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    G-20 देशों की अध्यक्षता के लिए तैयार भारत, विश्व की दो-तिहाई जनसंख्या निवास करती जी-20 देशों में

    By Jagran NewsEdited By: Sanjay Pokhriyal
    Updated: Fri, 07 Oct 2022 10:29 AM (IST)

    G-20 भारत में कारपोरेट टैक्स की दर को घटाकर पहले 25 प्रतिशत और व्यवसायों के लिए मात्र 15 प्रतिशत कर दिया गया। उद्देश्य बताया गया कि इससे नए निवेश आकृष्ट होंगे। कमोबेश यही हाल कई अन्य देशों का भी है।

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    विश्व के समक्ष चुनौतियों के संदर्भ में उनके समुचित समाधान के लिए प्रयास की पहल कर सके। प्रतीकात्मक

    डा. अश्विनी महाजन। इसी वर्ष एक दिसंबर को भारत पर जी-20 देशों की अध्यक्षता का दायित्व आ जाएगा और यह 30 नवंबर 2023 तक रहेगा। जी-20 (ग्रुप आफ ट्वेंटी) विश्व के विकसित और विकासशील देशों का समूह है, जिसमें अभी 19 देश (अर्जेंटीना, आस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, दक्षिण कोरिया, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्कीये, इंग्लैंड, अमेरिका) हैं।

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    विश्व की 85 प्रतिशत जीडीपी इन देशों से ही आती है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार में इन देशों का हिस्सा 75 प्रतिशत है। इतने महत्वपूर्ण देशों के समूह की अध्यक्षता के चलते लगभग 200 छोटी-बड़ी बैठकों का आयोजन भारत में होना है। आज लगभग पूरा विश्व बढ़ती कीमतों और खाद्य पदार्थों की कमी से जूझ रहा है। नई प्रौद्योगिकी के आगाज से जहां हमारा जीवन सुविधापूर्ण हो रहा है, वहीं सरकारों के समक्ष कई चुनौतियां भी आ रही हैं।

    नई प्रौद्योगिकी, खासतौर पर इंटरनेट के कारण दुनिया के देशों के बीच की दूरियां समाप्त हो रही हैं। पुराने उद्योग-धंधे शिथिल हो रहे हैं और उनके स्थान पर नए व्यवसाय जन्म ले रहे हैं। निवेश प्राप्त करने की होड़ में प्रतिस्पर्धात्मक कराधान की ओर दुनिया बढ़ती जा रही है। यानी हर देश कारपोरेट टैक्स की दर घटाकर यह दिखाने की कोशिश कर रहा है कि वह निवेश के लिए सुविधाएं दे रहा है। लेकिन इसके साथ ही सभी देशों में कराधान भी घटता जा रहा है, जिस कारण सरकारों को पर्याप्त राजस्व नहीं मिल रहा है।

    दुनिया भर की सरकारें अपने देशों में कर राजस्व वसूलने में भारी कठिनाई महसूस कर रही हैं। टेक कंपनियां ही नहीं, बल्कि दूसरी अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भी अपने वैश्विक व्यवसाय को चलाते हुए टैक्स भुगतान से स्वयं को बचा रही हैं। न तो वे अपने मूल देश में कर देना चाहती हैं और न ही उन देशों में जहां वे व्यवसाय कर रही हैं। अधिकाधिक निवेश आकर्षित करने की होड़ में अधिकांश देश कारपोरेट टैक्स की दर घटाने में प्रतिस्पर्धा में जुटे हैं।

    भारत में कारपोरेट टैक्स की दर को घटाकर पहले 25 प्रतिशत और व्यवसायों के लिए मात्र 15 प्रतिशत कर दिया गया। उद्देश्य बताया गया कि इससे नए निवेश आकृष्ट होंगे। कमोबेश यही हाल कई अन्य देशों का भी है। यानी कर घटाने की प्रतिस्पर्धा हर देश में शुरू हो चुकी है। इसके अतिरिक्त कई टैक्स हैवन अलग प्रकार से करों से बचने का रास्ता देते हैं। विभिन्न देशों द्वारा दी जा रही कर रियायतों के चलते अलग-अलग देशों के अमीर लोगों का भी आकर्षण वहां होता है। कई देशों के अत्यधिक अमीर लोग दुनिया के दूसरे देशों में जा रहे हैं। इस कारण सरकारों का राजस्व घट रहा है।

    अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का कहना है कि एक से अधिक देशों में काम करने वाली कंपनियों पर न्यूनतम 15 प्रतिशत कर लगाने की अनिवार्यता होनी चाहिए। इस संबंध में 136 देशों में आम सहमति भी बनी है। यदि सभी देशों में न्यूनतम कर के बारे में सहमति बनती है तो इसका लाभ सभी देशों को हो सकता है। इस काम के लिए भारत जी-20 की अध्यक्षता के अवसर का उपयोग करते हुए इस संबंध में वैश्विक सहमति की ओर आगे बढ़ सकता है।

    देश और अर्थव्यवस्था के संचालन के लिए सरकारों को नित नए आय के स्रोत खोजने पड़ते हैं। आम तौर पर सरकारें उभरते हुए क्षेत्रों में ग्रोथ के माध्यम से कर वसूलने का काम करती हैं। लेकिन वर्तमान समय की विडंबना यह है कि जिन क्षेत्रों में विकास हो रहा है, उन क्षेत्रों की कंपनियां अपने अंतरराष्ट्रीय बिजनेस की आड़ में टैक्स देने से बच रही हैं। हालांकि विभिन्न बहुराष्ट्रीय कंपनियां पूर्व में भी यह प्रयास करती थीं। लेकिन वर्तमान टेक, ई-कामर्स और इंटरनेट मीडिया कंपनियां विभिन्न हथकंडे अपनाकर टैक्स देने से बच रही हैं।

    भारत में इंटरनेट मीडिया कंपनियों पर न्यूनतम वैकल्पिक कर (ईक्वलाइजेशन लेवी) लगाने की ओर सरकार बढ़ी है। परंतु इस कर का आपात अत्यंत सीमित है। गूगल और फेसबुक सरीखी कंपनियां अपनी विज्ञापनों की आय पर कर देने से बच रही हैं और ई-कामर्स कंपनियां अपने व्यवसाय और पूंजीगत मूल्यन को बढ़ाने के लिए नकदी जलाने की रणनीति के चलते सामान्य व्यवसायिक घाटा दिखाकर टैक्स देने से बच रही हैं। इन कंपनियों पर अलग-ढंग से कर वसूलने की आवश्यकता है। खास बात यह है कि ये कंपनियां अपने मूल देशों में भी करों से बचने का प्रयास कर रही हैं। जी-20 देशों के बीच इस संबंध में चर्चा के माध्यम से दुनिया के देशों की राजकोष की समस्या के समाधान की आवश्यकता होगी।

    [प्रोफेसर, पीजीडीएवी कालेज, दिल्ली विवि]

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