कांटे की टक्कर में एक-दूसरे के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश में जुटी भाजपा और कांग्रेस
कांटे की टक्कर में एक दूसरे के वोट बैंक में सेंध लगाने में सफल होने वाली पार्टी के सिर पर जीत का सेहरा बंध सकता है। कांग्रेस मुस्लिम आरक्षण को चुनावी मुद्दा नहीं बनने देना चाहती इसलिए वह लगातार इसके सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन होने का हवाला दे रही है।

नई दिल्ली, नीलू रंजन। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों एक-दूसरे के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश में जुटे हैं। जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण सावदी जैसे भाजपा के कद्दावर लिंगायत नेताओं को शामिल कर कांग्रेस लिंगायत वोट बैंक में दरार की उम्मीद लगाए बैठी है।
वोट बैंक को तोड़ने में लगीं पार्टियां
वहीं, भाजपा ने आरक्षण के सहारे कांग्रेस के पुराने वोट बैंक दलित और आदिवासी में सेंध लगाने के साथ ही मुस्लिम आरक्षण को मुद्दा बनाकर हिंदू वोट बैंक को एकजुट करने की कोशिश में है।
एसटी वोट बैंक में सेंध लगाने की कर रही है कोशिश
कांटे की टक्कर में एक दूसरे के वोट बैंक में सेंध लगाने में सफल होने वाली पार्टी के सिर पर जीत का सेहरा बंध सकता है। कांग्रेस मुस्लिम आरक्षण को चुनावी मुद्दा नहीं बनने देना चाहती, इसलिए वह लगातार इसके सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन होने का हवाला दे रही है।
कर्नाटक सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट को आश्वस्त किया है कि मुसलमानों को मिलने वाले चार प्रतिशत आरक्षण को खत्म कर दो-दो प्रतिशत लिंगायत और वोक्कालिगा को देने के फैसले पर फिलहाल अमल नहीं करेगी। लेकिन राज्य में चुनाव प्रचार की बागडोर संभाले हुए गृह मंत्री अमित शाह बार-बार इस मुद्दे पर कांग्रेस को घेरने से नहीं चूक रहे हैं।
अपनी हर रैली, रोड शो और प्रेस कांफ्रेंस में शाह स्पष्ट रूप से कह रहे हैं कि मुस्लिम आरक्षण संविधान के खिलाफ है और इस पर दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों का हक है।
मुस्लिम तुष्टीकरण का मुद्दा
इसके साथ ही अमित शाह कांग्रेस के शासनकाल में पीएफआइ को मिल रहे संरक्षण और मुस्लिम तुष्टीकरण का मुद्दा भी चुनावी सभाओं में बार-बार उठा रहे हैं। इसे हिंदू वोट बैंक को एकजुट रखने की भाजपा की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। हिंदू वोट बैंक को एकजुट रखने के साथ ही भाजपा कर्नाटक में एससी और एसटी आरक्षण में भारी फेरबदल कर कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए कमर कस चुकी है।
कर्नाटक की राजनीति में बड़ा बदलाव
राज्य में एसटी की आबादी सात प्रतिशत होने के बावजूद सिर्फ तीन प्रतिशत आरक्षण मिलता था। भाजपा ने इसे बढ़ाकर सात प्रतिशत कर दिया है। अभी तक इस वोट बैंक पर कांग्रेस का मजबूत कब्जा रहा है। यदि आरक्षण का प्रतिशत दोगुने से अधिक बढ़ाये जाने के बाद एसटी वोट बैंक भाजपा की तरफ झुकता है, तो इसे कर्नाटक की राजनीति में बड़ा बदलाव माना जाएगा।
राज्य में 15 सीटें एसटी के लिए आरक्षित, अधिकांश पर कांग्रेस की होती रही है जीत राज्य में 15 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं, जिनमें अधिकांश पर कांग्रेस की जीत होती रही है। इसके अलावा अन्य कई सीटों पर एसटी निर्णायक भूमिका निभाने की स्थिति में हैं। इसी तरह से कांग्रेस से पुराने वोट बैंक एससी के आरक्षण को 15 प्रतिशत से 17 प्रतिशत करने के साथ ही उसे कई कैटेगरी में विभाजित कर दिया गया है।
इसमें सबसे अधिक हिस्सा एससी (लेफ्ट) को 6.5 प्रतिशत मिला है। एससी (लेफ्ट) दलित समाज का सबसे पिछड़ा तबका है और आरक्षण के लाभ से काफी हद तक वंचित रहा है। जबकि एससी (राइट) को 4.5 प्रतिशत हिस्सा दिया गया है। एससी (राइट) आरक्षण का सबसे अधिक लाभ हासिल करने वाला तबका है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे एससी (राइट) से आते हैं। इसके अलावा एससी (स्पृश्य) और एससी (अन्य) नाम से दो अलग कैटेगरी बनाई गई है।
कांग्रेस लिंगायत वोट बैंक को तोड़ने में तो भाजपा एससी
भाजपा के लिंगायत वोट बैंक को तोड़ने की कोशिश पहले भी कर चुकी है कांग्रेस कर्नाटक में यदि आरक्षण के नए प्रविधान के सहारे कांग्रेस के एससी वोट बैंक में भाजपा सेंध लगाने में सफल होती है तो पहली बार वह विधानसभा चुनावों में वोट शेयर के मामले में कांग्रेस को मात देने की स्थिति में होगी। वहीं भाजपा के लिंगायत वोट बैंक को तोड़ने की कोशिश कांग्रेस पहले भी कर चुकी है। मुख्यमंत्री रहते हुए सिद्धरमैया ने लिंगायत को हिंदू से अलग धर्म की मान्यता और अल्पसंख्यक का दर्जा देकर भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की थी।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।