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    अब जेल से नहीं चल सकेगी सरकार! गिरफ्तार PM, CM को हटाने से जुड़े बिल पर मचा सियासी हंगामा, क्या है विपक्ष को डर?

    Updated: Wed, 20 Aug 2025 09:03 PM (IST)

    मोदी सरकार द्वारा संसद में पेश किए गए 130वें संविधान संशोधन बिल पर विपक्ष को शंका है कि इसका दुरुपयोग विरोधी दलों के नेताओं के प्रति किया जाएगा। विधेयक में प्रावधान है कि यदि किसी मुख्यमंत्री या मंत्री की गिरफ्तारी ऐसे मामले में होती है जिसमें पांच वर्ष या उससे अधिक की सजा का प्रविधान हो।

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    संसद में पेश किए गए 130वें संविधान संशोधन बिल पर विपक्ष ने किया हंगामा।(फाइल फोटो)

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली: मोदी सरकार द्वारा संसद में पेश किए गए 130वें संविधान संशोधन बिल पर विपक्ष की अपनी शंकाएं और प्रश्न हो सकते हैं, लेकिन राजनीतिक शुचिता बनाए रखने के लिए ऐसे कानून की जरूरत का सरकार का दावा भी निराधार नहीं माना जा सकता।

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    दरअसल, कानूनी प्रविधान न होने के बावजूद दशकों से देश में यह राजनीतिक परंपरा नैतिकता के आधार पर चलती रही कि गंभीर आपराधिक मामलों में गिरफ्तारी से पहले मुख्यमंत्री और मंत्री अपना पद त्याग देते थे।

    किन्तु दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत तमाम मंत्रियों ने जिस तरह से कुर्सी के मोह में नैतिकता को रौंदा, उसी ने संभवत: ऐसा कानून लाए जाने की परिस्थितियों को जन्म दिया है।

    अमित शाह ने 130वें संविधान संशोधन विधेयक को लेकर क्या कहा?

    केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा बुधवार को लोकसभा में पेश किए गए 130वें संविधान संशोधन विधेयक का मूल भाग यह है कि यदि किसी प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या केंद्र और राज्य के मंत्री की गिरफ्तारी ऐसे मामले में होती है, जिसमें पांच वर्ष या उससे अधिक की सजा का प्रविधान हो और उक्त नेता को तीस दिन के भीतर जमानत नहीं मिलती है तो 31वें दिन उसका पद स्वत: चला जाएगा।

    क्या है विपक्ष को डर? 

    विपक्ष को शंका है कि इस कानून का दुरुपयोग विरोधी दलों के नेताओं के प्रति किया जाएगा, लेकिन कानून के जानकारों का दो टूक प्रश्न है कि क्या अब तक कानूनी प्रविधान न होने का दुरुपयोग राजनेताओं ने नहीं किया? दरअसल, गिरफ्तारी पर इस्तीफे का कानूनी प्रविधान न होने के बावजूद दशकों से यह व्यवस्था-परंपरा नैतिकता के आधार पर चल रही थी।

    जैसे कि चारा घोटाले के आरोप में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव घिरे तो गिरफ्तारी से पहले कुर्सी छोड़ दी थी। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पिछले कार्यकाल में इस्तीफा इसी कारण से दिया था, क्योंकि उनकी गिरफ्तारी होने जा रही थी। आय से अधिक संपत्ति के मामले में जेल जाने से पहले एआइएडीएमके नेता जयललिता ने मुख्यमंत्री पद से त्याग-पत्र दिया था।

    मगर,दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सात-आठ महीने तक जेल से ही सरकार चलाई। यह उनकी राजनीतिक रणनीति थी कि जमानत पर बाहर आने के बाद त्याग-पत्र दिया।

    वहीं, मंत्रियों की बात करें तो महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार के मंत्री नवाब मलिक जेल में रहते हुए अपने पद पर बने हुए थे। कर्नाटक सरकार के मंत्री वी. सेंथिल बालाजी कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं थे, तब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उन्होंने त्याग-पत्र दिया।

    इनमें से किसी से पार्टी नेतृत्व ने भी इस्तीफा नहीं मांगा था। ऐसे में यह विधेयक नैरेटिव वार का नया मुद्दा बनेगा।

    भाजपा की ओर से विपक्षी दलों से सवाल किए जाएंगे कि वह क्यों डरे हैं। यह भी पूछा जा सकता है कि 2 साल की सजा पाने वाले नेताओं को चुनाव से लड़ने की रोक की पैरवी करने वाले राहुल गांधी अब क्यों इसका विरोध कर रहे हैं। माना जा रहा है कि सरकार इस विधेयक को पारित करवा लेगी। लेकिन अगर विपक्ष का अड़ंगा लगा तो राजनीति भारी पड़ेगी। 

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