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    इस्लामिक विद्वान शेख अब्दुल्ला की अगुआई में अबू धाबी पीस फोरम एक आशा की किरण

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Thu, 09 Dec 2021 10:29 AM (IST)

    Abu Dhabi Peace Forum धार्मिक कट्टरता के दौर में विश्व आज जिन चुनौतियों का सामना कर रहा है ऐसे में इस्लामिक विद्वान शेख अब्दुल्ला की अगुआई में अबू धाबी पीस फोरम एक आशा की किरण है। विश्वभर में चल रहे कई शांति प्रयासों में फोरम ने प्रमुख भूमिका निभाई है।

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    हम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक उज्‍जवल भविष्य सुनिश्चित कर पाएंगे।

    रामिश सिद्दिकी। वर्ष 1893 में अमेरिका के शिकागो शहर में आयोजित पहला विश्व धर्म संसद एक महत्वपूर्ण घटना थी, जो उस समय हुई जब पश्चिमी दुनिया में तकनीकी और औद्योगिक प्रगति हो रही थी। पश्चिम के उस समय के नेतृत्व ने यह महसूस कर लिया था कि केवल सैन्य या आर्थिक तरक्की उन्हें प्रथम स्थान नहीं दिला सकती, बल्कि एक राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ने के लिए उन्हें बहु-सांस्कृतिक और बहु-जातीय समाज के लिए भी प्रयास करना होगा।

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    आज जो सर्व धर्म और बहु-सांस्कृतिक प्रयास संयुक्त अरब अमीरात में हो रहे हैं, ये उन्हीं कोशिशों की याद दिलाते हैं जो उन्नीसवीं सदी के आखिरी दशक में शिकागो में हुई थी। लिहाजा धार्मिक कट्टरता के दौर में विद्वान शेख अब्दुल्ला की अगुआई में अबू धाबी पीस फोरम एक आशा की किरण है। दरअसल फोरम फोर पीस आज मुस्लिम जगत में सबसे प्रमुख आवाजों में से एक है, जो न केवल मुस्लिम देशों, बल्कि विश्वभर में सह-अस्तित्व की वकालत करता है।

    वर्ष 2016 में मोरक्को में आयोजित ऐतिहासिक ‘माराकेश घोषणा’ से लेकर 2018 में मुस्लिम राज्यों में धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों के गठबंधन के लिए आह्वान करने तक या फिर 2019 में धर्मो के बीच मूल्य आधारित चार्टर इस फोरम के अनेक प्रयासों में से ही हैं। फोरम फार पीस के वार्षिक सम्मेलन ने शांति-निर्माण और संघर्ष समाधान के सिद्धांतों पर चर्चा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इस फोरम की शुरुआत से ही इसके साथ जुड़ने, काम करने और सीखने के अवसर मिला। आज कई वर्षो से फोरम के साथ जुड़े होने के बाद मैं यह कह सकता हूं कि विश्वभर में चल रहे कई शांति प्रयासों में फोरम ने प्रमुख भूमिका निभाई है।

    पांच दिसंबर 2021 को दुबई में फोरम की आठवीं कान्फ्रेंस का उद्घाटन करते हुए, यूएई के सहिष्णुता और सह-अस्तित्व मंत्री शेख नाहयान बिन मुबारक अल नाहयान ने सभी देशों और लोगों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए यूएई द्वारा नेतृत्व के प्रयासों पर प्रकाश डाला। इस साल के फोरम का विषय ‘इन्क्लूसिव सिटिजेनशिप’ यानी समावेशी नागरिकता न केवल भविष्यवादी है, बल्कि कुरान और हदीस में पाए गए सिद्धांतों को भी दर्शाता है। लेकिन जब हम नागरिकता की बात करते हैं, तो कर्तव्य-आधारित नागरिकता को स्पष्ट करना महत्वपूर्ण हो जाता है।

    एक समय था जब समाज का हर सदस्य कर्तव्य के प्रति जागरूक था, लेकिन आज समाज का बड़ा हिस्सा धीरे-धीरे एक अधिकार केंद्रित समाज में बदल चुका है, जो केवल अपने अधिकारों को मांगना जानता है। इसीलिए आज जब हम समावेशी नागरिकता और राष्ट्र-राज्य की बात करते हैं, तो अपने तरीकों पर विचार करना अनिवार्य हो जाता है। प्रत्येक धर्म, व्यक्ति को एक कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति बनने की शिक्षा देता है। वह किसी को अधिकार मांगने के लिए नहीं, बल्कि समाज के प्रति अपने कर्तव्यों के निर्वहन के लिए प्रोत्साहित करता है। आज विश्व में कई प्रकार के सशक्तीकरण आंदोलन जारी हैं, लेकिन आत्म-सशक्तीकरण ही सबसे लाभदायक हो सकता है। यदि आप आत्म-सशक्तीकरण की ओर बढ़ते हैं, तो निश्चित तौर पर उससे कहीं अधिक हासिल करेंगे जो आप अपने अधिकार मांगने से नहीं कर पाएंगे।

    आज इंटरनेट मीडिया के युग में जहां एक तरफ बिना प्रमाण की बातों को जोर शोर से प्रचलित किया जा रहा है, वहां सत्य बोलने वाली आवाजें बहुत कम रह गई हैं। जिस ज्ञान को पाने के लिए पहले के विद्वान अपना पूरा जीवन लगाते थे, वह आज लुप्त होता जा रहा है। ऐसे में यह देखकर खुशी होती है कि शेख अब्दुल्ला जैसे प्रमुख इस्लामी विद्वान धार्मिक गलतफहमी से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने का बीड़ा उठाए हुए हैं और इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। मानव मामलों में धर्म कोई विलक्षण विचार नहीं है और यह अन्य विषयों से कम महत्वपूर्ण भी नहीं है। नेताओं को धर्म को उसी तरह से देखना चाहिए जैसे वे अर्थशास्त्र और राजनीति को देखते हैं। धर्म लोगों और सरकारों के व्यवहार को काफी हद तक प्रभावित करता है। राजनीतिक और आर्थिक कारकों के अलावा धर्म सामाजिक व्यवहार को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब आस्था, सामाजिक पहचान, राष्ट्रीयता सभी आपस में जुड़ी होती हैं, तो यह एक ऐसी विदेश नीति का निर्माण करती है जो कहीं अधिक प्रभावशाली बन जाती है।

    शांति समाज की अस्तित्वगत आधारशिला है। आज चाहे संयुक्त अरब अमीरात हो या भारत या फिर कोई और देश, किसी भी विविधता वाले समाज के लिए यह सुनिश्चित करना सवरेपरि है कि समाज में सभी के लिए बेहतर अवसर पनपे और विकास की क्षमता बढ़े। इसलिए ऐसे विश्वव्यापी प्रयासों की न केवल सराहना की जानी चाहिए, बल्कि ऐसी बातों को कैसे आगे बढ़ाया जा सके, इस पर भी विचार करना चाहिए। तभी हम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक उज्‍जवल भविष्य सुनिश्चित कर पाएंगे।

    [इस्लामिक मामलों के जानकार]