Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    NOTA vs Netas: बिहार चुनाव में 'नोटा' ने कर दिया बड़ा खेल, कैसे बदले समीकरण; पूरी रिपोर्ट

    Updated: Wed, 19 Nov 2025 11:33 PM (IST)

    बिहार विधानसभा चुनाव संपन्न हो चुके हैं और एनडीए ने 202 सीटों के साथ शानदार जीत हासिल की है। इस बार भाजपा सबसे बेहतरीन प्रदर्शन करने वाली पार्टी बनकर उभरी है। लेकिन इन बड़ी जीतों के अलावा, एक और रुझान ने भी चुपचाप अपनी छाप छोड़ी हैऔर वह है नोटा

    Hero Image

    बिहार चुनाव में 'नोटा' ने कर दिया बड़ा खेल, कैसे बदले समीकरण (सांकेतिक तस्वीर)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव संपन्न हो चुके हैं और एनडीए ने 202 सीटों के साथ शानदार जीत हासिल की है। इस बार भाजपा सबसे बेहतरीन प्रदर्शन करने वाली पार्टी बनकर उभरी है। लेकिन इन बड़ी जीतों के अलावा, एक और रुझान ने भी चुपचाप अपनी छाप छोड़ी हैऔर वह है नोटा..।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    बिहार चुनाव में नोटा पर वोट डालने को लेकर बढ़ोतरी देखने को मिली करीब नौ लाख मतदाताओं ने नोटा पर वोट डाला जो एक तरह से मतदाताओं में असंतोष दिखाता है।

    सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले के बाद 2013 में भारतीय चुनावों में नोटा विकल्प की शुरुआत हुई। कोर्ट ने भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) और मतपत्रों में नोटा बटन शामिल करने का निर्देश दिया, जिससे मतदाताओं को गोपनीयता बनाए रखते हुए सभी उम्मीदवारों को अस्वीकार करने का अधिकार मिल सके।

    चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में 9.1 लाख वोट नोटा को गए, जो कुल वोट शेयर का 1.81 प्रतिशत है। यह तब हुआ जब बिहार में अब तक का सबसे अधिक 66.91 प्रतिशत मतदान हुआ।

    हालांकि 2020 में 1.7 प्रतिशत की तुलना में यह वृद्धि मामूली है, लेकिन यह अभी भी 2015 में दर्ज 2.5 प्रतिशत से कम है, जब बिहार में नोटा की शुरुआत हुई थी।

    ओवैसी की पार्टी को मिले नोटा के बराबर वोट

    बात की जाए बिहार विधानसभा चुनाव के परिणामों की तो इस चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM और NOTA को लगभग बराबर वोट मिले हैं। चुनाव आयोग की आधिकारिक वेबसाइट पर जारी आंकड़ों के अनुसार, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) को 1.85 प्रतिशत वोट मिले, जबकि नोटा को 1.81 प्रतिशत वोट मिले।

    जनसुराज पार्टी की हवा निकली

    प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी, जिसने 238 सीटों पर चुनाव लड़ा था, 68 निर्वाचन क्षेत्रों में नोटा से पीछे रही, यानी कुल सीटों का लगभग 28.6 प्रतिशत। दस में से तीन से ज़्यादा सीटों पर नोटा को जेएसपी से ज़्यादा वोट मिले।

    नोटा ने निकाल दी हवा

    विशेष बात यह कि कई ऐसे उम्मीदवार जो खुद को बदलाव का प्रतिनिधि बताकर मैदान में उतरे थे उन्हें भी मतदाताओं ने प्राथमिकता नहीं दी। परिणामों में यह साफ दिखा कि जहां कुछ दलों ने बिहार में नई राजनीति लाने का दावा किया था वहीं मतदाताओं ने उस दावे कि हवा निकाल दी। स्थानीय विश्लेषकों का मानना है कि

    जब मतदाता पारंपरिक और नए दोनों तरह के उम्मीदवारों को नकारकर नोटा का बटन दबाते हैं तो यह सिर्फ असंतोष नहीं राजनीतिक उम्मीदों की असफलता भी दिखाता है।

    हालांकि नोटा को लेकर लोग इसे विशेष दल के समर्थकों की देन बता रहे हैं। उनके दल से अच्छे प्रत्याशी नहीं मिलने से नाराज लोगों ने नोटा का बटन दवा कर अपनी नाराजगी जताई है।