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जब अटल ने नेहरू को कहा था चर्चिल और चैंबरलिन, बदले में नेहरू ने की थी तारीफ

जिस वक्‍त देश में जाति, धर्म और क्षेत्र की राजनीति चरम पर होती थी उस वक्‍त वाजपेयी ने अपने एजेंडे में विकास की राजनीति को शामिल कर एक नए युग का आरंभ किया था।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 16 Aug 2018 09:35 AM (IST)Updated: Fri, 17 Aug 2018 11:15 AM (IST)
जब अटल ने नेहरू को कहा था चर्चिल और चैंबरलिन, बदले में नेहरू ने की थी तारीफ

नई दिल्‍ली [स्‍पेशल डेस्‍क]। 16 अगस्‍त 2018 की शाम भारत के राजनीतिक इतिहास में ग्रहण की तरह आई। एक ऐसा ग्रहण जो कभी खत्‍म नहीं हो सकता है और न ही इसकी मनहूसियत को कम ही किया जा सकता है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन पर पूरा देश गमगीन है। ऐसा इसलिए भी है क्‍योंकि वह सिर्फ एक पूर्व पीएम ही नहीं थे बल्कि एक ऐसी छवि के नेता थे जिनका विपक्ष भी सम्‍मान करता था। वो एक ऐसे नेता थे जिन्‍होंने कभी सच कहने में परहेज नहीं किया। एक बार लोकसभा में उन्‍होंने कहा था कि जब वे शुरुआती दौर में नए नए सांसद बने थे तो उन्‍हें बोलने नहीं दिया जाता था। सबसे पीछे पंक्ति में उनका नंबर होता था। इसको लेकर कई बार उन्‍होंने सदन से वाक आउट तक किया।

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पंडित नेहरू को बताया चर्चिल और चैं‍बरलिन
एक बार जब उन्‍हें पूर्व पीएम पंडित जवाहर लाल नेहरू की बात सही नहीं लगी और उन्‍हें सदन में बोलने का मौका मिला तब उन्‍होंने अपनी नाराजगी को वहां मौजूद सभी नेताओं के बीच में रखा। अटल ने पंडित नेहरू से यहां तक कहा था कि उनके अंदर चर्चिल भी है और चैं‍बरलिन भी है। लेकिन नेहरू इस पर नाराज नहीं हुए। उसी दिन शाम को किसी बैंक्वट में दोनों की फिर मुलाकात हुई तो नेहरू ने अटल की तारीफ की और कहा कि आज का भाषण बड़ा जबरदस्त रहा। उनका कहना था कि वह राजनीति का एक ऐसा दौर था जहां सभी एक दूसरे का सम्‍मान करते थे और नेताओं की बातों को गंभीरता से लेते थे, लेकिन आज यदि ऐसी आलोचना करनी पड़ जाए तो सदन में कुछ एक से तो दुश्‍मनी होनी तय है। 

28 मई 1996 का वो दिन
इसी तरह 28 मई 1996 का वो दिन आज भी हर किसी को याद होगा जब लोकसभा में सभी सदस्‍यों के बीच पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपयी ने कहा था कि सरकारें आएंगी, सरकारें जाएंगी, पार्टियां बनेंगी, बिगड़ेंगी, लेकिन देश का लोकतंत्र जिंदा रहना चाहिए। भारत का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए। अटल की यह सरकार सिर्फ 13 दिन ही चली थी। उस वक्‍त भले ही विपक्ष ने उनकी बातों का मजाक उड़ाया था, लेकिन इसके बाद भी उनकी काबलियत और इमानदारी पर विपक्ष भी कभी सवाल खड़ा नहीं कर सका। राजनीति के मैदान में वह न सिर्फ नाम से बल्कि कर्म से भी अटल ही रहे। यह उनका व्‍यक्तित्‍व ही था जिसके चलते कोई उनकी बात को काटने की हिम्‍मत नहीं करता था। यही वजह है कि राजनीति में करीब छह दशक गुजारने के बाद उनका दामन आज भी साफ है। अटल बिहारी वाजपेयी राजनीतिक शुचिता, प्रामाणिकता, वाकपटुता और लोगों के बीच जगह बनाने की कला की अनूठी मिसाल हैं।

देश को दिखाई नई राह
अटल जी ने देश को विकास की एक नई राह दिखाई थी। यह कहना गलत नहीं होगा कि जहां देश में उस वक्‍त जाति, धर्म और क्षेत्र की राजनीति चरम पर होती थी उन्‍होंने उस वक्‍त अपने एजेंडे में विकास की राजनीति को शामिल कर एक नए युग का आरंभ किया था। 1990 के अंतिम वर्षो और नई शताब्दी के शुरुआती वर्षो में जब अटलजी ने देश के नेतृत्व किया तो विकास और सुशासन को राजनीतिकी न सिर्फ एजेंडा बनाया बल्कि एक ऐसा मापदंड तय कर दिया जिससे अब हर राजनेता को होकर गुजरना ही पड़ता है। यह अटलजी की ही देन है कि लोग आज सुशासन और विकास को बड़ा मुद्दा मानकर वोट कर रहे हैं।

अटल और आडवाणी की दोस्‍ती
अटल और लाल कृष्‍ण आडवाणी की दोस्‍ती कभी किसी से छिपी नहीं। उन्‍होंने ही नवंबर 1995 में पार्टी के मुंबई अधिवेशन में अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री उम्‍मीद्वार बनाने की घोषणा की थी। आडवाणी खुद अटल की तारीफ करते हुए नहीं थकते हैं। 1996 के लोकसभा चुनाव में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी और अटल जी देश के प्रधानमंत्री बने। यह सरकार ज्यादा दिन न चल सकी क्योंकि भाजपा के पास बहुमत के लिए जरूरी सांसद नहीं थे। सरकार के विश्वास मत प्रस्ताव पर अटलजी ने जोरदारभाषण दिया जिसमें उन्होंने कहा, मैं भ्रष्टाचार को चिमटे से भी नहीं छूना चाहूंगा। अटलजी ने एक बार फिर 1998 से 2004 तक राजग सरकार का नेतृत्व किया। अटलजी ने 2002 में गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को देश का उप प्रधानमंत्री बना दिया। तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष वेंकैया नायडू ने एक कार्यक्रम में अटलजी को विकास पुरुष और लालकृष्ण आडवाणी को लौह पुरुष की संज्ञा दी थी।

प्रतिबंधों के दबाव में नहीं आए अटल
अटल के छह साल के इस कार्यकाल ने भारतीय राजनीति की दिशा ही बदल दी। अटल बिहारी वाजपेयी ने सबसे पहले एक स्थिर सरकार दी जो उस समय की पहली जरूरत थी। भाजपा ने चुनाव ही इस मुद्दे पर लड़ा था कि वह एक स्थिर सरकार और योग्य नेतृत्व देश को देगी। लोगों ने इस संकल्प को सच मानते हुए अटलजी के नेतृत्व में भाजपा को देश की सबसे बड़ी पार्टी बना दिया। अटल सरकार ने कई ऐसे काम किए जो अपने आप में मिसाल बन गए। वाजपेयी सरकार ने 1998 में परमाणु परीक्षण किए। कई देशों ने अमेरिका की अगुवाई में देश पर तमाम प्रतिबंध लगा दिए, लेकिन अटल सरकार के कारण इनका कोई भी असर देश के जनमानस पर नहीं हुआ।

सुपरपावर के रूप में उभरा भारत
भारत की बढ़ती ताकत को देखते हुए पहले अमेरिकी राष्ट्रपति क्लिंटन और फिर दूसरे राष्ट्रध्यक्ष भारत के दौर पर आए और तमाम समझौतों पर हस्ताक्षर किए। अटलजी के कार्यकाल में किए गए आर्थिक सुधारों द्वारा देश की आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत हुई। बड़े पैमाने पर रोजगारों का सृजन हुआ। आर्थिक वृद्धि दर बढ़कर 6-7 फीसद हो गई जिसका लाभ नीचे तक पहुंचते हुए दिखाई दिया। देश में विदेशी निवेश बढ़ा, आधारभूत सुविधाएं बढ़ीं और भारत एक आईटी सुपरपॉवर के रूप में भी उभरा।

देश के विकास को अटल की योजनाएं
सरकार ने कई टैक्स सुधार किए, बड़ी सिंचाई और आवासीय योजनाएं शुरू की गईं। पूरे देश में और खासतौर पर मध्यवर्ग के जीवन स्तर में बदलाव साफ दिखाई देने लगा। लोगों को विकास और सुशासन अपने आस-पास होता दिखाई दिया। देश के हर हिस्से को जोड़ने के लिए एक बहुत ही महात्वाकांक्षी परियोजना स्वर्णिम चतुभरुज की शुरुआत की गई जिसके तहत दिल्ली, कोलकाता, मुंबई और चेन्नई को चार लेन सड़कों से जोड़ा गया। इससे अर्थव्यवस्था को बहुत लाभ हुआ। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क रोजगार योजना के तहत हर गांव को सड़क से जोड़ा गया। सर्वशिक्षा अभियान के तहत सभी बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा की सुविधा उपलब्ध कराई गई। किसानों, युवाओं, महिलाओं, कामगारों के लिए बहुत सी अलग-अलग योजना शुरू की गई। इस तरह अटलजी ने भारत में सुशासन की राजनीति की शुरुआत की। उनका कहना था कि सुशासन की राजनीतिक करते समय लोगों की सेवा और राष्ट्रीय हितों को सवरेपरि रखना चाहिए।

पाक से दोस्‍ती को बढ़ाया हाथ
अटलजी ने कहा करते थे कि दोस्त बदले जा सकते हैं पड़ोसी नहीं। इसी नीति का पालन करते हुए उन्होंने पाकिस्तान से दोस्ती का हाथ बढ़ाया। भारत-पाकिस्तान के बीच बस सेवा शुरू की। अटलजी पहली बस लेकर खुद लाहौर गए, लेकिन पाकिस्तान अपनी हरकत से बाज नहीं आया और उसने भारत के कुछ इलाकों पर कब्जा कर लिया। वाजपेयी सरकार ने इस का मुंह तोड़ जवाब दिया और कारगिल की लड़ाई में जीत हुई। 2005 में अटलजी ने राजनीतिक जीवन से सन्यास ले लिया। 2014 में भारत सरकारने उन्हें भारत रत्न देने का निश्चय किया। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी खुद उनके घर भारत रत्न से सम्मानित करने गए। भारत सरकार ने अटलजी के 25 दिसबंर को अब सुशासन दिवस के रूप में मनाती है। एक जननायक,सांसद,ओजस्वी वक्ता, लेखक,विचारक, पत्रकार होने के साथ जब अवसर आया तो अटलजी ने विकास और सुशासन की एक नई इबारत लिखी। आज सामाजिक और राजनीतिक जीवन में काम करने वाले लाखों के लिए प्रेरणा का काम कर रही है। 


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