Move to Jagran APP

चुनौतियों के बीच वैश्विक वर्चस्व कायम करने की होड़ में पिछड़ता चीन, एक्सपर्ट व्यू

चीन सरकार की जीरो कोविड पालिसी के कारण कई शहरों में लाकडाउन से उकताकर लोग सड़कों पर उतर आए हैं और सख्त पाबंदियों का विरोध कर रहे हैं। चीन में इस तरह के सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन कम ही देखने को मिलते हैं।

By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalPublished: Tue, 29 Nov 2022 10:30 AM (IST)Updated: Tue, 29 Nov 2022 10:30 AM (IST)
चुनौतियों के बीच वैश्विक वर्चस्व कायम करने की होड़ में पिछड़ता चीन, एक्सपर्ट व्यू
चीन में सरकार के मनमाना रवैये से त्रस्त राजधानी बीजिंग की जनता सड़कों पर विरोध प्रदर्शन कर रही है। रायटर्स

डा. रहीस सिंह। पिछले दिनों भारत और चीन, दोनों ही देशों की तरफ से दो बयान आए। एक बयान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की तरफ से था जो उन्होंने दिल्ली में सैन्य कमांडरों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए दिया था। उनका कहना था, ‘भारत एक शांति प्रिय देश है जिसने कभी किसी देश को ठेस पहुंचाने की कोशिश नहीं की, परंतु यदि देश के अमन-चैन को भंग करने की कोई कोशिश की जाती है तो उसका मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा।’ दूसरा बयान चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग का था जो वह आठ नवंबर को ही दे चुके थे, जिसका ही प्रत्युत्तर भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का बयान माना जा सकता है।

loksabha election banner

शी चिनफिंग ने सेंट्रल मिलिट्री कमीशन (सीएमसी) के संयुक्त अभियान कमान मुख्यालय में सैन्यकर्मियों को संबोधित करते हुए कहा था, ‘चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा बढ़ती अस्थिरता व अनिश्चितता का सामना कर रही है। ऐसे में हमें युद्ध लड़ने और जीतने के लिए तैयार रहना चाहिए।’ चिनफिंग ने उसी समय चीनी सेना (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) से ‘सैन्य प्रशिक्षण व युद्ध की तैयारियों को बढ़ाने’ का आह्वान भी किया। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ये बयान औपचारिक थे जो सामान्य स्थितियों में भी देशों के माध्यम से अपने स्टेटस को व्यक्त करने के लिए दिए जाते रहते हैं या फिर इनके निहितार्थ कुछ और हैं?

‘मिनिमम डेटरेंस’

भारत एक शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के मंत्र का अनुपालनकर्ता देश है, इसलिए वह अनावश्यक ऐसे बयान नहीं देता जिसमें तनाव जैसी स्थिति व्यक्त हो। इसका सबसे बेहतर उदाहरण है पोखरण दो के बाद भारत द्वारा ‘नो फर्स्ट यूज’ और ‘मिनिमम डेटरेंस’ को अपनाना। लेकिन यदि संदर्भ युद्धोन्मादी अभिव्यक्ति (किसी दूसरे देश द्वारा) का हो उसके अनुरूप प्रत्युत्तर राष्ट्रीय दायित्व की श्रेणी में आता है। इसी परिप्रेक्ष्य में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के वक्तव्य को देखा जा सकता है। वैसे कुछ विशेषज्ञ शी चिनफिंग के वक्तव्य को चीनी नेता की बातचीत की शैली भर मानने तक सीमित रहना चाह रहे हैं। लेकिन ऐसा लगता नहीं है। इसके कई कारण गिनाए जा सकते हैं।

दक्षिण प्रशांत में वर्चस्व की राजनीति

  • पहला- वर्ष 2020 की गलवन हिंसा के बाद चीनी नेता के वक्तव्यों को सामान्य बातचीत की शैली भर नहीं मान सकते।
  • दूसरा- चीन वर्तमान में सख्ती के उस दौर में आ गया है, जहां आक्रामकता अधिक दिख सकती है। हाल में हुए कम्युनिस्ट पार्टी की कांग्रेस में इसे और बल मिला है, जब शी चिनफिंग को लगातार तीसरी बार पार्टी महासचिव चुना गया। पिछले दशकों में चीन ने साम्यवादी शासन के बावजूद शांतिपूर्ण सत्ता परिवर्तन का एक रास्ता खोज लिया था, जिसमें एक नेता दस वर्षों और अधिकतम 70 वर्ष की उम्र तक पार्टी का महासचिव और देश का राष्ट्रपति होता था। लेकिन शी चिनफिंग ने इसे पूरी तरह से बदल दिया है। अब वह तीसरे कार्यकाल के साथ पार्टी के सर्वशक्तिमान नेता बन गए हैं, इसलिए चीन तानाशाही, आक्रामकता और युद्धोन्मादी अभिव्यक्ति का शिकार अधिक रहेगा।
  • तीसरा- घरेलू राजनीति में विरोध को दबाने और दक्षिण प्रशांत में वर्चस्व की राजनीति करने के अलावा चीन अब एक खतरनाक विदेश और आर्थिक नीति अपनाने की ओर बढ़ चुका है। इसका उद्देश्य है- चीन को दुनिया से स्वतंत्र और दुनिया को चीन पर निर्भर बनाना।
  • चौथा- यद्यपि यूक्रेन में रूस के लिए बनती प्रतिकूल परिस्थितियों के दृष्टिगत चीन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में थोड़ा संभलकर कदम बढ़ाएगा, लेकिन वह अपने मौलिक चरित्र से पीछे हटना नहीं चाहेगा।
  • पांचवीं- वजह भी है और वह है- घरेलू चुनौती तथा शी चिनफिंग की छवि, जिस कारण चीन में इन दिनों नागरिक आक्रोश बढ़ गया है।

आंतरिक चुनौती

दरअसल शी चिनफिंग अपनी छवि और अपनी नेतृत्व क्षमता को मजबूती से देश के अंदर और बाहर प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहे हैं। इसके पीछे भी कई कारण हैं। चीन के लोग मानते हैं कि सख्त जीरो कोविड नीति के तहत सख्ती से किए गए लाकडाउन ने उनकी अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया है। नागरिकों की तरफ से भारी विरोध न हो, इसके लिए नागरिक अधिकारों का दमन आवश्यक है। इस दिशा में पहला कदम होता है बलपूर्ण धमकी या अपनी ताकत को प्रदर्शित करने के लिए वक्तव्यों के माध्यम से सेना को छद्म निर्देश और लोगों को संदेश। आंतरिक स्थितियों को नियंत्रण में रखने के लिए सरकार का विरोध करने वालों के लिए सख्त सजा के प्रविधान किए गए हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इंटरनेट मीडिया के माध्यम से चीन के नागरिक विरोध करते हुए स्पष्ट तौर पर देखे जा सकते हैं और चीन की सरकार की बेचैनी भी।

चीन की इंटरनेट मीडिया साइट ‘वीबो’ पर मंडारिन में सरकार विरोधी पोस्ट हटा दिए जाते हैं। शी चिनफिंग पीएलए को आगामी चार वर्षों में विश्व स्तरीय सेना बनाना चाहते हैं। इसके साथ ही वह यूनीफिकेशन और रीजनल वार को वरीयता देते हुए दिख रहे हैं। चिनफिंग प्रत्येक स्तर पर अपनी सेना को युद्ध के लिए तैयार रहने के साथ-साथ शक्तिशाली बनाने की मंशा रखते हैं। इसलिए यदि भारत की तरफ से चिंता व्यक्त की जाती है अथवा सख्त प्रतिक्रिया दी जाती है, तो इसके उचित कारण होते हैं। वैसे चीन भारत के साथ कोई बड़ा युद्ध करना कदापि नहीं चाहेगा, लेकिन वह भारत को दबाव में रखने की कोशिश करता रहेगा। मुख्य रूप से तो शी चिनफिंग के निशाने पर ताइवान है, परंतु भारत उपमहाद्वीपीय शक्ति के रूप में स्वीकार्य हो रहा है और भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा निरंतर बढ़ रही है। इसलिए चीन यदि रीयूनीफिकेशन के बहाने ताइवान और तिब्बत को निशाना बनाने की कोशिश कर सकता है तो वह तवांग यानी अरुणाचल और सिक्किम तक अपनी हरकतों के दायरे का विस्तार भी इस जैसी किसी छद्म नीति के जरिये कर सकता है।

ऐसे में भारत को भी सतर्क रहना होगा। वैसे आज का युग यथार्थवाद से कहीं अधिक प्रतीकवाद और संदेहवाद का युग है। चीन प्रतीकवाद और संदेहवाद का सहारा अधिक ले रहा है। हालांकि भारत ‘ग्लोबल वैल्यू चेन’ में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ एक कांटीनेंटल शक्ति के रूप में उभरता हुआ दिख रहा है। लेकिन चीन बहुआयामी से बहुरूपिये तक की भूमिका में है जिसमें व्यापार के ‘वेपनाइजेशन’ से लेकर ‘डिप्लोमैटिक सिंबोलिज्म’ तक बहुत कुछ शामिल है। इसलिए भू-राजनीतिक खेल अब केवल इन दो शब्दों तक ही सीमित नहीं रह गया है, बल्कि बहुत कुछ है जो अदृश्य है। इसलिए केवल आंख और कान ही नहीं खुले रखने होंगे, बल्कि मस्तिष्क को हर क्षण सक्रिय और संवेदनशील बनाए रखना होगा।

[अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार]


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.