क्या इटली की पहली महिला PM जार्जिया मेलोनी यूरोप के लिए कोई नया अध्याय लिख पाएंगी?
Giorgia Meloni रोम-बर्लिन-टोक्यो एक्सिस में भी इटली निर्णायक था जिसने दुनिया को दूसरे विश्वयुद्ध में धकेल दिया था। तो क्या जार्जिया मेलोनी भी कुछ ऐसा नया करेंगी जो यूरोपीय इतिहास में एक नए अध्याय का रूप ले सकेगा।
डा. रहीस सिंह। इसमें संशय नहीं है कि इटली में जार्जिया मेलोनी की ब्रदर्स आफ इटली की जीत और उनके द्वारा प्रधानमंत्री पद धारण कर लेने के बाद एक नए कार्यकाल का आरंभ होगा। हो सकता है कि यह इतिहास के तमाम पन्नों को फिर से उलटने के लिए विवश करे। यदि ऐसा हुआ तो यह कार्य केवल इटली नहीं करेगा, बल्कि यूरोप को भी नया आइना दिखाया जा सकता है, उस यूरोप को जिसने लगभग दो दशक आप्टिम करेंसी और आप्टिमम यूनियन के साथ-साथ उदारता और समझौतों से बंधी एकता को 21वीं सदी के लिए आदर्श व्यवस्था के रूप में प्रचारित किया था। लेकिन क्या अब यह सब ‘आप्टिमम’ विशेषण के साथ मौजूद रह पाएगा?
दरअसल मेलोनी नामक यह नया चेहरा यूरोप में धुर दक्षिणपंथ के साथ उतरा है जो बताता है कि यूरोप का या तो पुराना चेहरा अब प्रासंगिक नहीं रहा या फिर वह एंजेला मर्केल और सरकोजी (संयुक्त रूप से इसके लिए मरकोजी शब्द प्रयोग किया जाता है) के आर्थिक माडल में दबकर चरमरा गया है और अब वह मध्य-मार्ग, छद्म आदर्शवाद या फिर वामपंथी समाजवाद से दूर जाना चाहता है। तो क्या यह मान लें कि यूरोप का चेहरा आने वाले समय में बदल जाएगा?
एक बात और, क्या जार्जिया मेलोनी यूरोप की उन नीतियों से उपजे आक्रोश का परिणाम है जिनके चलते करोड़ों अनजान चेहरों, जिनमें से अधिकांश मध्य-पूर्व के इस्लामी देशों से आए हैं, यूरोप की धरती पर निवास करने लगे जिनकी यूरोप को बनाने में उपादेयता नगण्य रही। यही नहीं, इन अनजान चेहरों पर यूरोप के लोग अभी भी भरोसा नहीं कर पा रहे हैं या फिर यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि इन्हें वे शरणार्थी मानें अथवा ऐसे घुसपैठिए जिनके साथ यूरोप में वे घुसपैठ कर ले जा रहे हैं जो यूरोप के मूल स्वभाव को ही खत्म करना नहीं चाहते, बल्कि यूरोप की जीवन शैली में जीवन को भी पीड़ा पहुंचाना चाहते हैं। सच क्या है? एक सवाल और। क्या मेलोनी इटली अथवा यूरोप के लिए कोई नया अध्याय लिख पाएंगी? यदि हां तो आने वाले समय में क्या यूरोप की तस्वीर बदली हुई होगी?
नव-फासिस्ट विचार
यहां यह प्रश्न महत्वपूर्ण है कि जार्जिया की पार्टी चार वर्षों के अंदर चार प्रतिशत से 26 प्रतिशत वोट पाने का सफर कैसे तय कर गई। इसके लिए क्या इटली की आंतरिक समस्याएं विशेषकर महंगाई, बिजली संकट और अर्थव्यवस्था में स्थिरता ने जार्जिया के लिए रास्ता बनाया या फिर जेनोफोबिया और इस्लामोफोबिया ने? जार्जिया की राजनीतिक यात्रा देखें तो स्पष्ट हो जाएगा कि नव-फासिस्ट विचारधारा की प्रखर समर्थक हैं। ब्रदर्स आफ इटली इसी का प्रतिनिधित्व करती है।
महंगाई, बिजली और अर्थव्यवस्था में स्थिरता जैसे मुद्दे तो हैं और इनका प्रभाव रहा, लेकिन पूरे यूरोप में जो एक लहर चल रही है, वह शायद अधिक महत्वपूर्ण रही। इसका एक उदाहरण फ्रांसीसी उपन्यासकार मीशेल वेलबेक के इन शब्दों में देखा जा सकता है। उसने अपने उपन्यास ‘सबमिशन’ में लिखा था कि 2022 तक फ्रांस का इस्लामीकरण हो जाएगा, देश में मुस्लिम राष्ट्रपति होगा और महिलाओं को नौकरी छोड़ने के लिए प्रेरित किया जाएगा, विश्वविद्यालयों में कुरान पढ़ाई जाएगी। यह केवल इस्लामोफोबिया का उदाहरण मात्र नहीं है, बल्कि ऐसे ही शब्द पेरिस हमले के समय फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों बोल रहे थे। उनका कहना था, इस्लामवादी हमसे हमारा भविष्य छीनना चाहते हैं।
वास्तव में यह तो देखना ही पड़ेगा कि पेरिस में ‘लोन वुल्फ’ हमला करने वाले कौन थे? वर्ष 2015 में शार्ली हेब्दो के दफ्तर में कत्लेआम करते समय अल्लाहू अकबर बोलने वाले कौन थे? या सैमुअल पैटी का जिसने सिर कलम किया या जिसने चर्च में घुसकर लोगों की हत्या की थी, वे कौन था? जिन लोगों ने विएना में आतंकी हमला किया वे किस वैचारिकी के थे? यह भले ही राजनीतिक सत्ताएं न तय कर पाई हों, लेकिन यूरोप के लोग शायद निष्कर्ष तक पहुंच रहे हैं। यही नहीं ईसाई दुनिया के धर्माधिपति पोप बेनेडिक्ट 16वें ने काफी पहले कह दिया था कि यूरोप अपने भविष्य में आस्था खो रहा है, क्योंकि वह खुद को इतिहास से मिटाने के रास्ते पर चल पड़ा है। इसके बाद ‘डेली टेलीग्राफ’ ने वेटिकन सिटी की तरफ से यह भी प्रकाशित किया था कि यूरोप यदि इस्लाम के वर्चस्व से बचना चाहता है तो यहां की सरकारें ईसाइयों को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रेरित करें। यानी पोप उसी चिंता से ग्रस्त थे जिससे ‘सबमिशन’ के लेखक मीशेल वेलबेक ग्रस्त थे या जिससे आज इमैनुएल मैक्रों में दिखी थीं। शायद जार्जिया मेलोनी भी इन चुनौतियों को उसी एंगल से देख रही हैं जिस एंगल से पोप बेनेडिक्ट 16 ने देखा या फिर मीशेल वेलबेक अथवा इमैनुएल मैक्रों ने देखा।
मजबूत होगा दक्षिण पंथ
मेलोनी के सत्ता में आ जाने के बाद यूरोप में दक्षिण पंथ को अधिक मजबूती मिलेगी और यह भी संभव है कि संगठित होकर उस परंपरागत विचारधारा और नीतियों को काउंटर करने में सफल हों जो यूरोप के लिए खतरा बनती जा रही है। चूंकि जार्जिया की महत्वाकांक्षा अधिक है और वे अपने राजनीतिक और वैचारिक माडल को इटली से बाहर तक ले जाना चाहती हैं, इसलिए चुनौतियों का मुकाबला भी करना पड़ सकता है। पहली चुनौती यही होगी कि वे आर्थिक नीतियों के मामले में यूरोपीय संघ द्वारा निर्धारित नीतियों व नियमों का अनुपालन कर पाएंगी या नहीं। अभी तो यही लगता है कि यदि यूरोपीय संघ उन पर दबाव बनाएगा तो वह उग्र दक्षिणपंथ के अपने मौलिक स्वरूप में नजर आएंगी। यह स्थिति यूरोप में नई एकता या नए विभाजनों का कारण बन सकती है।
ब्रदर्स आफ इटली, साल्विनी वाली लीग और सिल्वियो बर्लुस्कोनी के नेतृत्व वाली फोर्जा इटालिया यूक्रेन मामले में रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के खिलाफ हैं। ऐसे में अनुमान है कि इटली की नई सरकार का यूरोपीय संघ से पहला टकराव यूक्रेन वाले मुद्दे पर ही होगा। इटली यूरोपीय संघ तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। इसलिए यहां पर होने वाले परिवर्तन यूरोप की दिशा बदलने की क्षमता रखते हैं। पिछले आठ दशकों से इटली की राजनीति मुसोलिनी के विरोधियों और समर्थकों के बीच विभाजक रेखा खींचती रही है और मुसोलिनी केंद्र में रहे हैं।
एक नए विभाजन का सबब
मुसोलिनी भी इस प्रचार का हिस्सा थे कि बच्चों का पालना खाली है और कब्रिस्तान भरते जा रहे हैं। इस तरह दूसरी नस्ल के लोग हम पर हावी हो जाएंगे। मुसालिनी ने इटली की संपूर्णता के लिए एक भूख पैदा की थी, भूमध्य सागर को पार कर अटलांटिक और भारतीय महासागरों तक इटली की सीमाओं के विस्तार की। जार्जिया भी इसी विचारधारा को आगे ले जाने की पक्षधर दिख रही हैं। देखना यह है कि इटली में उगा यह मुसोलिनीवादी भविष्य में यूरोप की इच्छा और एकता की प्रतिध्वनि बनेगा या एक नए विभाजन का सबब। जार्जिया मेलोनी इटली की प्रधानमंत्री चुनी गई हैं। उनकी पार्टी ब्रदर्स आफ इटली, द लीग और फार्जा इटालिया के गठबंधन को 43.8 प्रतिशत मत प्राप्त हुए हैं। यूरोप को आधुनिक युग तक ले जाने में इटली की बड़ी भूमिका रही है, चाहे वह इटली के शहरों- फ्लोरेंस, सिसली, नेपल्स से आरंभ हुआ रेनेसां हो या मार्टिन लूथर के नेतृत्व में रिफर्मेशन आंदोलन।
[अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार]