Anand Mohan: 'रेमिशन पॉलिसी' जिससे आनंद मोहन जैसे दोषियों की सजा हुई माफ, क्या अब केंद्र लगा सकता है रोक?
Anand Mohan Case बाहुबली नेता आनंद मोहन के आज रिहा होने के बाद बिहार की राजनीति में फिर से हलचल मची है। आनंद मोहन की किस कानून के तहत रिहाई हुई और भाजपा भी इसका समर्थन क्यों कर रही है आइए जानें...
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। Anand Mohan Case बिहार के बाहुबली नेता आनंद मोहन आज रिहा हो गए। डीएम जी कृष्णैया की हत्या के मामले में जेल में बंद आनंद मोहन के रिहाई के आदेश के बाद से ही बिहार में वार-पलटवार की राजनीति चरम पर है। रिहाई को कुछ पार्टियां गलत बता रही हैं तो राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा के कुछ नेता रिहाई का समर्थन कर रहे हैं।
आखिर आनंद मोहन को किस कानून के तहत छोड़ा गया और क्यों भाजपा भी इसमें समर्थन कर रही है, आइए जानें...
रेमिशन पॉलिसी से सजा हुई माफ
आनंद मोहन जैसे दोषियों की सजा रेमिशन पॉलिसी (Remission policy) के तहत माफ की गई है। अपराधी की सजा को लेकर बनाई गई ये पॉलिसी उसकी सजा में छूट प्रदान करती है। इसके तहत किसी की भी सजा को राज्य सरकार कम कर सकती है, लेकिन इसको लेकर काफी विचार-विमर्श किया जाता है और कैदियों के व्यवहार का आकलन भी किया जाता है।
यहां बता दें कि जेल राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के अंतर्गत आते हैं। हर जेल का एक जेल मैनुअल होता है, जिसके तहत कोर्ट द्वारा किसी भी दोषी को दी गई सजा कम या माफ की जा सकती है।
कैसे मिली आनंद मोहन को रिहाई
रेमिशन पॉलिसी के तहत हर राज्य का अलग कानून होता है। दुष्कर्म और जघन्य अपराध करने वालों को कई राज्यों में सजा में कोई छूट नहीं दी जाती है। बिहार में सरकारी ड्यूटी पर तैनात कर्मी की हत्या के दोषी को सजा में कोई छूट नहीं दी जाती है। बिहार सरकार ने इसी कानूनी पेंच को हटाते हुए आनंद मोहन और 26 अन्य दोषियों की रिहाई का रास्ता साफ किया।
दरअसल, नीतीश सरकार ने 10 अप्रैल को बिहार कारा हस्तक 2012 के नियम 481 (I) (क) को ही हटा दिया। इस नियम के तहत सरकारी कर्मी की हत्या मामले में किसी भी दोषी की उम्रकैद की सजा 20 साल से पहले माफ नहीं हो सकती है। हालांकि, बिहार सरकार ने इस नियम को ही हटा दिया।
केंद्र को है ये अधिकार
कानून के जानकारों की माने तो इन दोषियों की रिहाई और सजा में कमी को लेकर केंद्र सरकार कोई कदम नहीं उठा सकती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि राज्य ही जेल मैनुअल बनाती है। जानकारों का कहना है कि केंद्र सिर्फ रिहाई पर रोक की सलाह दे सकता है।
रिहाई के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका
आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ इस बीच पटना हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका डाली गई है। याचिका में कहा गया है कि बिहार सरकार द्वारा कानून में संशोधन गैरकानूनी है और इससे लोक सेवकों की जान को खतरा भी महसूस हो सकता है।
भाजपा और आरजेडी ने रिहाई को बताया सही
बिहार की गठबंधन सरकार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने जहां आनंद मोहन की रिहाई को कानूनी रूप से लिया गया फैसला बताया तो वहीं भाजपा नेता गिरिराज सिंह ने भी रिहाई को सही बताया। उन्होंने कहा कि आनंद मोहन को बली का बकरा बनाया गया था।
दबंग राजपूत माने जाते हैं आनंद मोहन
आनंद मोहन का 1994 में गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैय्या की हत्या मामले में नाम सामने आया था। 2007 में उन्हें फांसी की सजा मिली थी। हालांकि, बाद में आनंद की सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया। बता दें कि आनंद मोहन को अपने इलाके का दबंग राजपूत नेता माना जाता है।
यहां तक की उनका असर कई लोकसभा सीटों पर भी माना जाता है, यही कारण है कि उनकी रिहाई का कोई जमकर विरोध नहीं कर रहा है। वह जनता दल और एनडीए का हिस्सा भी रह चुके हैं।