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    Video: अटल स्वर- मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं, लौट कर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं

    By Digpal SinghEdited By:
    Updated: Fri, 17 Aug 2018 09:12 AM (IST)

    अटल बिहारी वाजपेयी की कविताओं से देश का जन-जन खुद को जुड़ा हुआ मससूस करता है।

    Video: अटल स्वर- मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं, लौट कर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं

    नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी आज अपनी अंतिम यात्रा पर निकल रहे हैं। गुरुवार शाम दिल्ली के एम्स में उनका निधन हुआ। वाजपेयी एक कुशल राजनीतिक होने के साथ ही एक कोमल हृदय कवि भी थे। उनकी देशहित की कविताओं से देश का जन-जन खुद को जुड़ा हुआ मससूस करता है।

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    उनकी एक कविता आज बिल्कुल सच हो गई है। जिसमें वे कहते हैं...

    मौत की उम्र क्या
    दो पल भी नहीं...
    मैं जी भर जिया,
    मैं मन से मरूं
    जिंदगी एक सिलसिला,
    आजकल की नहीं...
    मैं जी भर जिया,
    मैं मन से मरूं
    लौट कर आऊंगा
    कूच से क्यों डरूं?

    आपको उनकी एक कविता तो याद ही होगी, जिसमें वे कहते हैं...

    टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
    पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर
    झरे सब पीले पात
    कोयल की कुहुक रात
    प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूं
    गीत नया गाता हूं।
    टूटे हुए सपने की सुने कौन सिसकी
    अंतर को चीर
    व्यथा पलकों पर ठिठकी
    हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा
    काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं
    गीत नया गाता हूं।
    गीत नया गाता हूं

    इस कविता के उलट भी उन्होंने एक कविता लिखी है... जिसमें वे कहते हैं...

    गीत नहीं गाता हूं
    बेनकाब चेहरे हैं,
    दाग बड़े गहरे हैं
    टूटता तिलिस्म आज
    सच से भय खाता हूं
    गीत नहीं गाता हूं

    अटल जी अपने दौर के एक-एक क्षण को अपनी कविताओं में समेट लेते थे। यह बात उनकी कविताओं में साफ छलकती है...

    घिरे प्रलय की घोर घटाएं,
    पावों के नीचे अंगारे
    सर पर बरसें यदि ज्वालाएं
    निज हाथों में हंसते-हंसते
    आग लगाकर, जलना होगा
    कदम मिलाकर चलना होगा

    पाकिस्तान को ताकीद करते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने यह कविता लिखी

    धमकी, जिहाद के नारों से
    हथियारों से
    कश्मीर कभी हथिया लोगे
    यह मत समझो
    हमलों से, अत्याचारों से, संहारों से
    भारत का शीश झुका लोगे
    यह मत समझो