Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    कांग्रेस ने आपराधिक कानूनों में बदलाव पर किया विचार-विमर्श का आह्वान, कहा- विशेषज्ञों को किया जाए शामिल

    By AgencyEdited By: Sonu Gupta
    Updated: Sun, 13 Aug 2023 05:34 PM (IST)

    कांग्रेस ने रविवार को भारत में आपराधिक कानून में बदलाव के लिए केंद्र द्वारा संसद में लाए गए तीन विधेयकों पर विशेषज्ञों और आम जनता को शामिल करते हुए विचार-विमर्श का आह्वान किया है। कांग्रेस महासचिव रणदीप सुरजेवाला ने अपने एक बयान में कहा कि केंद्र सरकार ने 11 अगस्त को बिना किसी पूर्व सूचना के ही तीनों विधेयकों को पेश कर दिया।

    Hero Image
    आपराधिक कानून में बदलाव के लिए लाए गए विधेयक पर हो विचार-विमर्शः रणदीप सुरजेवाला।

    नई दिल्ली, पीटीआई। कांग्रेस ने रविवार को भारत में आपराधिक कानून में बदलाव के लिए केंद्र द्वारा संसद में लाए गए तीन विधेयकों पर विशेषज्ञों और आम जनता को शामिल करते हुए विचार-विमर्श का आह्वान किया है। कांग्रेस महासचिव रणदीप सुरजेवाला ने अपने एक बयान में कहा कि केंद्र सरकार ने 11 अगस्त को बिना किसी पूर्व सूचना के ही तीनों विधेयकों को पेश कर दिया। 

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    विधेयक पर नहीं लिया गया विशेषज्ञों का राय

    उन्होंने कहा कि सदन में विधेयक को लाने से पहले इस पर न तो पहले से कोई सूचना दी गई और न ही कानूनी विशेषज्ञों, न्यायविदों, अपराधविदों और अन्य हितधारकों से सुझाव लिए गए और देश के आपराधिक कानून तंत्र को गुप्त और अपारदर्शी तरीके से पुनर्गठित किया गया।

    अमित शाह पर लगाया आरोप

    कांग्रेस नेता सुरजेवाला ने आगे कहा कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बिल को पेश करते हुए इस पर अपनी टिप्पणी की थी, जिसको देखकर लगता है कि वह खुद पूरी प्रक्रिया से बाहर, अनभिज्ञ और अनभिज्ञ हैं। कांग्रेस नेता ने विधेयकों के माध्यम से किए गए परिवर्तनों पर शाह की टिप्पणियों का विरोध करते हुए झूठ बोलने और गुमराह करने का आरोप लगाया।  

    केंद्रीय मंत्री ने पेश किया है विधेयक

    मालूम हो कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में भारतीय न्याय संहिता विधेयक, 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक, 2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 पेश किया है, जो क्रमशः भारतीय दंड संहिता, 1860, आपराधिक प्रक्रिया अधिनियम, 1898 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 का स्थान लेगा।

    मनीष तिवारी ने किया विचार-विमर्श का आह्वान

    कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने भी विधेयकों पर व्यापक विचार-विमर्श का आह्वान किया। उन्होंने इंटरनेट मीडिया मंच 'एक्स' पर कहा, 'इनमें से कुछ अधिनियमों विशेषकर सीआरपीसी में राज्य संशोधन हैं क्योंकि कानून-व्यवस्था राज्य का विषय है। इन अधिनियमों में प्रत्येक प्रविधान पर पिछले 100-150 वर्षों में काफी मुकदमेबाजी हुई है और प्रत्येक प्रविधान की प्रिवी काउंसिल, संघीय अदालत, सुप्रीम कोर्ट, विभिन्न हाई कोर्टों और कुछ मामलों में अधीनस्थ अदालतों द्वारा भी न्यायिक फैसलों के माध्यम से व्याख्या की गई है।'

    संयुक्त समिति गठन करने की मांग

    उन्होंने कहा कि प्रविधानों की व्याख्या करने वाले न्यायिक फैसलों के आलोक में तीनों नए विधेयकों के प्रत्येक प्रविधान की गंभीरता से पड़ताल करने की जरूरत है। इसलिए लोकसभा स्पीकर ओम बिरला, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा वकीलों, सेवानिवृत्त न्यायाधीशों, पूर्व पुलिस अधिकारियों/अधिकारियों, न्यायविदों और मानव, महिला और नागरिक अधिकार आंदोलनों में सक्रिय सदस्यों से युक्त संसद की एक संयुक्त समिति का गठन किया जाए।

    'तानाशाही' लाना चाहती है सरकार: सिब्बल

    पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने बीएनएस बिल को असंवैधानिक करार देते हुए आरोप लगाया कि सरकार औपनिवेशिक युग के कानूनों को खत्म करने की बात करती है, लेकिन वह ऐसे कानूनों के जरिये 'तानाशाही' लाना चाहती है।

    राज्यसभा सदस्य सिब्बल ने सरकार से आइपीसी, सीआरपीसी और भारतीय साक्ष्य अधिनियम बदलने के लिए लाए गए तीनों विधेयकों को वापस लेने का आह्वान किया।

    उन्होंने कहा, सरकार ऐसे कानून बनाना चाहती है, जिनसे सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्टों के न्यायाधीशों, मजिस्ट्रेटों, लोक सेवकों, कैग (नियंत्रक और महालेखा परीक्षक) और अन्य सरकारी अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई की जा सके।