2014 में राहुल गांधी ने स्वीकारा था कि सिख विरोधी दंगों में कांग्रेसी थे शामिल!
राहुल गांधी कभी जर्मनी के हैम्बर्ग में प्रवासी भारतीयों को बेरोजगारी से आतंकवाद की उत्पत्ति की थ्योरी समझाते दिखते हैं तो कभी संघ और आतंकी संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड को एक फ्रेम में फिट कर अपनी काबिलियत पर इतराते हैं।
अरविंद जयतिलक। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी ने देश-दुनिया को गुमराह करने का बीड़ा उठा लिया है। कभी वह जर्मनी के हैम्बर्ग में प्रवासी भारतीयों को बेरोजगारी से आतंकवाद की उत्पत्ति की थ्योरी समझाते दिखते हैं तो कभी संघ और आतंकी संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड को एक फ्रेम में फिट कर अपनी काबिलियत पर इतराते हैं। अब उन्होंने लंदन में ब्रिटेन के सांसदों और स्थानीय नेताओं को संबोधित करते हुए कहा है कि 1984 के सिख दंगों में कांग्रेस शामिल नहीं थी जबकि 2014 में राहुल गांधी ने स्वीकारा था कि कुछ कांग्रेसी 1984 के सिख विरोधी दंगे में शामिल थे। राहुल गांधी 2014 में सही बोल रहे थे या अब बोल रहे हैं? बहरहाल कुलमिलाकर उन्होंने दंगा पीड़ितों के जख्मों को कुरेदने का ही काम किया है। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके पुत्र राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और जब उनसे दंगों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि जब एक बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है। उनके इस वक्तव्य का भयंकार परिणाम यह हुआ कि प्रतिक्रियास्वरूप देश में दंगा भड़क उठा और सिख समुदाय का कत्लेआम शुरू हो गया।
सिख विरोधी दंगे
देशभर में भड़के सिख विरोधी दंगों में हजारों निर्दोष सिख मारे गए। अगर केंद्र की राजीव गांधी की सरकार ने दृढ़ता दिखाई होती तो सिखों का बड़े पैमाने पर नरसंहार नहीं होता। लेकिन सच्चाई है कि राजीव गांधी ने दंगे की आग को थामने की कोशिश नहीं की और उनकी सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। इसका खुलासा सीबीआइ द्वारा भी किया जा चुका है। सीबीआइ की मानें तो ये सभी हिंसक कृत्य दिल्ली पुलिस के अधिकारियों और राजीव गांधी के नेतृत्ववाली केंद्र सरकार की सहमति से किए गए। स्वाभाविक रूप से उनके बड़े बयान के बाद पुलिस सख्त कार्रवाई करने से हिचकी होगी और अराजक तत्वों का हौसला बुलंद हुआ होगा। अगर पुलिस ने इनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की होती तो हजारों निदरेष सिखों की जान नहीं जाती।
पंजाब का आतंकवाद
रही बात पंजाब के आतंकवाद की तो इसके लिए सिखों को कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। पंजाब में आतंकवाद के लिए भी तत्कालीन कांग्रेस की सरकार ही जिम्मेदार थी। उसने ही राजनीतिक फायदे के लिए अलगाववादी समूहों को बढ़ावा दिया और बाद में उसे आतंकी संगठन घोषित किया। सच तो यह है कि केंद्र सरकार की नाकामी के कारण ही पवित्र स्वर्ण मंदिर पर हथियारबंद अलगाववादियों ने कब्जा किया और उसकी कीमत समस्त सिख समुदाय को चुकानी पड़ी। इंदिरा गांधी के हत्यारे अंगरक्षकों बेअंत, सतवंत और केहर सिंह को तो फांसी पर झुला दिया गया लेकिन असल सवाल यह है कि हजारों सिखों के नरसंहार के गुनहगार 34 साल बाद भी कानून की पकड़ से बाहर क्यों हैं?
गुनहगारों को सजा
सिख विरोधी दंगों के सिलसिले में केवल 3,163 लोगों की गिरफ्तारी हुई है और इनमें से केवल 442 लोगों को दोषी करार दिया गया है। इनमें से भी सिर्फ 49 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई और तीन को दस साल की कैद की सजा। शेष गुनहगारों को कांग्रेस बचा रही है। उसी का परिणाम रहा कि अमेरिका की एक संघीय अदालत ने 1984 के सिख विरोधी दंगों में कथित तौर पर शामिल पार्टी नेताओं को बचाव करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ समन जारी किया था। बता दें कि अमेरिका स्थित मानवाधिकार संगठन ‘सिख फॅार जस्टिस’ और नवंबर 1984 के अन्य दंगा पीड़ितों ने याचिका दायर कर सोनिया गांधी के खिलाफ मुआवजा और दंडात्मक कार्रवाई की मांग की थी।
कांग्रेस पर आरोप
यह ठीक है कि यह मामला खत्म हो गया लेकिन कांग्रेस पर जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार को बचाने का आरोप है। इन दोनों नेताओं पर दंगे में अहम भूमिका निभाने का आरोप है। सज्जन कुमार पर आरोप है कि उन्होंने इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दंगाइयों का नेतृत्व किया और भड़काया। ऐसे ही संगीन आरोप जगदीश टाइटलर पर भी है। उल्लेखनीय है कि 2009 आमचुनाव से पहले सीबीआइ ने इन्हें क्लीन चिट दी थी जिसे लेकर बवाल मचा था। 1984 के ऑपरेशन ब्लू स्टार पर ब्रिटेन के दस्तावेजों से हाल के वर्षो में यह खुलासा हुआ था कि तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री मार्गेट थैचर ने स्वर्ण मंदिर को खालिस्तानी आतंकियों से मुक्त कराने की सैन्य कार्रवाई में भारत की मदद की।
ऑपरेशन ब्लू स्टार
ऑपरेशन ब्लू स्टार से चार महीने पहले भारत सरकार ने पत्र लिखकर ब्रिटेन सरकार से ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए मदद का अनुरोध किया था। उनके अनुरोध पर ब्रिटिश स्पेशल एयर सर्विस के एक अधिकारी ने भारत की यात्र की और योजना का खाका तैयार कर तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समक्ष पेश किया जिस पर उन्होंने सहमति दे दी। भारतीय खुफिया एजेंसी ‘रॉ’ के पूर्व अधिकारी बी रमन की पुस्तक ‘द काउबायेज ऑफ आर एंड डब्लू’ से भी उद्घाटित हो चुका है कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के तत्कालीन सलाहकार आरएन काव के अनुरोध पर ब्रिटिश सुरक्षा सेवा के दो अधिकारियों ने पर्यटक के तौर पर स्वर्ण मंदिर की यात्र की थी।
मार्गेट थैचर का समर्थन
ब्रिटेन के एक लोकप्रिय समाचार पत्र का भी कहना है कि अमृतसर में ऑपरेशन ब्लूस्टार के पूरा होने के बाद ब्रिटेन की तत्कालीन प्रधानमंत्री मार्गेट थैचर ने इंदिरा गांधी के प्रति पूरा समर्थन व्यक्त करते हुए एक निजी नोट भेजा था। इस नोट में कहा गया कि पृथक सिख राष्ट्र की मांग की पृष्ठभूमि में ब्रिटेन भारत की अखंडता का पूरा समर्थन करता है। यह नोट 20 जून 1984 को भेजा गया था। विशेषज्ञों की मानें तो तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री मार्गेट थैचर ने ऑपरेशन ब्लूस्टार की सैन्य कार्रवाई में भारत की इसलिए मदद की थी कि वह अरबों के रक्षा सौदे और रूस के प्रभाव को सीमित करना चाहती थी। सच क्या है यह कहना मुश्किल है लेकिन राहुल गांधी का यह कहना कि 1984 के सिख विरोधी दंगे में कांग्रेस की भूमिका नहीं थी, देश को गुमराह करने जैसा है। उचित होगा कि राहुल गांधी सच पर पर्दादारी करने से बचें और उनकी पार्टी सिख विरोधी दंगे में खून से नहाए नेताओं को बचाने का उपक्रम न करे।
[लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं]