भारत और मालदीव के लिए बेहद खास है पीएम मोदी का सोलिह के शपथ ग्रहण में जाना
रणनीतिक दृष्टि से काफी अहम मालदीव में बीते कुछ वर्ष काफी उतार चढ़ाव के रहे हैं। यामीन के समय में भारत को दूर कर चीन को बेहद करीब लाने का काम जोरशोर से किया गया।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मालदीव दौरा कई मायनों में खास हो चुका है। बीते कुछ वर्षों में आए उतार-चढ़ाव के बाद दोनों देशों के पास एक बार फिर से रिश्तों को मजबूत करने का सुनहरा अवसर आया है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि बीते कुछ वर्षों में पूर्व की सरकार के चलते मालदीव भारत से काफी दूर हो गया था। लेकिन हाल ही में हुए चुनाव के बाद एक बार फिर से वहां पर भारत समर्थक सरकार बनने वाली है, लिहाजा यह पल दोनों ही देशों के लिए काफी खास है। शनिवार को मालदीव में नवनिर्वाचित राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह अपना पदभार संभाल लेंगे और दोनों देशों के बीच एक नए युग का आगाज विधिवत रूप से हो जाएगा। आपको बता दें कि मालदीव भारत के लिए रणनीतिक दृष्टि से काफी अहम है। हिंद महासागर में इसकी भौगोलिक स्थिति की ही वजह से चीन ने बीते कुछ वर्षों में वहां पर अपनी मौजूदगी को बढ़ाया है। चीन की इस काम में मदद वहां के तत्कालीन राष्ट्रपति राष्ट्रपति ने की थी।
उतार चढ़ाव के वर्ष
रणनीतिक दृष्टि से काफी अहम मालदीव में बीते कुछ वर्ष काफी उतार चढ़ाव के रहे हैं। मोहम्मद यामीन के समय में भारत को दूर कर चीन को बेहद करीब लाने का काम जोरशोर से किया गया। यही वजह थी कि वहां पर निलकने वाली जॉब्स में यहां तक लिख दिया गया था कि भारतीय इसके लिए आवेदन न करें। इतना ही नहीं मालदीव में काम कर रहे भारतीयों की समयाविधि बढ़ाने से भी इंकार कर दिया गया था। उनको यहां तक कह दिया गया था कि उन्हें वापस मालदीव आने की जरूरत नहीं है।
यामीन सरकार के कारनामे
इसके अलावा भारतीय नौसेनिकों के दल और भारतीय हैलीकॉप्टर्स को भी लौटाने को यामीन की सरकार के दौरान कह दिया गया था। यामीन की सरकार ने मालदीव में होने वाले विकास कार्यों से भारतीयों के आवेदनों को रद कर इन्हें चीन के हवाले कर दिया था। चीन ने वहां पर न सिर्फ बंदरगाहों के निर्माण, पुल के निर्माण में अपनी भागीदारी दिखाई है, बल्कि पिछली सरकार के दौरान उनकी नौसेना के पोत और पनडुब्बियों ने वहां पर लंगर भी डालकर रखा है।
मालदीव पर चीन की नजर
यामीन सरकार से पहले मालदीव में वर्ष 2012 में मोहम्मद नाशिद ने सरकार बनाई थी। उस वक्त भी भारत से उनके रिश्ते काफी बेहतर थे। लेकिन यामीन सरकार के आने के बाद नाशिद को न सिर्फ गैरकानूनी तरीके से जेल में डाल दिया गया था बल्कि यामीन ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ना मानते हुए देश में आपातकाल तक लगा दिया था। जानकार मानते हैं कि इन सभी घटनाओं के पीछे कहीं न कहीं चीन का हाथ था। दरअसल, रणनीतिक दृष्टि से अहम मालदीव में चीन अन्य देशों की तर्ज पर कब्जा करना चाहता है। इसके लिए वह यहां पर धन, कर्ज और विकास का लालच दे रहा है। इसके पीछे एक बड़ी वजह ये भी है कि यहां पर रहकर चीन भारत की नौसेना और भारतीय युद्धपोतों पर करीब से नजर रख सकता है। हिंद महासागर में चीन के कदमों को आगे बढ़ाने की सुनियोजित साजिश का एक हिस्सा है।
नाशिद की स्वदेश वापसी
इसी माह मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मुहम्मद नशीद श्रीलंका से स्वदेश लौटे थे। वह लंबी सजा से बचने के लिए पिछले दो वर्ष से ज्यादा समय से श्रीलंका में स्वनिर्वासित जीवन बिता रहे थे। गत सितंबर में देश में हुए राष्ट्रपति चुनाव में नशीद की मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) के नेतृत्व में विपक्षी उम्मीदवार इब्राहिम मुहम्मद सोलिह ने मौजूदा राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन पर जीत दर्ज की थी, जिसके बाद ही नाशिद ने स्वदेश वापसी की घोषणा की थी।
पूर्व राष्ट्रपति मौमून
इससे पहले अक्टूबर में मालदीव की एक अदालत ने देश के पूर्व राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम को मिली 19 माह कैद की सजा निरस्त कर दी। राष्ट्रपति चुनाव में सौतेले भाई और निवर्तमान राष्ट्रपति यामीन की करारी पराजय के बाद उन्हें यह राहत मिली है। 80 वर्षीय गयूम 30 वर्षो तक देश पर राज कर चुके हैं। 2008 में देश में हुए पहले बहुदलीय चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा और वह सत्ता से अलग हुए थे।