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    Congress Chintan Shivir: कांग्रेस के अतीत और वर्तमान की चुनौतियों से लेकर भविष्य की संभावनाओं पर एक नजर

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Fri, 13 May 2022 11:56 AM (IST)

    Congress Chintan Shivir कांग्रेस का नौ वर्ष बाद होगा संगठन पर मंथन जी-23 के सभी प्रमुख नेताओं को उदयपुर आने का आमंत्रण दिया गया है। वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल को भी चिंतन शिविर का निमंत्रण भेजना यह दिखाता है कि समझौते के प्रयास जारी हैं।

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    पढ़िए कांग्रेस के भविष्य की संभावनाओं के बारे में यह विशेष रिपोर्ट:

    नेशनल डेस्क, नई दिल्ली: देश में विपक्ष का अगुआ बनने के अथक प्रयासों के बीच कांग्रेस एक कोशिश उदयपुर में करने जा रही है। चिंतन शिविर में कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात तो अस्तित्व पर आया संकट है। राजनीति के मैदान में भाजपा से मुकाबले के साथ उसके लिए खुद के भीतर पनप रहे असंतोष और विघटन से निपटना भी बड़ी चुनौती है। प्रश्न है कि क्षत्रपों की आसमान छूती महत्वाकांक्षाओं के बीच कांग्रेस अपने धरातल को कैसे सुरक्षित रखेगी। 

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    2013 स्थान-जयपुर, अवसर-कांग्रेस का चिंतन शिविर, परिणाम-राहुल गांधी उपाध्यक्ष चुने गए। यह तब की बात है जब देश में कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन यानी संप्रग का दूसरा कार्यकाल चल रहा था। दस वर्ष सत्ता में रहने का एटीट्यूड कांग्रेस में दिखता था, हां, भविष्य का आभाष नहीं था।

    2022 स्थान-उदयपुर, अवसर-कांग्रेस का चिंतन शिविर, परिणाम-अभी ज्ञात नहीं। महज नौ वर्ष में तस्वीर पूरी तरह से बदल चुकी है। दस वर्ष सत्ता में रहने का एटीट्यूड आज नौ वर्ष से एक सशक्त विपक्ष भी न बन पाने की विवशता में बदलता दिख रहा है।

    कल, आज और कल में घूमती पार्टी : यही राजनीति है, कल से आज और फिर कल के बीच घूमता समय चक्र। इसी समय चक्र की तरह फिलहाल कांग्रेस भी अस्तित्व बचाए रखने और सत्ता में वापसी के चक्रव्यूह के बीच घूमते हुए उदयपुर की ओर बढ़ चली है। देश की सत्ता पर 55 वर्ष तक काबिज रहने वाली कांग्रेस के लिए यह बेहद अहम चिंतन शिविर है और कहा जा रहा है कि वहां पार्टी में नई जान फूंकने का फार्मूला खोजा जाएगा। सियायत बदल चुकी है, मुद्दे बदल चुके हैं, राजनीति के तौर-तरीके भी नए हैं, ऐसे में पुरानी परंपराओं से काम नहीं चल सकता है, यह बात कांग्रेस नेताओं के जेहन में भी होगी।

    युवा बनाम बुजुर्ग कांग्रेसी का विवाद सुलझेगा क्या : कांग्रेस में एक विवाद युवा बनाम बुजुर्ग नेताओं के बीच है। बुजुर्ग नेता कहते हैं कि हमने खून-पसीने से पार्टी को सींचा है, हमें तवज्जो मिलनी चाहिए। युवा वर्ग कहता है कि अब यहां के हम सिकंदर, अपने तरीके से पार्टी को आगे ले जाएंगे। अधिकांश बुजुर्ग नेताओं ने हाईकमान को पत्र लिखकर अपनी नाराजगी जाहिर की थी। इन्हें जी-23 कहा गया। कांग्रेस हाईकमान द्वारा इन अंसतुष्ट नेताओं को मनाने के लिए प्रयास भी किए गए और अध्यक्ष द्वारा इन्हें जिम्मेदारी भी सौंपी गई।

    छह विषय, छह समूह और तीन दिन : चिंतन शिविर का आरंभ अध्यक्ष सोनिया गांधी के संबोधन से होगा। कांग्रेस ने सभी प्रतिभागियों को छह समूहों में बांट कर एक-एक विषय आवंटित कर दिया है। 14 मई को पूरे दिन चर्चा के बाद हर समूह अपने निष्कर्ष तैयार करेंगे। निष्कर्षों पर कांग्रेस कार्यसमिति 15 मई को चिंतन करेगी और मंजूरी देगी। अंतिम सत्र में राहुल गांधी के संबोधन के बाद कांग्रेस उदयपुर नव संकल्प प्रस्ताव पारित किया जाएगा। छह विषयों में राजनीतिक, सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण, इकोनमी, संगठन, किसान व कृषि और युवा सशक्तीकरण पर मंथन होगा।

    लोकसभा चुनाव से पहलेराज्यों में होगी चुनौती : लोकसभा चुनाव 2024 से पहले कांग्रेस को कई राज्यों में विधानसभा चुनाव की वैतरिणी भी पार करनी है। इस वर्ष गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव हैं तो वर्ष 2023 में राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसमें राजस्थान, छत्तीसगढ़ में उस पर सरकार बचाने का दबाव भी होगा।

    2003 शिमला चिंतन शिविर के बाद मिली थी सत्ता वर्ष 2013 से पहले वर्ष 2003 में शिमला में कांग्रेस ने चिंतन शिविर का आयोजन किया था। उस समय भी वह सत्ता से बाहर थी और वापसी की राह खोज रही थी। यह उसके लिए फलदायी साबित हुआ और वर्ष 2004 में पार्टी विपक्षी एकता का मुकुट पहन कांग्रेस सत्ता के सिंहासन पर जा बैठी और दस वर्ष तक काबिज रही। कुछ वैसी ही स्थितियां इस उदयपुर चिंतन शिविर के दौरान भी हैं। सत्ता से दूरी बढ़ रही है और विपक्ष के अगुआ का मुकुट भी फिलहाल खिसक चुका है। क्या संभालें और क्या जानें दें के बीच पार्टी उदयपुर में अपने उदय की राह खोजेगी। शिमला से पहले 1998 में पचमढ़ी में कांग्रेस चिंतन शिविर बुलाया गया था।

    इतिहास के झरोखे से : 1967 में पहली बार कांग्रेस को बड़े पैमाने पर विघटन का दंश झेलना पड़ा। उसी समय पहली बार राज्यों में कांग्रेस कमजोर हुई जब उसे बिहार, केरल, ओडिशा (तब उड़ीसा), तमिलनाडु, पंजाब और बंगाल में सत्ता नहीं मिली और वहां गैर कांग्रेसी सरकारें बनीं।

    वो जो कांग्रेस से चले गए : हालिया समय की बात करें तो पहले राहुल गांधी की युवा ब्रिगेड के सिपहसालार ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद भाजपा के हो गए। सचिन पायलट को किसी प्रकार रोका गया, र्मिंलद देवड़ा नाराज बताए जाते हैं। प्रियंका चतुर्वेदी शिवसेना में चली गईं। प्रणब मुखर्जी, अर्जुन सिंह, पी. चिदंबरम ने भी कांग्रेस से अलग हो पार्टी बनाई लेकिन बाद में वापस आ गए। जम्मू-कश्मीर में सत्ता में रह चुकी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) भी कांग्रेस से ही टूटकर बनी है।

    ऐसे होती रही कांग्रेस में टूट-फूट :

    • 1951 जेबी कृपलानी ने किसान मजदूर प्रजा पार्टी बनाई जबकि 1956 में सी. राजगोपालाचारी ने इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी बना ली।
    • 1967 चौधरी चरण सिंह ने अलग होकर भारतीय क्रांति दल बनाया। यह आगे चलकर लोकदल रहा और अब राष्ट्रीय लोकदल है।
    • 1969 इंदिरा गांधी को कांग्रेस से निष्काषित किया गया और उन्होंने कांग्रेस (आर) बनाई जो बाद में कांग्रेस (आई) और फिर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस बनी।
    • 1988 राजीव गांधी के भरोसेमंद विश्वनाथ प्रताप सिंह छिटके और जनमोर्चा बनाया।
    • 1998 ममता बनर्जी अलग हुईं और बंगाल में तृणमूल कांग्रेस बनाकर आज सीएम हैं।
    • 1999 मराठा क्षत्रप शरद पवार नाराज हुए और पीए संगमा व तारिक अनवर संग राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी बनाई।
    • 2011 जगनमोहन रेड्डी वाईएसआर कांग्रेस बनाकर आज आंध्र प्रदेश में सत्ता में हैं।