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    राजमाता को मान- सम्मान से भाजपा और ज्योतिरादित्य सिंधिया को मिली बड़ी राहत

    By Dhyanendra SinghEdited By:
    Updated: Wed, 14 Oct 2020 07:06 PM (IST)

    भाजपा द्वारा स्व. विजयाराजे सिंधिया का मान-सम्मान बढ़ाए जाने से पार्टी को उन लोगों को साधने में भी सफलता मिली है जो ज्योतिरादित्य के पार्टी में आने से नाराज चल रहे थे। चाहे वे जयभान सिंह पवैया जैसे महल विरोधी नेता हों या पार्टी के छोटे कार्यकर्ता।

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को राजमाता सिंधिया के जन्मदिन पर स्मारक सिक्का जारी किया था।

    धनंजय प्रताप सिंह, भोपाल। राजनीति रोचक संयोगों का नाम है। एक संयोग यह भी है कि भाजपा की संस्थापक सदस्यों में से एक, ग्वालियर राजघराने की राजमाता विजयाराजे सिंधिया का जन्म शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है, तो इसी दौरान मध्य प्रदेश में सबसे बड़ा उपचुनाव हो रहा है। इसकी वजह भी राजमाता के जीवन के एक घटनाक्रम की पुनरावृत्ति से जुड़ती है। 53 साल पहले उन्होंने 36 विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़कर मध्य प्रदेश में तत्कालीन मुख्यमंत्री डीपी मिश्रा की सरकार गिरा दी थी, ठीक उसी तरह उनके पौत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने समर्थक 22 विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़कर कमल नाथ सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया। उपचुनाव के दौरान ही जन्म शताब्दी वर्ष का समापन भव्य आयोजनों के बीच हुआ।

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    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को राजमाता सिंधिया के जन्मदिन पर स्मारक सिक्का जारी किया तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी ग्वालियर में उनकी विशाल प्रतिमा का अनावरण किया। इन आयोजनों से राजमाता का मान-सम्मान तो बढ़ा ही, राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया का कद भी भाजपा में खुद-ब-खुद बढ़ गया।

    भाजपा द्वारा स्व. विजयाराजे सिंधिया का मान-सम्मान बढ़ाए जाने से पार्टी को उन लोगों को साधने में भी सफलता मिली है, जो ज्योतिरादित्य के पार्टी में आने से नाराज चल रहे थे। चाहे वे जयभान सिंह पवैया जैसे महल विरोधी नेता हों या पार्टी के छोटे कार्यकर्ता। पुराने पार्टी नेताओं का मानना है कि राजमाता में कभी राजशाही की झलक दिखाई नहीं देती थी, यही वजह है कि वे भाजपा में बेहद लोकप्रिय थीं। दरअसल, राजमाता के प्रसंग को याद करने के दो कारण हैं। पहला, राजमाता सिंधिया का त्याग-समर्पण। दूसरा, राजमाता से जुड़े राजनीतिक घटनाक्रम की ज्योतिरादित्य द्वारा पुनरावृत्ति से पार्टी में आई नाराजगी को दूर करना। इसमें भाजपा सफल होती भी दिख रही है। पार्टी बताना चाहती है कि राजमाता का मान-सम्मान ज्योतिरादित्य के कद से बहुत बड़ा है।

    यही कारण है कि भाजपा के मध्य प्रदेश मुख्यालय में भी राजमाता की प्रतिमा लगी हुई है। उसके हर आयोजन में भाजपा के पितृपुरष पं. दीनदयाल उपाध्याय और श्यामाप्रसाद मुखर्जी के साथ राजमाता के चित्र पर भी पुष्पांजलि अर्पित की जाती है।

    28 विधानसभा क्षेत्रों में प्रचार के लिए भाजपा ने जो हाईटेक रथ रवाना किए हैं, उसमें भी ज्योतिरादित्य के फोटो को जगह नहीं मिली लेकिन राजमाता का फोटो प्रमुखता से लगाया गया है। असर यह है कि ग्वालियर-चंबल क्षेत्र के कार्यकर्ता ज्योतिरादित्य से भले नाराज हों लेकिन राजमाता का नाम आने के बाद सभी ने मोर्चा संभाल लिया है।

    मध्य प्रदेश के भाजपा प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल ने बताया कि राजमाता सिंधिया भाजपा संगठन के लिए ही नहीं बल्कि संपूर्ण विचारधारा के लिए ममता के साथ आशीर्वाद देती रही हैं। हिंदुत्व के पुनर्जागरण में उनका योगदान अविस्मरणीय है। हम हर अवसर पर उनका पुण्य स्मरण करते हैं।