं में काफी गुस्सा है। पाकिस्तान में दो दिन पहले ही इसको लेकर एक बैठक भी हुई थी जिसमें कहा गया था कि चीन पहले के मसौदे को रद कर दूसरा मसौदा तैयार कर रहा है।
क्या है OBOR?
इसे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महात्वाकांक्षी परियोजना कहा जा रहा है। वन बेल्ट वन रोड परियोजना का उद्देश्य एशियाई देशों, अफ्रीका, चीन और यूरोप के बीच कनेक्टिविटी और सहयोग में सुधार लाना है। इसमें जमीन के साथ-साथ समुद्री मार्गों को बढ़ाने पर भी जोर दिया गया है। यह रास्ता चीन के जियान प्रांत से शुरू होकर, अफ्रीकी देश, रुस, यूरोप को सड़क मार्ग से जोड़ते हुए फिर समुद्र मार्ग के जरिए एथेंस, केन्या, श्रीलंका, म्यामार, जकार्ता, कुआलालंपुर होते हुए जिगंझियांग (चीन) से जुड़ जाएगा। यह नीति चीन के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका उद्देश्य देश में घरेलू विकास को बढ़ावा देना है। विशेषज्ञों के मुताबिक ओबीओआर आर्थिक कूटनीति के लिहाज से चीन की रणनीति का भी एक हिस्सा है।
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