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    सेंगोल के सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक होने पर कांग्रेस ने उठाए सवाल, जयराम ने कहा- कोई दस्तावेजी साक्ष्य नहीं

    By Jagran NewsEdited By: Devshanker Chovdhary
    Updated: Fri, 26 May 2023 10:42 PM (IST)

    कांग्रेस के संचार महासचिव जयराम रमेश के अनुसार लॉर्ड माउंटबेटन सी राजगोपालाचारी और जवाहरलाल नेहरू की ओर से सेंगोल को अंग्रेजों द्वारा भारत में सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में वर्णित करने का कोई दस्तावेजी साक्ष्य नहीं है।

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    सेंगोल के सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक होने पर कांग्रेस ने उठाए सवाल।

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। संसद के उद्घाटन पर छिड़ी रार के बीच अब सेंगोल के सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक होने को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। कांग्रेस का दावा है कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सेंगोल को स्वीकार किया था, लेकिन इसके कोई ऐतिहासिक दस्तावेज या सबूत नहीं कि इसे सत्ता हस्तातंरण का प्रतीक माना गया था।

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    सेंगोल विवाद पर क्या बोले जयराम रमेश?

    कांग्रेस के संचार महासचिव जयराम रमेश के अनुसार लॉर्ड माउंटबेटन, सी राजगोपालाचारी और जवाहरलाल नेहरू की ओर से सेंगोल को अंग्रेजों द्वारा भारत में सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में वर्णित करने का कोई दस्तावेजी साक्ष्य नहीं है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ तमिलनाडु में उनका गुणगान करने वाले अपने राजनीतिक फायदे के लिए सेंगोल का इस्तेमाल कर रहे हैं।

    जयराम रमेश ने उठाया सवाल

    सेंगोल के सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक होने पर उठाए गए सवालों से जुड़ी एक रिपोर्ट ट्वीट पर साझा करते हुए जयराम रमेश ने सरकार पर यह निशाना साधा। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या यह कोई आश्चर्य की बात है कि नई संसद को व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी के झूठे आख्यानों से पवित्र किया जा रहा है? अधिकतम दावों, न्यूनतम साक्ष्यों के साथ भाजपा-आरएसएस के ढोंगियों का एक बार फिर से पर्दाफाश हो गया है।

    उन्होंने कहा कि तत्कालीन मद्रास प्रांत में एक धार्मिक प्रतिष्ठान द्वारा कल्पना की गई और मद्रास शहर में तैयार की गई एक राजसी राजदंड (सेंगोल) वास्तव में अगस्त 1947 में पंडित नेहरू को प्रस्तुत किया गया था। लेकिन माउंटबेटन, राजाजी और नेहरू द्वारा इस राजदंड को भारत में ब्रिटिश सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में वर्णित करने का कोई दस्तावेजी साक्ष्य नहीं है।

    जयराम रमेश ने बताया झूठ

    जयराम ने कहा कि इस आशय के सभी दावे बोगस हैं और पूरी तरह कुछ लोगों के दिमाग में निर्मित हैं जो व्हाट्स एप में फैल गया है। अब मीडिया में इसका ढोल पीटा जा रहा है मगर राजाजी से जुड़े दो विद्वानों ने इस दावे पर गंभीर संदेह जताया है। उन्होंने कहा कि इस राजदंड को बाद में इलाहाबाद संग्रहालय में प्रदर्शन के लिए रखा गया था। 14 दिसंबर, 1947 को नेहरू ने वहां जो कुछ कहा, वह सार्वजनिक रिकॉर्ड का मामला है चाहे लेबल कुछ भी कहे।

    कांग्रेस महासचिव ने कहा कि सेंगोल का इस्तेमाल अब पीएम और उनके ढोल-नगाड़े वाले तमिलनाडु में अपने राजनीतिक फायदे के लिए कर रहे हैं। उनके मुताबिक यही इस ब्रिगेड की विशेषता है जो अपने विकृत उद्देश्यों के अनुरूप तथ्यों को उलझाती है। जयराम ने संसद के उद्घाटन पर जारी विवाद में कहा कि असली सवाल यह है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को नई संसद का उद्घाटन करने की अनुमति क्यों नहीं दी जा रही है? सेंगोल को नए संसद भवन में लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पीछे लगाए जाने की तैयारी है।

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