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    पहले शीर्ष संगठन में फेरबदल, अब कई राज्यों में बदलाव की बढ़ी सरगर्मी; कांग्रेस की क्या है प्लानिंग?

    राजस्थान के अगले चुनाव में अभी करीब चार साल हैं मगर पार्टी भविष्य की चुनौतियों के हिसाब से अभी से सूबे में नए नेतृत्व को आगे लाने के लिए बेचैन है। सिर्फ राजस्थान ही नहीं पंजाब गुजरात कर्नाटक जैसे राज्य हैं जहां प्रदेश संगठन के नेतृत्व में फेरबदल को लेकर विचार मंथन किया जा रहा है। महाराष्ट्र और ओडिशा में इसी हफ्ते नए प्रदेश अध्यक्षों की नियुक्ति की गई है।

    By Jagran News Edited By: Swaraj Srivastava Updated: Sat, 15 Feb 2025 08:07 PM (IST)
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    चुनाव वाले राज्यों पर कांग्रेस की विशेष निगाहें (फोटो: पीटीआई)

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कांग्रेस के शीर्ष संगठन में हुए फेरबदल के बाद अब कुछ राज्यों के संगठनात्मक ढांचे में बदलाव को लेकर सरगर्मी बढ़ गई है। पार्टी की निगाहें विशेष रूप से उन राज्यों पर हैं, जहां अगले कुछ वर्षों के दौरान चुनाव होने हैं और जहां कांग्रेस चुनावी दौड़ में प्रमुख भागीदार है।

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    इस क्रम में पंजाब, गुजरात, राजस्थान ही नहीं, कर्नाटक जैसे राज्य हैं, जहां प्रदेश संगठन के नेतृत्व में फेरबदल को लेकर विचार मंथन किया जा रहा है।

    केंद्रीय संगठन में आ सकते हैं गहलोत

    छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम भूपेश बघेल को महासचिव बनाकर जिस तरह केंद्रीय राजनीति में भूमिका देकर छत्तीसगढ़ में दूसरी पीढ़ी के नेतृत्व को उभारने का दांव चला गया है, उसे देखते हुए यह चर्चा भी गरमाने लगी है कि राजस्थान के पूर्व सीएम दिग्गज नेता अशोक गहलोत को भी केंद्रीय संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जा सकती है।

    राजस्थान के पिछले विधानसभा चुनाव में हार के बाद से अशोक गहलोत पार्टी में अभी किसी आधिकारिक पद पर नहीं है। राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को सूबे के सामाजिक समीकरण के कारण अभी बदले जाने के कोई संकेत नहीं हैं।

    राजस्थान में नये नेतृत्व की तलाश

    • ऐसे में गहलोत को पार्टी के शीर्ष संगठन में महासचिव की जिम्मेदारी सौंप उन्हें राजस्थान से केंद्रीय राजनीति में लाने की योजना पर काफी अर्से से अंदरूनी मंत्रणा चल रही है। राजस्थान के अगले चुनाव में अभी करीब चार साल हैं, मगर पार्टी भविष्य की चुनौतियों के हिसाब से अभी से सूबे में नए नेतृत्व को आगे लाने के लिए बेचैन है।
    • गहलोत के प्रतिस्पर्धी युवा नेता सचिन पायलट पहले से ही महासचिव के तौर पर केंद्रीय राजनीति में सक्रिय हैं। गहलोत की दिल्ली की राजनीति में वापसी हुई, तो पायलट के लिए राजस्थान की राह एक बार फिर खुल सकती है। एआईसीसी में शुक्रवार को हुए फेरबदल में जम्मू-कश्मीर के प्रभारी पद से मुक्त किए भरत सोलंकी को एक बार फिर गुजरात में सक्रिय करने की नेतृत्व की मंशा दिख रही है।
    • गुजरात के पिछले विधानसभा चुनाव में बेहद निराशाजनक प्रदर्शन के बाद लगभग छिन्न-भिन्न हो चुके प्रदेश कांग्रेस के ढांचे में ऊर्जा भरने के लिए पार्टी नेतृत्व के पास सोलंकी और शक्ति सिंह गोहिल जैसे ही कुछ चेहरे बचे हैं।

    इन राज्यों में हुई नियुक्ति

    • वरिष्ठ नेता अर्जुन मोडवाड़िया के पिछले साल कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हो जाने के बाद अगले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर संगठन को लड़ाई के लिए खड़ा करना कांग्रेस नेतृत्व की बड़ी चुनौती है। ऐसे में कांग्रेस के पास सोलंकी जैसे गिने-चुने प्रमुख चेहरे ही विकल्प हैं।
    • कर्नाटक में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी अभी भी डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार के पास है और वहां भी पार्टी के अंदरूनी सत्ता समीकरण की सियासी हलचलें इन दिनों तेज है। महाराष्ट्र और ओडिशा में इसी हफ्ते नए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्षों की नियुक्ति की गई है।
    • बघेल को पंजाब का प्रभारी महासचिव बनाए जाने के बाद प्रदेश संगठन में बदलाव की चर्चाएं भी गरम होने लगी है। पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वारिंग वैसे तो पार्टी हाईकमान की पसंद हैं, मगर सूबे के अगले चुनाव में सत्ता पर दांव लगाने के लिए नेतृत्व परिवर्तन के विकल्प पर मंत्रणाएं की जा रही है।

    बिहार में पार्टी के लिए चुनौती

    चर्चा गरम है कि पूर्व मुख्यमंत्री लोकसभा सांसद चरणजीत सिंह चन्नी सूबे की सियासत में लौटने के लिए उत्सुक हैं और इसीलिए एआईसीसी में महासचिव की भूमिका के लिए उन्होंने रूचि नहीं दिखाई। कांग्रेस के शीर्ष संगठन में फेरबदल के बीच शनिवार को बिहार के लिए नियुक्त प्रभारी कृष्णा अलावरू को लेकर पार्टी के गलियारे में चर्चा गरम रही कि लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव की धुरंधर राजनीति से निपटना उनके लिए सहज नहीं होगा।

    दिग्विजय सिंह, सुशील कुमार शिंदे, शक्ति सिंह गोहिल जैसे कद के नेताओं के लिए गठबंधन की सियासत में लालू प्रसाद की राजद को साधना आसान नहीं रहा तो युवा अलावरू को बिहार का जिम्मा सौंपकर पार्टी की राजनीति को बचाए रखना चुनौतीपूर्ण होगा।

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