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    संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की दावेदारी पर अमेरिका ने बदला पैंतरा, कहा- वीटो करने का अधिकार नहीं

    By Bhupendra SinghEdited By:
    Updated: Fri, 06 Aug 2021 10:41 PM (IST)

    अमेरिका यूएनएससी के विस्तार का समर्थन करता है लेकिन दूसरे देशों को वीटो करने का अधिकार देने के पक्ष में नहीं है। अमेरिकी के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबाम ...और पढ़ें

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    पूर्व राष्ट्रपति ओबामा और ट्रंप ने भारत को स्थायी सदस्य बनाने का किया था समर्थन

    जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। क्या संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य के तौर पर भारत की दावेदारी को लेकर अमेरिका का रुख बदल रहा है? यह सवाल इसलिए उठ खड़ा हुआ है क्योंकि शुक्रवार को इस बारे में अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने जो बयान दिया है वह पिछले पांच-छह वर्षों के रवैये से अलग है। इसमें कहा गया है कि अमेरिका यूएनएससी के विस्तार का समर्थन करता है, लेकिन दूसरे देशों को वीटो करने का अधिकार देने के पक्ष में नहीं है।

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    पूर्व राष्ट्रपति ओबामा और ट्रंप ने भारत को स्थायी सदस्य बनाने का किया था समर्थन

    अमेरिकी के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा से लेकर डोनाल्ड ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में भारत की स्थायी सदस्यता की दावेदारी का समर्थन किया था।

    बाइडन प्रशासन ने कहा- वीटो के अधिकार का विस्तार नहीं होना चाहिए

    अमेरिकी विदेश मंत्रालय के बयान पर भारत ने कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। हाल के महीनों में विदेश मंत्री एस जयशंकर की अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन से तीन बार मुलाकात हुई है। दोनों के बीच विस्तार से द्विपक्षीय रिश्तों पर चर्चा भी हुई है लेकिन उसमें यूएनएससी के विस्तार के मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं हुई है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा है कि हम यूएनएससी में कुछ विस्तार के समर्थन में हैं और स्थायी एवं अस्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाने को लेकर सहमति बनाने के पक्ष में हैं। परंतु, इसके वीटो के अधिकार का विस्तार नहीं होना चाहिए। प्राइस का यह वक्तव्य भारत को समर्थन देने की अभी तक की अमेरिकी नीति से अलग है।

    भारत की दावेदारी का चीन के अलावा सभी चारों देश समर्थक

    सनद रहे कि यूएनएससी के पांच स्थायी सदस्य हैं- अमेरिका, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस। भारत की दावेदारी का अभी तक चीन के अलावा सभी चारों देश समर्थन करते रहे हैं। वर्ष 2015 में पीएम मोदी और पूर्व राष्ट्रपति ओबामा की बैठक के बाद और 25 फरवरी, 2020 को पीएम मोदी और पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप की आधिकारिक बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान में साफ तौर पर कहा गया था कि यूएनएससी में शामिल किए जाने पर भारत की दावेदारी का अमेरिका समर्थन करता है।

    बाइडन प्रशासन का रवैया अलग

    हाल के दिनों में यह पहला मौका नहीं है जब बाइडन प्रशासन की तरफ से भारत की इस दावेदारी को समर्थन देने में हिचकिचाहट दिखाई गई है। इसके पहले जनवरी, 2021 में यूएन में अमेरिका की प्रतिनिधि लिंडा थामस ने भारत, जापान, जर्मनी व ब्राजील के समूह-चार को समर्थन देने के सवाल का सीधा जवाब नहीं दिया था और कहा था कि इस बारे में काफी क्षेत्रीय विरोध है।

    स्थिति में नहीं आएगा कोई बदलाव

    जानकारों का कहना है कि अमेरिका की तरफ से स्पष्ट समर्थन नहीं मिलने का जमीनी तौर पर स्थिति में कोई बदलाव नहीं आएगा, क्योंकि चीन के समर्थन के बगैर इस बारे में कुछ नहीं हो सकता। वैसे भी अमेरिका के समर्थन के बावजूद भारत परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) का सदस्य सिर्फ इसलिए नहीं बन पाया है कि चीन इसकी राह में हर बार अड़ंगा डाल देता है। भारत अभी दो वर्षों के लिए यूएनएससी का अस्थायी सदस्य चुना गया है।