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    भारतीय हितों के लिए घातक है तालिबान की वापसी, जानें किन-किन परियोजनाओं को लग सकता है धक्‍का

    By Arun Kumar SinghEdited By:
    Updated: Sun, 15 Aug 2021 09:56 PM (IST)

    तालिबानी शासन भारत के हितों को कई तरह से प्रभावित करने जा रहा है। पाकिस्तान के नियंत्रण वाले तालिबान के सत्ता में आने से अफगानिस्तान में भारत की मदद से चलाई जा रहीं अरबों डालर की परियोजनाओं को धक्का लगना तो तय है।

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    तालिबानी शासन भारत के हितों को कई तरह से प्रभावित करने जा रहा है

     नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। भारत जिस दिन 75वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा था, उसी दिन शाम को अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर तालिबान का कब्जा हो गया। पाकिस्तान की सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आइएसआइ की शह पर क्या तालिबान ने जानबूझकर 15 अगस्त का दिन चुना, यह तो बाद में पता चलेगा, लेकिन इतना तय है कि तालिबानी शासन भारत के हितों को कई तरह से प्रभावित करने जा रहा है। पाकिस्तान के नियंत्रण वाले तालिबान के सत्ता में आने से अफगानिस्तान में भारत की मदद से चलाई जा रहीं अरबों डालर की परियोजनाओं को धक्का लगना तो तय है, साथ ही ईरान के चाबहार पोर्ट से अफगानिस्तान व मध्य एशिया के दूसरे देशों को जोड़ने की भारत की योजना पर भी अब सवाल खड़ा हो सकता है। इन सभी योजनाओं को पूरा करने में अफगानिस्तान की मदद चाहिए और भारत इसकी अपेक्षा तालिबानी सत्ता से नहीं कर सकता।

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    अफगानिस्‍तान के हालात पर भारत की करीबी नजर

    दुनिया के दूसरे देशों की तरह भारत सरकार भी काबुल से अपने नागरिकों, मिशनों में काम करने वाले अधिकारियों, भारतीय संस्थानों में काम करने वाले अफगानिस्तानी नागरिकों को बाहर निकालने में जुट गया है। इनके अलावा भारत वहां के अल्पसंख्यक समुदाय, पत्रकारों, सिविल सोसायटी के कार्यकर्ताओं को भी बाहर निकालने की सोच रहा है। इस बारे में रविवार देर शाम तक विदेश मंत्रालय की तरफ से आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं बताया गया। सूत्रों ने बताया कि काबुल में हालात काफी तेजी से बदल रहे हैं और हम पूरे हालात पर काफी करीबी नजर रखे हुए हैं।

    129 यात्रियों को लेकर लौटा एयर इंडिया का विमान

    रविवार को एयर इंडिया की एक सामान्य कामर्शियल फ्लाइट दिल्ली से काबुल गई और वहां से 129 यात्रियों के साथ वापस आई। अफगानिस्तान में काम करने वाली भारतीय कंपनियों के भी अधिकांश कर्मचारी लौट चुके हैं। अफगानिस्तान में बिजली ट्रांसमिशन परियोजना लगाने वाले आरपीजी समूह के चेयरमैन हर्ष गोयनका ने कहा है कि वहां काम करने वाले सभी भारतीय कर्मचारियों को स्वदेश वापस बुला लिया गया है।

    जम्मू-कश्मीर पर असर को लेकर रणनीतिकार ज्यादा चिंतित

    तालिबान के सत्ता में आने से भारतीय रणनीतिकार सबसे ज्यादा इसके केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर पर पड़ने वाले असर को लेकर चिंतित हैं। पूर्व में भी पाकिस्तान ने तालिबान के जरिये इस राज्य में अशांति फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। कश्मीर में आतंकी वारदातों को अंजाम देने के लिए गठित संगठन जैश-ए-मुहम्मद को तैयार करने में तालिबान ने मदद की थी। इसके सरगना मसूद अजहर ने लगातार तालिबान के साथ काम किया है। यही नहीं, भारत के खिलाफ काम करने वाले कई आतंकी संगठन अभी भी तालिबान के साथ मिलकर अफगानिस्तान में लड़ाई लड़ रहे हैं। इनमें लश्कर, इस्लामिक स्टेट (जम्मू-कश्मीर) और अलकायदा शामिल हैं। पूर्व में भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने देश के कई हिस्सों से इनके लोगों को गिरफ्तार किया है।

    चीन और पाक के लिए भी मुसीबत बनेगा तालिबान

    देश के प्रसिद्ध कूटनीतिक जानकार व पूर्व राजदूत विष्णु प्रकाश ने 'दैनिक जागरण' से कहा कि भारत को खास तौर पर अब जम्मू-कश्मीर को लेकर सतर्क रहना होगा। तालिबान पर भारत कभी भरोसा नहीं कर सकता। काबुल पर कब्जे के बाद वे भारत ही नहीं, चीन और पाकिस्तान के लिए भी मुसीबत पैदा करेंगे। खैबर पख्तूनख्वा के आसपास रहने वाले तालिबानी पाकिस्तान से काफी खार खाए हुए हैं।

    चाबहार पोर्ट से मध्य एशिया को जोड़ने की योजना पर लग सकता है विराम

    उन्‍होंने कहा कि अभी भारत की चाबहार परियोजना को लेकर भी काफी दिक्कत पैदा होने की संभावना है। भारत ईरान के इस पोर्ट के जरिये अफगानिस्तान को जोड़ने पर काम कर रहा था ताकि अफगानिस्तान को कारोबार के लिए पाकिस्तान पर निर्भर न होना पड़े। भारत की योजना इस पोर्ट के जरिये दूसरे मध्य एशियाई देशों को भी जोड़ने की रही है।

    अब पाकिस्तान और चीन के समर्थन से इन देशों को अफगानिस्तान के रास्ते पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट की सुविधा मिल सकती है। चीन पहले ही कह चुका है कि वह अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में भारी निवेश करने का इच्छुक है। माना जा रहा है कि हाल में चीन के विदेश मंत्री और तालिबान नेताओं के बीच वार्ता में चीन-पाकिस्तान इकोनोमिक कारिडोर पर बात हुई है।