गैर भाजपा शासित राज्यों में राज्यपालों के हस्तेक्षप पर फिर बढ़ा सियासी उबाल
तमिलनाडु में सत्तारूढ़ द्रमुक के राज्यपाल को वापस बुलाने की मांग का समर्थन कर कांग्रेस ने इस विवाद को और हवा दे दी है। द्रमुक ने राज्यपाल एन रवि को वापस बुलाने की मांग करने के लिए तमिलनाडु के सांसदों का हस्ताक्षर अभियान शुरू किया है।

नई दिल्ली, संजय मिश्र। तमिलनाडु के राज्यपाल एन.रवि को वापस बुलाने की मांग पर विपक्ष के आक्रामक तेवरों ने एक बार फिर राज्यों में राजभवनों की 'सियासी' सक्रियता के विवाद को गरमा दिया है। तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना, पंजाब से लेकर झारखंड की राजनीति में इन दिनों राज्यपालों की सक्रियता और प्रशासनिक मामलों में हस्तक्षेप के आरोपों की हलचल कुछ ज्यादा ही है।
तमिलनाडु के सांसदों का हस्ताक्षर अभियान
इस हलचल के चलते ही विपक्ष यह आरोप लगाने से गुरेज नहीं कर रहा कि गैर भाजपा दलों द्वारा शासित राज्यों में राज्यपालों के जरिए हस्तक्षेप की कोशिश हो रही है। तमिलनाडु में सत्तारूढ़ द्रमुक के राज्यपाल को वापस बुलाने की मांग का समर्थन कर कांग्रेस ने इस विवाद को और हवा दे दी है। द्रमुक ने राज्यपाल एन रवि को वापस बुलाने की मांग करने के लिए तमिलनाडु के सांसदों का हस्ताक्षर अभियान शुरू किया है।
मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने की पहल
मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने खुद इसकी पहल की है और इसलिए कांग्रेस के साथ ही माकपा, भाकपा, एमडीएमके, आइयूएमएल, टीवीके जैसे उनके सहयोगी दलों के सांसदों ने भी इस पर हस्ताक्षर किए हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने राज्यपाल को वापस बुलाने के लिए ज्ञापन याचिका देने का समर्थन करते हुए कहा कि कांग्रेस और द्रमुक के अलावा गठबंधन के सभी सहयोगी दलों के सांसद इस पर हस्ताक्षर करेंगे।
तमिलनाडु की द्रमुक गठबंधन सरकार ओर राज्यपाल रवि के बीच प्रशासनिक कामकाज में अड़ंगे को लेकर खींचतान पहले से ही चलती रही है। इसमें राज्य विधानसभा से पारित 18 विधेयकों को अब तक राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए नहीं भेजना का मामला है जिसमें मेडिकल की प्रवेश परीक्षा नीट से तमिलनाडु को छूट देने का विवादित विधेयक भी शामिल है।
राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच ताजा विवाद
हालांकि राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच ताजा विवाद की वजह एन रवि के कुछ बयानों को लेकर है जिसमें कथित तौर पर देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप और संविधान के प्रतिकूल होने की बात है। द्रमुक का आरोप है कि राज्यपाल संवैधानिक मर्यादा की परिधि से बाहर जाकर न केवल हिन्दुत्व की पैरोकारी कर रहे हैं बल्कि इस क्रम में तमिलनाडु और सदियों पुरानी द्रविड़ संस्कृति की छवि पर आघात कर रहे हैं।
इसके मद्देनजर ही स्टालिन ने राज्यपाल को वापस बुलाने की मांग के लिए राज्य के सांसदों की ओर से ज्ञापन याचिका राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को सौंपने का अभियान शुरू कराया है। बताया जाता है कि स्टालिन इस क्रम में अन्य विपक्षी राज्यों के नेताओं और मुख्यमंत्रियों से भी संपर्क साध रहे हैं।
राज्यपालों के राज्य सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप
राज्यपालों के राज्य सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप का मसला पिछले कुछ सालों से लगातार गरम रहा है। हाल ही में तेलंगाना की केसीआर सरकार और राज्यपाल तमिल साई सौंदरराजन के बीच भी तकरार देखने को मिली। हैदराबाद में राजभवन और राज्य सरकार के असहज रिश्ते की वजह से ही हाल में राज्यपाल ने मुख्यमंत्री पर उचित प्रोटोकाल नहीं देने और उन्हें अपमानित करने का आरोप लगाया।
पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार और राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित के बीच विवाद का सिलसिला कुछ समय पहले ही शुरू हुआ है। विधानसभा सत्र बुलाने पर राज्यपाल और मुख्यमंत्री भगवंत मान के बीच हुई टीका-टिप्पणी से लेकर विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्तियों को लेकर खींचतान का मसला अभी ठंडा नहीं पड़ा है। इसी तरह केरल में राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और वाममोर्चा सरकार के मुख्यमंत्री पी.विजयन के बीच खुली जंग चल रही है।
शह-मात के दांव
वामदल भी आरिफ को हटाने की मांग कर रहे हैं। झामुमो-कांग्रेस शासित विपक्षी राज्य झारखंड में भी पिछले कुछ महीनों से राज्यपाल रमेश बैस और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के बीच शह-मात के दांव चले जा रहे हैं। सोरेन की विधानसभा सदस्यता की अयोग्यता का चुनाव आयोग का प्रस्ताव राज्यपाल के विचाराधीन है और यह भी एक वजह है।
पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तत्कालीन राज्यपाल रहे जगदीप धनखड़ के बीच प्रशासनिक दखलंदाजी को लेकर विवाद तो कई वर्षों तक नियमित सुर्खियों का हिस्सा रहे।
धनखड़ के उपराष्ट्रपति चुने जाने के बाद बंगाल में राजभवन विवादों से दूर है। महाराष्ट्र में भी उद्धव ठाकरे की महाआघाड़ी गठबंधन सरकार के दौरान राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी से रिश्ते विवादों का पर्याय बन गए थे। लेकर सत्तापलट के उपरांत शिवसेना से अलग हुए एकनाथ शिंदे-भाजपा गठबंधन के सत्ता में आने के बाद महाराष्ट्र राजभवन सुर्खियों से दूर है।
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