छत्तीसगढ़ में 14 मंत्री और 13 आवास, व्यवस्था को लेकर उठे सवाल; क्या अब पूरा होगा बोधघाट का सपना?
छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने 14 मंत्रियों का मंत्रिमंडल बनाया है जिस पर विपक्ष संवैधानिक नियमों की अनदेखी का आरोप लगा रहा है। विपक्ष ने सरकार पर भ्रष्टाचार बढ़ने का भी आरोप लगाया है। दूसरी ओर सीएम साय ने जल संसाधन विभाग की जिम्मेदारी खुद लेकर बोधघाट परियोजना जैसी बड़ी सिंचाई परियोजनाओं को गति देने का संकेत दिया है।
सतीश चंद्र श्रीवास्तव, रायपुर ब्यूरो। इन दिनों प्रदेश में चर्चा का मुख्य विषय मंत्रिमंडल विस्तार है। इसके साथ ही मंत्रियों के विभागों में फेरबदल के समीकरणों पर विश्लेषण भी चल रहा है। मात्र एक मंत्री के कारण बस्तर क्षेत्र की उपेक्षा और सरगुजा से पांच मंत्रियों का मुद्दा भी गर्म है।
उधर, मुख्यमंत्री विष्णु देव साय जापान और दक्षिण कोरिया की यात्रा पर निकल चुके हैं। प्रदेश के लिए प्रगति की संभावनाएं तलाश रहे हैं। निवेश के अवसर ढूंढ रहे हैं। विभिन्न उद्योगों के प्रतिनिधियों के साथ ही वहां बसे भारतीय समुदाय के लोगों को भी आमंत्रित कर रहे हैं। इधर, विपक्ष 14 सदस्यीय मंत्रिमंडल के विरुद्ध राज्यपाल को ज्ञापन सौंपने पहुंच गया है।
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरण दास महंत और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का आरोप है कि संवैधानिक व्यवस्था को दरकिनार करते हुए मंत्रियों की संख्या 13 से 14 कर दी गई है। महंत ने भाजपा नेतृत्व पर चोट करते हुए दावा किया है कि सत्ताधारी दल ने सेकेंड लाइन (दूसरी पंक्ति) की राजनीति शुरू कर दी है। वरिष्ठ, अनुभवी, ईमानदार नेताओं को नजरअंदाज कर मंत्रिमंडल में अनुभवहीन लोगों को शामिल किया गया है।
डॉ. महंत ने भ्रष्टाचार की दर डेढ़ गुना हो जाने का आरोप लगाया है। साथ ही भूपेश बघेल सरकार के कार्यकाल के भ्रष्टाचार को भी जाने-अनजाने स्वीकार किया है कि कोयला परिवहन पर कांग्रेस के काल में प्रति टन 25 रुपये लिया जाता था तो अब 40 रुपये लिया जा रहा है। डॉ. महंत को गंभीर प्रकृति के नेताओं में माना जाता रहा है, इसलिए उनका बयान अगर भाजपा में असंतोष को उजागर कर रहा है तो वहीं दूसरी ओर भूपेश सरकार के भ्रष्टाचार पर कार्रवाई में शिथिलता को भी उठा रहा है।
मंत्री 14 और आवास 13, कैसे बनेगी व्यवस्था?
चर्चा का विषय यह भी है कि मंत्री तो 14 बन गए हैं, परंतु आवास और मंत्रालय में कार्यालय की व्यवस्था 13 मंत्रियों के लिए ही है। वर्ष 2003 के संविधान संशोधन के अनुसार, विधायकों की संख्या के 15 प्रतिशत को ही मंत्री बनाया जा सकता है। प्रदेश में 90 विधायक हैं। उसके आधार पर 13.5 मंत्री बनाए जा सकते हैं।
डॉ. रमन सिंह सरकार के बाद भूपेश सरकार में भी मंत्रियों की संख्या 13 ही रही। गणित के छात्र अक्सर 0.5 को अगले पूर्णांक के रूप में स्वीकार कर लेते हैं। यहां राजनीतिक गणित के हरियाणा सूत्र को आधार बनाते हुए विष्णु देव साय ने भी 14 सदस्यीय मंत्रिमंडल तैयार कर लिया है।
इस संख्या में अभी वृद्धि की पूरी संभावना है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक नवंबर 2025 को प्रदेश के नए विधानसभा भवन का उद्घाटन करेंगे। वहां 200 विधायकों के बैठने की व्यवस्था की गई है। उस आधार पर भविष्य में प्रदेश में मंत्रियों की संख्या 30 भी पहुंचेगी। उसी के हिसाब से तैयारी भी करनी होगी।
मंत्रिमंडल फेरबदल से क्या संदेश दिया?
मंत्रिमंडल फेरबदल में मुख्यमंत्री ने गंभीर संदेश भी दिए हैं। उन्होंने शिक्षा और परिवहन जैसे विभाग अन्य मंत्रियों को सौंपने के साथ जल संसाधन विभाग की जिम्मेदारी स्वयं ली है। यह भविष्य की योजनाओं के प्रति गंभीरता का संकेत भी है। बस्तर में इंद्रावती नदी पर प्रस्तावित बोधघाट परियोजना सहित प्रदेश में नई सिंचाई सुविधाओं का विकास प्रदेश के लिए बड़ी चुनौती है।
यह कड़वी सच्चाई है कि परियोजना को कार्यान्वित करने में विस्थापन होगा। साथ ही यह सुखद पक्ष होगा कि अभी जहां बस्तर का मात्र 14 प्रतिशत क्षेत्र सिंचित है वहीं बोधघाट परियोजना के विकसित होने पर 80 प्रतिशत क्षेत्र सिंचित हो जाएगा। 50 हजार करोड़ की परियोजना में 125 मेगावाट पनबिजली भी तैयार होगी। इंद्रावती और महानदी को जोड़ने की महत्वाकांक्षी योजना सफल रही तो राज्य का सिंचाई मानचित्र ही बदल जाएगा।
बोधघाट का सपना, कब होगा पूरा?
अविभाजित मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में श्यामाचरण शुक्ल ने बोधघाट का जो सपना देखा था, वह अभी तक मूर्त रूप नहीं ले सका है। केंद्रीय मंत्री के रूप में बस्तर को नगरनार स्टील प्लांट देने वाले विष्णु देव साय का बोधघाट के लिए संकल्प कहीं बड़ा कार्य होगा जो विकसित छत्तीसगढ़ के किसानों की दिशा और दशा बदल देगा। बस्तर की शबरी और नारंगी नदी की भी सिंचाई परियोजनाएं प्रस्तावित हैं।
ओडिशा के साथ जल विवाद के समाधान के साथ प्रदेश के हिस्से के पानी के सदुपयोग के लिए ठोस प्रयत्न आवश्यक होंगे। इस तरह केदार कश्यप से सिंचाई विभाग लेकर मुख्यमंत्री ने संकेत दे दिया है कि परियोजना को कार्यान्वित करने के शुरुआती दौर में मिलने वाली अलोकप्रियता से वह अपने मंत्री को बचाने का सोच भी रखते हैं।
बस्तर के 12 में आठ भाजपा विधायक होते हुए एक मंत्रीपद के पीछे भी यही आधार प्रतीत हो रहा है। यह एक गंभीर और लक्ष्य के प्रति स्पष्ट नेतृत्व का भी संदेश है।
सरकार को स्कूल शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में प्रमुखता से जोर लगाना होगा। वित्त मंत्री के सहयोग से दोनों विभागों के मंत्रियों को ठोस प्रयास करने होंगे कि शिक्षकों, चिकित्सकों और अन्य संसाधनों के अभाव में प्रदेश की जनता को हो रही असुविधा समाप्त की जा सके।
मंत्रिमंडल विस्तार के बाद सरकारी विभागों में 12 हजार से अधिक रिक्त पदों को भरने की दिशा में तेजी से प्रयास की उम्मीद की जा रही है। मुख्यमंत्री के विदेश दौरे से लौटने के बाद कार्य को और गति मिलेगी।
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