Move to Jagran APP

जब गढ़वाल राइफल्‍स के जवानों ने रातोंरात ढहा दी थी जर्मन सैनिकों की दीवार...

जब फ्रांस में ब्रिटिश सैन्य टुकड़ियों के बीच दीवार बनी जर्मन सेना को कोई हिला नहीं पा रहा था, तब गढ़वाल के नायक दरवान सिंह नेगी के नेतृत्व वाली ब्रिटिश-भारतीय सेना ने रातोंरात इस दीवार को ढहा दिया।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 11 Nov 2018 04:32 PM (IST)Updated: Sun, 11 Nov 2018 04:35 PM (IST)
जब गढ़वाल राइफल्‍स के जवानों ने रातोंरात ढहा दी थी जर्मन सैनिकों की दीवार...
जब गढ़वाल राइफल्‍स के जवानों ने रातोंरात ढहा दी थी जर्मन सैनिकों की दीवार...

लखनऊ [निशांत यादव]। प्रथम विश्वयुद्ध को समाप्त हुए 100 वर्ष पूरे हो गए हैं। इस युद्ध में दुनियाभर की फौजें शामिल थीं, लेकिन इनमें भारतीय सैनिकों के साहस और वीरता ने पूरी दुनिया में एक अलग छाप छोड़ी। यही वजह थी कि जब फ्रांस में ब्रिटिश सैन्य टुकड़ियों के बीच दीवार बनी जर्मन सेना को कोई हिला नहीं पा रहा था, तब गढ़वाल के नायक दरवान सिंह नेगी के नेतृत्व वाली ब्रिटिश-भारतीय सेना ने रातोंरात इस दीवार को ढहा दिया। इस अप्रतिम विजय के लिए ब्रिटेन के किंग जॉर्ज ने स्वयं रणभूमि में जाकर उन्हें विक्टोरिया क्रॉस दिया था।वह इस वीरता पुरस्कार को पाने वाले पहले भारतीय थे।

loksabha election banner

अपूर्व साहस का वह दौर 
अगस्त 1914 में भारत से 1/39 गढ़वाल और 2/49 गढ़वाल राइफल्स की दो बटालियन को प्रथम विश्व युद्ध में हिस्सा लेने भेजा गया। अक्टूबर 1914 में दोनो बटालियन फ्रांस पहुंची। वहां भीषण ठंड में दोनों बटालियन को जर्मनी के कब्जे वाले फ्रांस के हिस्से को खाली कराने का लक्ष्य दिया गया। इस इलाके में जर्मन सेनाओं के कब्जे के चलते ग्रेट ब्रिटेन के नेतृत्व वाली दो सैन्य टुकड़ियां आपस में नहीं मिल पा रही थीं।

दिया गया विक्टोरिया क्रॉस
नायक दरवान सिंह नेगी के नेतृत्व में 1/39 गढ़वाल राइफल्स ने 23 और 24 नवंबर 1914 की मध्यरात्रि हमला कर जर्मनी से सुबह होने तक पूरा इलाका मुक्त करा लिया। इस युद्ध में दरवान सिंह नेगी के अदम्य साहस से प्रभावित होकर किंग जार्ज पंचम ने सात दिसंबर 1914 को जारी हुए गजट से दो दिन पहले पांच दिसंबर 1914 को ही युद्ध के मैदान में पहुंचकर नायक दरवान सिंह नेगी को विक्टोरिया क्रॉस प्रदान किया था। नायक दरवान सिंह नेगी की वीरता के चलते गढ़वाल राइफल्स को बैटल आफ फेस्टूवर्ट इन फ्रांस का खिताब दिया गया। इसकी याद में उत्तराखंड के लैंसडाउन में स्थापित मुख्यालय में एक संग्रहालय बनाया गया है। इसके बाद नायक दरवान सिंह 1915 में आफिसर बनाए गए। उनको जमादार पद मिला। साथ ही उनके कमीशंड होने का प्रमाणपत्र भी जारी किया गया। 1924 में उन्होंने समय से पहले स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी।

तीसरी पीढ़ी भी सेना में 
दरवान सिंह नेगी की मृत्यु 24 जून 1950 को 70 वर्ष की आयु में हुई। उनके तीन बेटे थे। उनके बड़े बेटे पृथ्वी सिंह नेगी उत्तराखंड में एडीएम पद पर थे। उनका देहांत हो चुका है। जबकि, दूसरे बेटे डॉ. दलबीर सिंह नेगी अमेरिका के स्टेनफर्ड रिसर्च इंस्टीट्यूट में हैं। जबकि छोटे बेटे कर्नल बीएस नेगी हैं। कर्नल नेगी को गढ़वाल राइफल्स में 1964 में कमीशन मिला था, जिसमें दरवान सिंह नेगी थे। वर्तमान में दरवान सिंह नेगी के पौत्र कर्नल नितिन नेगी को भी 1994 में गढ़वाल रेजीमेंट में कमीशंड किया गया।

अपने लिए कुछ नहीं मांगा 
विक्टोरिया क्रॉस सम्मान मिलने के बाद जब अंग्रेजी प्रशासन ने दरवान सिंह नेगी से कुछ मांगने को कहा, तो उन्होंने गढ़वाल मंडल के कर्ण प्रयाग में एक इंग्लिश मीडियम स्कूल की स्थापना करने और ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक रेलवे लाइन बिछवाने की इच्छा जताई। उस वक्त गढ़वाल राइफल्स की दोनों बटालियन की 87 फीसद आबादी इन इलाकों से आती थी। इसके बाद 1918 में अंग्रेजों ने कर्ण प्रयाग मिडल स्कूल की स्थापना की। उत्तराखंड सरकार ने अब इसे इंटर तक कर दिया है। इसका नाम वीरचक्र दरवान सिंह राजकीय इंटरमीडिएट कॉलेज रखा गया। वहीं, 1918 से 1924 तक रेलवे लाइन बिछाने का सर्वे भी अंग्रेजों द्वारा किया गया। हालांकि तब जमीन की कमी के कारण यह प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो सका।

जानें आखिर किस मंशा से भारत ने प्रथम विश्‍व युद्ध में लिया था भाग, क्‍यों था कांग्रेस का समर्थन
जब भूख से बिलखती बच्‍ची को फ्लाइट अटेंडेंट ने पिलाया अपना दूध तो सभी ने कहा- 'वाह'  


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.