Bihar Politics: चिराग के मन में क्या? नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की बढ़ गई टेंशन, कौन बनेगा दोस्त या दुश्मन
चिराग पासवान एनडीए सहयोगी होते हुए भी बिहार विधानसभा की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं और नीतीश सरकार की आलोचना कर रहे हैं। उनके इस रवैये से राजग में असमंजस है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार चिराग राजग में रहकर अपना कद बढ़ाना चाहते हैं ताकि भविष्य में उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए देखा जा सके। उनकी यह रणनीति राजग को उलझन में डाल सकती है।

अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। एनडीए के सहयोगी एवं केंद्र की मोदी सरकार में प्रमुख भूमिका में रहते हुए भी चिराग पासवान बार-बार बिहार विधानसभा की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं। बिहार की नीतीश कुमार सरकार की विधि-व्यवस्था पर भी प्रश्न खड़े कर रहे हैं। इसे विधानसभा चुनाव में राजग के लिए अच्छा नहीं माना जा रहा है।
राजग समर्थकों की दुविधा
चिराग के इसी तेवर ने पिछले चुनाव में भी जदयू को बड़ा झटका दिया था। इस बार फिर चिराग अभी तक राजग के घटक दलों से थोड़ा अलग रास्ते पर चलते दिख रहे हैं। इससे चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के कार्यकर्ताओं का उत्साह तो बढ़ रहा है, मगर राजग समर्थकों की दुविधा में भी वृद्धि हो रही है।
5 वर्ष पहले वाला ट्रेंड
सवाल उठ रहे हैं कि आखिर चिराग के मन में क्या है। सियासी दोस्त कौन होगा और प्रतिद्वंद्वी कौन होगा। पांच वर्ष पहले भी चिराग खुद को नरेन्द्र मोदी का 'हनुमान' बताते रहे थे और जदयू के हिस्से की सभी सीटों के साथ 144 सीटों पर प्रत्याशी भी उतार दिए थे। इस बार भी कुछ ऐसा ही संकेत दे रहे हैं।
राजनीतिक हैसियत बढ़ाने की एक रणनीति
- राजग के घटक दलों के दूसरी-तीसरी पंक्ति के नेताओं एवं समर्थकों के बीच इस बात को लेकर असमंजस की स्थिति है कि चिराग का रुख गठबंधन की नीति के विपरीत होने जा रहा है या वह सिर्फ अपनी राजनीतिक हैसियत बढ़ाने की एक रणनीति पर काम कर रहे हैं।
- चिराग अभी केंद्र सरकार में मंत्री हैं। लेकिन पुलिस व्यवस्था, रोजगार, भ्रष्टाचार एवं सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों पर बिहार की नीतीश सरकार की आलोचना करते हैं, जो अप्रत्यक्ष रूप से जदयू और भाजपा को असहज करता है।
- राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार का मानना है कि चिराग को पता है कि महागठबंधन में उनके लिए सम्मानजनक जगह नहीं है। इसलिए राजग के साथ रहते हुए अपना कद बढ़ाने के प्रयास से पीछे नहीं हटने वाले हैं। अहमियत बढ़ेगी तो राजग में सीटें भी ज्यादा मिल सकती हैं।
पहले क्या थी रणनीति?
पिछले चुनाव में लोजपा ने जदयू का नुकसान तो बहुत किया लेकिन खुद एक ही सीट जीत पाई थी। 110 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई और सिर्फ एक सीट पर जीत मिली। बाद में उक्त विधायक भी जदयू के साथ हो लिया। शायद पूरी कवायद इसलिए भी है कि भविष्य में उन्हें मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में देखा जाए।
राजग से अलग होकर लड़ना इस बार संभव नहीं है क्योंकि वह केंद्र में मंत्री भी हैं। जाहिर है, चिराग अपने सियासी चालों से बिहार की राजनीति को उलझन में डाल तो रहे हैं, लेकिन एनडीए में रहते हुए विरोध और बेबाकी का यह तरीका उन्हें चमका भी सकता है या अलग-थलग भी कर सकता है। यह इसपर भी निर्भर करेगा कि वह विरोध की अपनी शैली को आगे बढ़ाएंगे या फिर पुरानी सियासी प्रतिबद्धता के साथ एनडीए की भाषा बोलने लगेंगे।
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