क्षेत्रीय दलों को बेचैन करेगा कांग्रेस का रुख; आसान नहीं होगा तृणमूल, सपा और AAP की दूरियां पाटना
पटना में 12 जून को प्रस्तावित बैठक की मेजबानी जदयू-राजद के पास है। अभी तक 16 बड़े क्षेत्रीय दलों ने पटना आने पर सहमति जताई है। ममता बनर्जी शरद पवार एवं अरविंद केजरीवाल जैसे नेता बैठक में आने के लिए तैयार हैं।
नई दिल्ली, अरविंद शर्मा। भाजपा के विरुद्ध विपक्षी एकता के प्रयासों के तहत पटना में प्रस्तावित बैठक से पहले राजनीतिक घटनाक्रमों ने एकता के पैरोकार दलों की बेचैनी बढ़ा दी है। बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अधीर रंजन चौधरी का बयान और राहुल गांधी की उपस्थिति में अध्यादेश के मुद्दे पर दिल्ली की बैठक में आम आदमी पार्टी के प्रति कांग्रेस के रुख को एकता प्रयासों में चुनौती के रूप में देखा जा रहा है।
इसी बीच यूपी में दो सीटों के लिए विधान परिषद चुनाव में बसपा के साथ कांग्रेस ने भी सपा से किनारा कर लिया। प्रश्न उठना स्वभाविक है कि आरंभ ऐसा है तो परिणाम कैसा होगा? यही कारण है कि क्षेत्रीय दलों की ओर से कांग्रेस पर लचीला रुख अपनाने का दबाव बनाया जा रहा है।
नीतीश कुमार के प्रयासों का परिणाम दिखने लगा: केसी त्यागी
पटना में 12 जून को प्रस्तावित बैठक की मेजबानी जदयू-राजद के पास है। अभी तक 16 बड़े क्षेत्रीय दलों ने पटना आने पर सहमति जताई है। विपक्षी एकता के इस प्रयास में प्रारंभिक व्यवधानों से सहमति जताते हुए जदयू के मुख्य राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी का कहना है कि पटना की बैठक इन्हीं सारे अंतर्द्वंदों को समाप्त करने के लिए बुलाई जा रही है। नीतीश कुमार के प्रयासों का परिणाम दिखने लगा है। 2014 और 2019 से अलग पहली बार कांग्रेस के साथ क्षेत्रीय दल भी एक बड़े मंच की जरूरत महसूस करने लगे हैं।
ममता बनर्जी, शरद पवार एवं अरविंद केजरीवाल जैसे नेता बैठक में आने के लिए तैयार हैं। त्यागी ने कहा कि ममता के प्रस्ताव पर ही पटना में बैठक बुलाई जा रही है तो अधीर रंजन को ज्यादा अधीर होने की क्या जरूरत है? कांग्रेस को अधीर और अजय माकन जैसे अपने नेताओं पर लगाम लगाने की जरूरत है। क्षेत्रीय दलों का कांग्रेस से कई मोर्चे पर टकराव कर्नाटक में कांग्रेस की जीत से ज्यादा भाजपा की पराजय से विपक्ष में उत्साह है।
पटना बैठक का एजेंडा
भाजपा के विरुद्ध प्रत्येक सीट पर विपक्ष का संयुक्त प्रत्याशी देने के लिए सबको सहमत करना। मगर हाल के राजनीतिक पैंतरों से स्पष्ट है कि दलों की दूरियों को कम करना आसान नहीं होगा। बंगाल में कांग्रेस की तृणमूल से दूरी कांग्रेस के एकमात्र विधायक को तृणमूल में शामिल करने से और बढ़ी है।
इससे नाराज बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन ने तृणमूल पर भाजपा से मिलकर विपक्षी एकता के प्रयासों को कमजोर करने का आरोप मढ़ दिया। कई मसलों पर सहमति के बावजूद उत्तर प्रदेश में सपा एवं कांग्रेस के दिल अलग-अलग धड़क रहे हैं।
इसी बीच आप सांसद संदीप पाठक का मध्य प्रदेश में दिया गया बयान भी अर्थपूर्ण है, जिसमें वह केजरीवाल को प्रधानमंत्री बनाने की बात करने के साथ पंजाब में कांग्रेस एवं दिल्ली में भाजपा को हराने का इतिहास छत्तीसगढ़ एवं मध्यप्रदेश में दोहराने की ताल ठोकते हैं।