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BJP Foundation Day 2019: कैसे अटल की जगह आडवाणी बने अध्यक्ष और वो ऐतिहासिक पल

BJP Foundation Day 2019 भाजपा ने अपने शुरूआती दौर में दो महत्वपूर्ण यात्राएं की जिसने पार्टी को फर्श से अर्श तक पहुंचाया। दोनों यात्राओं में नरेंद्र मोदी ही सारथी बने थे।

By Amit SinghEdited By: Published: Sat, 06 Apr 2019 02:36 PM (IST)Updated: Sat, 06 Apr 2019 02:45 PM (IST)
BJP Foundation Day 2019: कैसे अटल की जगह आडवाणी बने अध्यक्ष और वो ऐतिहासिक पल
BJP Foundation Day 2019: कैसे अटल की जगह आडवाणी बने अध्यक्ष और वो ऐतिहासिक पल

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। आज भारतीय जनता पार्टी (BJP Foundation Day 2019) का 39 वां स्थापना दिवस है। बीते 38 वर्षों में भाजपा ने दो सीट से दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी का सफर तय किया है। कांग्रेस से मुकाबला करते हुए भाजपा के लिए ये सफर तय करना आसान नहीं था। इस दौरान पार्टी को कई उठा-पटक और बदलावों के दौर से गुजरना पड़ा। इसमें लोकप्रिय राजनेता अटल बिहारी वाजपेयी की जगह लालकृष्ण आडवाणी को पार्टी अध्यक्ष बनाने से लेकर भाजपा की वो यात्राएं भी शामिल हैं, जिसने पार्टी एजेंडे में हिन्दुत्ववाद के साथ राष्ट्रवाद का रंग जोड़ा।

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जनसंघ से भारतीय जनता पार्टी का सफर
वर्ष 1952 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में जनसंघ की स्थापना हुई थी। शुरूआती वर्षों में जनसंघ का आधार काफी सीमित था। वर्ष 1977 के जेपी आंदोलन के बाद कई दलों को मिलाकर कांग्रेस के विरोध में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी। जनसंघ भी इसमें शामिल थी। सरकार में दो मंत्री बने, अटल बिहारी वाजपेयी को विदेश मंत्रालय मिला और लालकृष्ण आडवाणी को सूचना प्रसारण मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई। जल्द ही जनता पार्टी की सरकार में कलह शरू हो गयी। नतीजतन, जनसंघ ने खुद को सरकार से अलग कर लिया। इसके बाद 6 अप्रैल 1980 को जनसंघ, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में बदल गई।

स्वयं सेवक संघ की भूमिका
जनसंघ, स्वयं सेवक संघ (RSS) की राजनीतिक इकाई थी। लिहाजा, भाजपा के गठन के बाद भी आरएसएस से इसका जुड़ाव बरकरार रहा। यही वजह है कि शुरूआत से पार्टी की छवि हिंदुत्ववादी पार्टी के रूप में रही है। भाजपा के पहले अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी बने और लालकृष्ण आडवाणी ने संगठन की बागडोर संभाली। इस तरह पार्टी ने हिंदी प्रांतों में अपना काम शुरू किया। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक दोनों नेताओं में जिम्मेदारियों का बंटवारा, पार्टी का रणनीतिक फैसला था। उदार छवि की वजह से अटल बिहारी वाजपेयी को पार्टी का चेहरा बनाया गया था। वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा ने 1984 में पहला लोकसभा चुनाव लड़ा और उसे महज दो सीटों पर जीत मिली। यहां तक कि खुद अटल बिहारी वाजपेयी भी अपनी सीट नहीं बचा सके थे।

ऐसे अटल की जगह आडवाणी बने अध्यक्ष
भाजपा की स्थापना, मंडल कमीशन के दौर में हुई थी, लिहाजा देश में राजनीतिक उथल-पुथल का माहौल था। ऐसे में भाजपा ने हवा का रुख भांपा और लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर आंदोलन छेड़ दिया। जातिगत आंदोलन के माहौल में हिंदुत्व भी प्रमुख मुद्दा बन चुका था। 1984 के परिणाम इशारा था कि केवल उदारवादी छवि काफी नहीं है। लिहाजा 1986 में लालकृष्ण आडवाणी को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया गया। इसके बाद 1989 में भाजपा को बड़ी कामयाबी मिली और पार्टी ने लोकसभा में अकेले 85 सीटंक जीतीं।

आडवाणी की रथ यात्रा
सितंबर 1990 में लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या के बीच देशभर में रथ यात्रा शुरू की। उस वक्त गुजरात इकाई के सचिव के तौर पर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष आडवाणी की रथ यात्रा के सारथी बने थे। उन्होंने ही रथ यात्रा का कार्यक्रम और रूट तैयार किया था। पार्टी को इसका लाभ मिला। आडवाणी के रथ के साथ पार्टी का जनाधार भी बढ़ता गया। इसी बीच 6 दिसंबर 1992 को बाबरी में विवादित ढांचा गिरा दिया गया और देश भर में दंगे भड़क गए। मामले में भाजपा नेता आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी व उमा भारती समेत कई नेताओं को आरोपी बनाया गया। भाजपा तब तक राजनीति में पहचान बना चुकी थी।

रथ यात्रा का कमाल
आडवाणी की रथ यात्रा 25 सितंबर को शुरू होकर 30 अक्टूबर को अयोध्या में समाप्त होनी थी, लेकिन यात्रा लंबी खिंच गयी। नवंबर 1990 में लालू ने ऐलान किया कि आडवाणी रथ यात्रा लेकर बिहार पहुंचे, तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा। इसके बाद समस्तीपुर में आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया। इससे भाजपा को बड़ा मौका मिला और उसने केंद्री की वीपी सिंह सरकार गिरा दी। इसके बाद सात माह तक चंद्रशेखर ने कांग्रेस के समर्थन से सरकारी चलाई। 1991 में हुए आम चुनावों में आडवाणी की रथयात्रा का कमाल दिखा और पार्टी ने पहली बार अकेले दम पर 120 सीटों पर कब्जा जमा लिया। रथ यात्रा ने महज सात साल में भाजपा को दो सीट से देश की दूसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बना दिया।

भाजपा में ऐसे शुरू हुआ छवि बदलने का प्रयास
1992 की घटना के बाद हिंदी भाषी क्षेत्र में भाजपा को कांग्रेस के विकल्प के तौर पर देखा जाने लगा। हालांकि, अब भी बहुत से लोग भाजपा को हिंदू सवर्णों की पार्टी मानते थे। उस वक्त पार्टी के युवा चेहरे के रूप में अरुण जेटली, सुषमा स्वराज और प्रमोद महाजन प्रमुख थे। भाजपा ने अपनी रणनीति बदलते हुए ओबीसी, दलित और आदिवासियों को पार्टी में जगह दी। कल्याण सिंह को पिछड़ा और झारखंड से बाबूलाल मरांडी को बतौर आदिवासी नेता प्रोजेक्ट किया गया। वहीं बंगारू लक्ष्मण को पहला दलित भाजपा अध्यक्ष बनाया गया।

जब हिंदुत्व में मिला राष्ट्रवाद का रंग
देश की दूसरी पार्टी बनने के बाद भाजपा को अब सत्ता का सफर तय करना था। इसके लिए पार्टी को हिंदुत्वाद के मुद्दे से आगे बढ़कर देखना था। लिहाजा, 1991 में आडवाणी के बाद मुरली मनोहर जोशी को पार्टी का अध्यक्ष बना दिया गया। उन्होंने हिंदुत्व में राष्ट्रवाद का रंग मिलाया। इसके बाद दिसंबर 1991 में मुरली मनोहर जोशी ने तिरंगा यात्रा निकाली। उनकी यात्रा 26 जनवरी 1992 को श्रीनगर में तिरंगा फहराकर खत्म होनी थी। उस वक्त भी नरेंद्र मोदी को ही जोशी की तिरंगा यात्रा का सारथी बनाया गया। वह आडवाणी की रथ यात्रा में अपनी बेहतरीन प्रबंधन क्षमता साबित कर चुके थे। उस वक्त इन दोनों नेताओं को शायद अंदाजा भी नही होगा कि उनका सारथी, भविष्य के भारत का शासक बनेगा।

चार राज्यों में बर्खास्त हुई थी सरकार
बाबरी में विवादित ढांचा विध्वंस और देश भर में दंगे भड़कने के बाद यूपी, एमपी, राजस्थान और हिमाचल में भाजपा की राज्य सरकार को बर्खास्त कर दिया गया। एक साल बाद इन राज्यों में चुनाव हुए तो राजस्थान छोड़, भाजपा सभी जगह हार गई। इसके बाद सहयोगी दलों को जोड़ने के लिए एक बार फिर पार्टी के उदार चेहरे अटल बिहारी वाजपेयी को कमान सौंपी गयी। इसका फायदा 1996 में दिखा। इस लोकसभा चुनाव में भाजपा को 161 सीटें मिली और पहली बार कांग्रेस को पछाड़ कोई अन्य पार्टी (BJP) नंबर एक बनी और वाजपेयी प्रधानमंत्री बने। हालांकि, 13 दिन में ही उनकी सरकार गिर गई। इस्तीफे के साथ वाजपेयी ने लोकसभा में अपना ऐतिहासिक भाषण दिया, जिसे दूरदर्शन पर लाइव दिखाया गया। 1998 के मध्यावधि चुनाव में भाजपा ने सहयोगी दलों के साथ एनडीए बनाकर चुनाव लड़ा और अकेले 182 सीट जीत सबसे बड़ी पार्टी बनी। भाजपा ने पहली बार सहयोगियों के साथ एनडीए की सरकार बनाई। 1999 में फिर मध्यावधि चुनाव हुए और भाजपा ने फिर 182 सीटें जीतकर सहयोगियों संग सरकार बना ली।

अटल ने कहा था, अब आडवाणी के नेतृत्व में बढ़ेंगे
वाजपेयी के नेतृत्व में पार्टी ने कई राज्यों में सरकार बनाई, लेकिन 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। भाजपा को केवल 136 सीटें मिलीं और कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सरकार बन गई। इस हार ने एक तरह से अटल युग को खत्म कर दिया। हार के बाद आडवाणी फिर पार्टी अध्यभ और विपक्ष के नेता बने। तब वाजपेयी ने ऐलान किया था, ‘अब आडवाणी के नेतृत्व में ही आगे बढ़ेंगे।’

भाजपा का सफरनामा
- 06 अप्रैल 1980 को भाजपा की स्थापना हुई और अटल बिहारी वाजपेयी को पहला राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया।
- 1984 के 8वें लोकसभा चुनाव में भाजपा को महद दो सीटों पर जीत मिली। अटल बिहार को भी हार का सामना करना पड़ा।
- 1986 में लालकृष्ण आडवाणी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने।
- 1989 में भाजपा को 85 सीटें मिलीं और उसने वीपी सिंह के नेतृत्व वाली जनता दल सरकार को समर्थन दिया।
- 1990 में आडवाणी ने देशभर में रथ यात्रा शुरू की।
- 1991 में मुरली मनोहर जोशी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और 10वीं लोकसभा में पार्टी को 120 सीटों पर जीत हासिल हुई।
- 1993 में लालकृष्ण आडवाणी एक बार फिर पार्टी अध्यक्ष बने।
- 1996 में 11वें लोकसभा चुनाव में भाजपा को 161 सीटों पर जीत मिली। अटल बिहारी के नेतृत्व में 13 दिन की सरकार बनी।
- 1998 में भाजपा को 182 सीटें मिलीं और अटल बिहारी फिर प्रधानमंत्री बने। ये भी सरकार महज 13 महीने चली।
- 1999 में बनी भाजपा की सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया।
- 2004 में भाजपा को मात्र 138 सीटों के साथ हार का सामना करना पड़ा। आडवाणी तीसरी बार पार्टी अध्यक्ष बने।
- 2009 में भाजपा का प्रदर्शन और गिरा। पार्टी महज 116 सीटों पर सिमट गयी।
- 2014 में मोदी-शाह की जोड़ी में भाजपा को ऐतिहासिक जीत मिली। पार्टी ने 282 सीटों पर जीत दर्ज कर सरकार बनाई।
- भाजपा की बंपर जीत के बाद अमित शाह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने, जो अब भी हैं।


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