COP-26 : भविष्य संवारने जुटे दुनिया के दिग्गज, ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन के खतरों पर कल से मंथन
ब्रिटेन के ग्लासगो में रविवार से 26वें कांफ्रेंस आफ पार्टीज (सीओपी26) का आयोजन शुरू हो रहा है जिसमें दुनियाभर के देश जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के लिए 2015 तय लक्ष्य हासिल करने की दिशा में प्रयासों को तेज करने पर चर्चा करेंगे।
नई दिल्ली, जेएनएन। ब्रिटेन के ग्लासगो में रविवार से 26वें कांफ्रेंस आफ पार्टीज (सीओपी26) का आयोजन शुरू हो रहा है। इसमें दुनियाभर के देश जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के लिए 2015 में पेरिस में हुए समझौते और यूएन फ्रेमवर्क कन्वेंशन आन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) के तहत तय लक्ष्य हासिल करने की दिशा में प्रयासों को तेज करने पर चर्चा करेंगे। सीओपी एक सालाना बैठक है। इसमें यूएनएफसीसीसी पर हस्ताक्षर करने वाले देश हिस्सा लेते हैं। इनमें यूरोपीय संघ और 196 अन्य देश शामिल हैं। यह दुनिया की सबसे बड़ी अंतरराष्ट्रीय बैठकों में शुमार है।
बड़ी तैयारी
- राष्ट्र प्रमुख, सरकारी अधिकारी, सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधि और मीडियाकर्मी रहेंगे मौजूद
- दुनियाभर से 25 हजार से ज्यादा लोग बनेंगे 13 दिन चलने वाले ऐतिहासिक सम्मेलन के गवाह
25 हजार से ज्यादा लोग होंगे शामिल
विभिन्न आर्थिक, सामाजिक और भौगोलिक विविधताओं वाले देशों के बीच एक साझा खतरे से निपटने के लिए एक राय बनाना बहुत जटिल काम है। इस बैठक में विभिन्न देशों के प्रमुखों और अधिकारियों के अलावा सामाजिक संगठनों व मीडिया के प्रतिनिधि भी हिस्सा लेते हैं। इस बार सम्मेलन में 25 हजार से ज्यादा लोगों के भाग लेने का अनुमान है।
पेरिस में बनी थी ऐतिहासिक सहमति
सीओपी की शुरुआत 1995 में हुई थी। तब से हर साल यह सम्मेलन होता है। 21वां सम्मेलन यानी सीओपी21 का आयोजन 2015 में पेरिस में हुआ था। उस समय पहली बार सभी देश धरती के औसत तापमान में वृद्धि यानी ग्लोबल वार्मिग को औद्योगिक काल से पहले के औसत की तुलना में दो डिग्री सेल्सियस से कम पर रोकने की दिशा में कदम उठाने के लिए सहमत हुए। इसमें लक्ष्य रखा गया कि सभी देश ग्लोबल वार्मिग को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोकने का प्रयास करेंगे।
सम्मेलन की सफलता के लिए जरूरी तीन कदम
- सभी देश 2010 की तुलना में 2030 तक कार्बन उत्सर्जन 45 प्रतिशत कम करने का वादा करें
- अमीर देश जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए गरीब देशों को 100 अरब डालर सालाना की मदद दें
- इस मदद का आधा हिस्सा जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने में प्रयोग किया जाए
खतरा बड़ा है
विज्ञानियों का आकलन है कि यदि ग्लोबल वार्मिग इससे ज्यादा हुई तो यह बड़ी तबाही का कारण बन सकती है। दो डिग्री या इससे ज्यादा ग्लोबल वार्मिग हुई तो दुनिया की करीब तिहाई आबादी भीषण गर्मी का शिकार हो जाएगी। इससे स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। वार्म-वाटर कोरल रीफ लगभग पूरी तरह नष्ट हो जाएगी और हर दशक में कम से कम एक बार आर्कटिक की पूरी बर्फ पिघल जाएगी।
पड़ेगा व्यापक दुष्प्रभाव
विज्ञानियों का आकलन है कि ग्लोबल वार्मिग से वन्य जीवों और तटीय क्षेत्रों में बसे लोगों पर व्यापक दुष्प्रभाव पड़ेगा। ग्रीनलैंड और अंटार्कटिक की बर्फ की चादरें पिघलने लगेंगी। इससे आने वाली सर्दियों में समुद्र का जलस्तर कई मीटर तक बढ़ जाएगा। ग्लोबल वार्मिग 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रहने से भी मुश्किलें आएंगी, लेकिन कुछ हद तक सीमित रहेंगी। खाद्यान्न एवं पेयजल की समस्या अपेक्षाकृत कम रहेगी। प्रदूषण, बीमारी, कुपोषण और भीषण गर्मी का खतरा भी कुछ कम रहेगा।
महत्वाकांक्षी लक्ष्य आएंगे सामने
पेरिस में सभी देशों ने अपने यहां ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने की दिशा में नीतियां बनाने की बात कही थी। इसे नेशनल डिटरमाइंड कंट्रीब्यूशन (एनडीसी) कहा गया। हर पांच साल में देशों ने अपनी योजनाओं और उस दिशा में हो रहे प्रयासों पर अपडेट देने पर भी सहमति जताई थी। पिछले साल महामारी के कारण सम्मेलन आयोजित नहीं हो पाया था। अब ग्लासगो में सीओपी-26 में सभी देश इस पर चर्चा करेंगे।
नेट जीरो पर रखेंगे अपनी बात
इस दौरान 2050 तक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन शून्य करने (नेट जीरो) के लिए 2030 तक की अपनी महत्वाकांक्षी नीतियां भी सब सामने रखेंगे। इन लक्ष्यों को पाने के लिए देशों को कोयले का इस्तेमाल कम करने, अक्षय ऊर्जा में निवेश बढ़ाने, वनों की कटाई रोकने और इलेक्टि्रक वाहनों को अपनाने की गति तेज करनी होगी।
बढ़ रही तबाही
दुनिया में तबाही किस तरह बढ़ रही है, इसका अनुमान अमेरिका के आंकड़े से लगाया जा सकता है। इस साल अमेरिका में 18 प्राकृतिक आपदाएं आई, जिनमें 500 से ज्यादा लोगों की जान गई और करीब 7.5 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ। 1980 से 1990 के दौरान सालाना ऐसी औसतन तीन आपदाएं आती थीं।
ऐसा है हाल
- 1.1 डिग्री सेल्सियस तक वैश्विक तापमान बढ़ चुका है औद्योगिक काल से पहले की तुलना में
- 1.5 डिग्री सेल्सियस तक इस तापमान वृद्धि को रोकने का लक्ष्य रखा गया है पेरिस समझौते में
- 23.97 लाख करोड़ रुपये सालाना का नुकसान हो रहा है अप्रत्याशित मौसम के कारण दुनियाभर में। एआइआर वर्ल्डवाइड ने यह अनुमान दिया है
कुछ खतरा बना रहेगा
जलवायु परिवर्तन लगातार हो रहा है और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम होने के बाद भी कुछ समय यह बदलाव होता रहेगा। मानवजाति को इसके दुष्प्रभाव भी भुगतने ही होंगे। सीओपी26 में विभिन्न देश जलवायु परिवर्तन से प्रभावित देशों को सुरक्षित रहने और अपनी पारिस्थितिकी को बहाल करने में मदद पर चर्चा करेंगे। साथ ही प्राकृतिक आपदाओं के पूर्वानुमान की व्यवस्था को मजबूत करने, कृषि पर होने वाले दुष्प्रभावों को न्यूनतम करने और जीवन व आजीविकाओं की सुरक्षा पर भी कदम बढ़ाए जाएंगे।