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    महाराष्ट्र में अजित पवार ने 2019 में रातों-रात बदली थी सियासी पिच, पर तीन दिन में गिरी थी सरकार; समझें समीकरण

    By Anurag GuptaEdited By: Anurag Gupta
    Updated: Sun, 02 Jul 2023 05:01 PM (IST)

    साल 2019 में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था लेकिन भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और चुनाव के बाद शिवसेना ने मुख्यमंत्री पद की लालसा में भाजपा के साथ चला आ रहा अटल बिहारी वाजपेयी के जमाने का गठबंधन तोड़ दिया। इसी के साथ ही महाराष्ट्र की सियासी हवा में तरह-तरह की अटकलें तेज हो गईं।

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    अजित पवार ने 2019 में रातों-रात बदली थी सियासी पिच

    मुंबई, ऑनलाइन डेस्क। महाराष्ट्र की सियासी पिच में रविवार को एक बार फिर से 'खेला' हुआ। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) नेता अजित पवार पार्टी विधायकों के समर्थन पत्र के साथ अचानक राजभवन पहुंचे और एकनाथ शिंदे सरकार को अपना समर्थन दे दिया। इसे एनसीपी में बड़ी फूट के तौर पर देखा जा रहा है। हालांकि, महाराष्ट्र की सियासत में यह पुराना अध्याय है। चार साल पहले भी अजित पवार ने पार्टी नेतृत्व को धप्पा बोलकर भारतीय जनता पार्टी के साथ हाथ मिला था।

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    कहानी 'सियासी पिच' की

    साल 2019 में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था, लेकिन भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और चुनाव के बाद शिवसेना ने मुख्यमंत्री पद की लालसा में भाजपा के साथ चला आ रहा अटल बिहारी वाजपेयी के जमाने का गठबंधन तोड़ दिया। इसी के साथ ही महाराष्ट्र की सियासी हवा में तरह-तरह की अटकलें तेज हो गईं और धुर विरोधी गुट एकजुट होने लगे।

    एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कांग्रेस और शिवसेना को एक टेबल पर लाकर बिठा दिया और कॉमन मिनिमम प्रोग्राम पर चर्चा शुरू हो गई। बैठकों का दौर चला और लगभग तीनों दलों के बीच आपसी सहमति बन गई। इसी के साथ ही 'महाविकास अघाड़ी' नामक गठबंधन बनकर उभरा, लेकिन 23 नवंबर की सुबह फिजा बदल गई। टेलीविजन में अचानक अजित पवार दिखाई दिए वो भी भाजपा के दिग्गज नेता देवेंद्र फडणवीस के साथ...

    क्या था चुनावी परिणाम?

    महाराष्ट्र की 288 सदस्यीय विधानसभा के लिए 21 अक्टूबर, 2019 को चुनाव हुआ था और 24 अक्टूबर को चुनावी नतीजे सामने आए थे। जिसमें भाजपा और शिवसेना के सत्तारूढ़ राजग को बहुमत मिला था। हालांकि, शिवसेना ने मुख्यमंत्री पद की लालसा में भाजपा के साथ चुनाव बाद नाता तोड़ दिया।

    भाजपा को 105 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि शिवसेना ने 56 सीटों पर बाजी मारी थी। वहीं, एनसीपी को 54 और कांग्रेस को 44 सीटें मिली थी। हालांकि, चुनावी परिणाम सामने आने के बावजूद यह तय नहीं हो पाया था कि सत्ता की 'चाबी' किसके हाथ में रहेगी। ऐसे में महाराष्ट्र में 12 नवंबर को राष्ट्रपति शासन लागू हो गया था।

    राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद एनसीपी, शिवसेना और कांग्रेस की बैठकें शुरू हो गईं और आपसी तालमेल बिठाया जाने लगा। इसी बीच 22 नवंबर की रात को अजित पवार अचानक ही बैठक से गायब हो गए और फिर 23 नवंबर को राजभवन में एक साधारण से कार्यक्रम में सम्मिलित हुए।

    महज तीन दिन में गिरी थी फडणवीस सरकार

    इस दौरान देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री तो अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी और महाविकास अघाड़ी का सपना लगभग चकनाचूर हो गया, लेकिन राजनीति के 'भीष्म पितामह' कहे जाने वाले शरद पवार ने विधायकों को वापस समेटना शुरू किया और शतरंज की ऐसी चालें चलीं कि अजित पवार अलग-थलग पड़ गए थे।

    इसके बाद देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और तीन दिन में ही फडणवीस सरकार गिर गई, लेकिन इस बार भाजपा के साथ पहले ही एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना का समर्थन है और अजित पवार के शामिल होने से सरकार और भी ज्यादा मजबूत हो गई है।

    फडणवीस सरकार गिरने के बाद एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना के मिलकर 'महाविकास अघाड़ी सरकार' का गठन किया और उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।