अलग बोडोलैंड की मांग खत्म, अमित शाह की मौजूदगी में NDFB के साथ हुआ शांति समझौता
असम के नेशनल डेमोक्रेटिक फेडरेशन आफ बोडोलैंड (NDFB) के साथ सरकार का शांति समझौत हुआ है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। असम की पांच दशक पुरानी बोडो समस्या के स्थायी समाधान हो गया। बोडो के चार अलगाववादी गुटों समेत कुल नौ संगठनों ने असम और केंद्र सरकार के साथ समझौता कर अलग राज्य की मांग छोड़ दी। इससे असम की अखंडता बरकरार रहेगी। समझौते पर हस्ताक्षर के बाद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि इससे असम में शांति के स्वर्णिम युग की शुरूआत होगी। उन्होंने कहा कि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पूरे पूर्वोत्तर में स्थायी शांति बहाल करने के प्रयासों की एक कड़ी है।
1972 में अलग राज्य की मांग को लेकर शुरू हुए हिंसक आंदोलन को समाप्त करने की कोशिशें इसके पहले भी हुई थी। 1993 और 2003 में इसके लिए समझौते किये गए थे। पहले से ताजा समझौते को अलग बताते हुए अमित शाह ने कहा कि पहले कभी भी सभी गुट समझौते के टेबल पर एक साथ नहीं आए थे, लेकिन इस बार सभी पक्ष एकजुट होकर समझौते में शामिल हैं। शाह के अनुसार समझौता होते ही अलगाववादी गुटों से सभी कैडर 30 जनवरी को आत्मसमर्पण कर देंगे और सरकार उनके पुनर्विकास की जिम्मेदारी उठाएगी।
इसके साथ ही बोडो की सांस्कृतिक पहचान को बचाये रखने के लिए बोडो भाषा को असम की दूसरी राजकीय भाषा का दर्जा दिया जाएगा। समझौते में सरकार ने बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद को बदलकर बोडोलैंड क्षेत्रीय एरिया नाम दिया जाएगा और उसकी शक्तियां बढ़ाई जाएंगी। असम सरकार और बोडो क्षेत्रीय एरिया के प्रशासक की अधिकारों की सूची के स्पष्ट बंटवारे का भी प्रावधान है। बोडो क्षेत्र के विकास के लिए केंद्र और राज्य सरकार 1500 करोड़ रुपये खर्च करेगी। इसके साथ ही सरकार ने समझौते में उस इलाके में केंद्रीय विश्वविद्यालय समेत कई शिक्षण व प्रशिक्षण संस्थान खोलने का वादा किया है।
अमित शाह ने कहा कि 1972 में शुरु हुए इस आंदोलन में चार हजार से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। अब इस ऐतिहासिक समझौते के साथ असम में स्थायी शांति स्थापित हो सकेगी। इस महीने के शुरू में लगभग 50 बोडो अलगाववादी कैडर ने म्यंमार में अंतिम शिविर को छोड़कर भारत में आत्मसमर्पण कर दिया था। इसके बाद पिछले हफ्ते 644 बोडो कैडर ने आत्मसमर्पण किया था। 2014 में बोडो अलगाववादियों द्वारा 71 आदिवासियों की हत्या के पांच साल हुए शांति समझौते को काफी अहम माना जा रहा है।