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    लोकसभा में अहम विधेयक पारित, अब हो सकेगा पिछड़े वर्ग का सशक्तिकरण

    By Monika MinalEdited By:
    Updated: Mon, 09 Aug 2021 01:38 PM (IST)

    आज लोकसभा में संविधान (संशोधन) विधेयक 2021 समेत सीमित देयता भागीदारी (संशोधन) विधेयक 2021 व डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (संशोधन) विधेयक 2021 पारित किया गया। इसके बाद विपक्ष की नारेबाजी के कारण सदन को चौथी बार स्थगित करना पड़ा।

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    लोकसभा में अहम विधेयक पारित, अब हो सकेगा पिछड़े वर्ग का सशक्तिकरण

    नई दिल्ली, एएनआइ। विपक्ष के हंगामों के बीच सोमवार को लोकसभा ने अहम संविधान (127वां संशोधन) विधेयक पारित कर दिया। केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने आज सदन में संविधान (127वां संशोधन) विधेयक पटल पर रखा ताकि राज्य अपनी सामाजिक व आर्थिक तौर पर पिछड़ी आबादी की पहचान कर सकें। इस विधेयक के प्रस्ताव को पेश करते ही सदन 12.30 बजे तक स्थगित कर दी गई। इससे पहले आज सदन 11.30 बजे फिर 12 बजे स्थगित हो चुकी थी।

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    केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा, 'अरुणाचल प्रदेश की कई जनजातियों का नाम जनजातियों की सूची से अंग्रेजों के समय से ही गायब था। इसे ठीक करने के लिए सरकार यह विधेयक ले कर आई है।' राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड्गे ने आज सुबह कहा था कि विपक्ष संविधान के इस संशोधन विधेयक को अपना समर्थन देगी।

    केंद्रीय आयुष मंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने नेशनल कमीशन फॉर होम्योपैथी (संशोधन) विधेयक, 2021 पेश किया।मल्लिकारर्जुन खड्गे ने बताया, 'इस विधेयक में संशोधन से राज्यों को पिछड़े वर्ग की पहचान करने का अधिकार मिलेगा। इसी साल मई में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि केवल केंद्र ऐसा कर सकती है। देश की आधे से अधिक आबादी पिछड़े वर्ग के हैं। विधेयक पेश किया जाएगा इसपर विचार होगा और उसी दिन इसे पारित किया जाएगा।' 19 जुलाई को संसद के मानसून सत्र की हंगामेदार शुरुआत हुई जो अब तक जारी है। इस बीच लोकसभा ने किसी तरह कुछ विधेयकों को पारित करने में सफलता हासिल की है।

    केंद्रीय मंत्री ने कहा कि विभिन्न मुद्दों पर विपक्ष का विरोध राजनीतिक है। उन्होंने विधेयक के संबंध में कहा कि विपक्षी दलों के शासन वाले राज्यों के मुख्यमंत्री भी लगातार इसे लाने की मांग कर रहे हैं। विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि संविधान 102वां अधिनियम 2018 को पारित करते समय विधायी आशय यह था कि यह सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की केंद्रीय सूची से संबंधित है। यह इस तथ्य को मान्यता देता है कि 1993 में सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गो की स्वयं की केंद्रीय सूची की घोषणा से भी पूर्व कई राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों की अन्य पिछड़े वर्गों की अपनी राज्य सूची/ संघ राज्य क्षेत्र सूची हैं।