On This Day: ' मैं भारत की जनता की ओर से...' आज ही के दिन UN में अटल बिहारी का हिंदी में संबोधन
Atal Biharis speech in the United Nations 45 साल पहले 4 अक्टूबर 1977 वह ऐतिहासिक दिन था जब संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देकर अटल बिहारी वाजपेयी ने इतिहास रचा था। उस समय मोरारजी देसाई की सरकार थी और वाजपेयी विदेश मंत्री के रूप में काम कर रहे थे।
नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। अटल बिहारी वाजपेयी को हिंदी से बेहद लगाव था। उन्होंने वैश्विक स्तर पर हिंदी का डंका बजाया। वो पहले नेता थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण दिया। पहली बार भारत की राजभाषा अंतर्राष्ट्रीय मंच पर आधिकारिक रूप से गूंजी। उनके भाषण के बाद देश-दुनिया के प्रतिनिधियों ने तालियों से स्वागत किया था बता दें कि 1977 में आज ही के दिन भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में पहली बार हिंदी में अपना संबोधन दिया था। अपने भाषण में वाजपेयी जी ने परमाणु निरस्त्रीकरण, आतंकवाद जैसे कई गंभीर मुद्दे उठाए थे। हिंदी की वजह से ही उनका यह भाषण ऐतिहासिक हो गया।
संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में पहला संबोधन
45 साल पहले 4 अक्टूबर 1977 वह ऐतिहासिक दिन था जब संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देकर अटल बिहारी वाजपेयी ने इतिहास रचा था। उस समय देश में मोरारजी देसाई की अगुवाई में जनता पार्टी की सरकार थी और वाजपेयी विदेश मंत्री के रूप में काम कर रहे थे। संयुक्त राष्ट्र महासभा में उनका पहला संबोधन था और उन्होंने इस ऐतिहासिक संबोधन को हिंदी में देने का फैसला किया था। उस दिन संयुक्त राष्ट्र महासभा में इतिहास रचा गया क्योंकि पहली बार वैश्विक नेताओं के सामने हिंदी गूंजी थी।
इतिहास में दर्ज हुआ अटल का नाम
अटल बिहारी वाजपेयी मातृभाषा हिंदी थी और उन्होंने वैश्विक मंच पर हिंदी में भाषण देने में संकोच नहीं किया। वैसे पहले उनका भाषण अंग्रेजी में लिखा गया था मगर वाजपेयी ने बड़े ही गर्व के साथ इस भाषण का हिंदी अनुवाद पढ़ा। हिंदी में दिया गया उनका भाषण सुनकर यूएन तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा था। संयुक्त राष्ट्र महासभा में पहली बार हिंदी में भाषण देकर अटल ने अपना नाम इतिहास में दर्ज करा लिया।
वैश्विक समस्याओं का जिक्र
1977 में आपातकाल के बाद देश में जनता पार्टी की नई सरकार का गठन हुआ था और अटल ने इस बात का जिक्र करते हुए कहा था कि छह महीने के अंत समय में भी हमने उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं। उनका कहना था कि भारत में मूलभूत मानवाधिकार फिर प्रतिष्ठित किए जा चुके हैं और भय और आतंक के जिस माहौल ने हमें घेर लिया था वह पूरी तरह समाप्त हो गया है। अफ्रीका के रंगभेद का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा था कि लोगों को स्वतंत्रता और सम्मान के साथ जीवन जीने का अधिकार है।
संयुक्त राष्ट्र में वसुधैव कुटुंबकम का जिक्र
संयुक्त राष्ट्र महासभा में संबोधन के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा- अध्यक्ष महोदय, 'वसुधैव कुटुंबकम' की परिकल्पना बहुत पुरानी है। भारत में सदा से हमारा इस धारणा में विश्वास रहा है कि सारा संसार एक परिवार है। अनेकानेक प्रयत्नों और कष्टों के बाद संयुक्त राष्ट्र के रूप में इस स्वप्न के अब साकार होने की संभावना है। यहां मैं राष्ट्रों की सत्ता और महत्ता के बारे में नहीं सोच रहा हूं। आम आदमी की प्रतिष्ठा और प्रगति मेरे लिए कहीं अधिक महत्व रखती है। अंतत: हमारी सफलताएं और असफलताएं केवल एक ही मापदंड से नापी जानी चाहिए कि क्या हम पूरे मानव समाज वस्तुत: हर नर-नारी और बालक के लिए न्याय और गरिमा के प्रति प्रयत्नशील हैं।
पक्ष और विपक्ष दोनों करते थे अटल जी का सम्मान
अटल में इतनी ढेर सारी खूबियां थी कि विपक्षी दलों के नेता भी उनके मुरीद थे। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर डॉ मनमोहन सिंह तक सभी प्रधानमंत्रियों ने अटल को पूरा सम्मान दिया। संसद में उनके भाषण के दौरान विपक्षी सांसद भी मुद्दों पर मेज थपथपाने पर मजबूर हो जाया करते थे। देश में बहुत कम ऐसे नेता हुए हैं जिन्हें सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की ओर से इतना ज्यादा सम्मान मिला हो।
विपक्षी नेता के रूप में भी किया प्रतिनिधित्व
अटल ने एक बार विपक्ष में रहते हुए यूएन में भारत का प्रतिनिधित्व किया और कश्मीर पर पाकिस्तान के मंसूबों को पूरी तरह नाकाम कर दिया। 1994 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने विपक्ष में होने के बावजूद वाजपेयी को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग भेजे गए प्रतिनिधिमंडल के नेतृत्व की बड़ी जिम्मेदारी सौंपी थी। पाकिस्तान ने विरोधी दल के नेता को जिनेवा भेजने पर हैरानी भी जताई थी मगर अटल का व्यक्तित्व ही ऐसा था कि वे सभी को प्रिय थे।
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