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आओ नया ख्वाब बुनें

स्त्री को एक घेरे में बंद देखने की परंपरागत सोच इसके लिए जिम्मेदार है या स्त्री स्वयं ही खुद को नहीं समझ पा रही। महत्वाकांक्षाओं के बहाने स्त्री जीवन के कुछ अनदेखे पहलुओं को जानने की एक कोशिश...

By Babita kashyapEdited By: Published: Sat, 12 Nov 2016 12:18 PM (IST)Updated: Sat, 12 Nov 2016 12:36 PM (IST)
आओ नया ख्वाब बुनें

लड़कियां ही बदलेंगी हालात अंकिता शौरी, अभिनेत्री मैं बचपन से चांद के प्रति आकर्षित होती थी और एस्ट्रोनॉट बनना चाहती थी। हम छोटी उम्र से ही महत्वाकांक्षी तो होने लगते हैं, पर कभी सोसाइटी का दबाव तो कभी खुद ही लक्ष्य से डगमगा जाना हमें कहीं और ले जाता है। सिर्फ अपने मन की सुनती हूं, मगर इसका यह मतलब नहीं कि दूसरों को हर्ट करूं।कई बार समान क्षमताओं के बावजूद लड़कियों को ज्यादा स्ट्रगल करना पड़ता है। इससे घबराने के बजाय अपने लक्ष्य के प्रति डटे रहना चाहिए। वैसे आज लड़कियां हर क्षेत्र में नाम कमा रही हैं। सोसाइटी के बने बनाए मापदंडों को तोड़ रही हैं, जो एक सकारात्मक बदलाव है। मुझे लगता है, महत्वाकांक्षा हर व्यक्ति में है, केवल एक प्लेटफार्म की जरूरत होती है।

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खुद पर भरोसा है जरूरी

कट्रीना कैफ, अभिनेत्री

मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि मैं महत्वाकांक्षी हूं। स्त्रियों के एंबिशंस को आज भी समाज में नकारात्मक तरीके से देखा जाता है। महत्वाकांक्षी होने का यह मतलब नहीं है कि मैं अपने काम के लिए रिश्तों को अनदेखा करती हूं। मैं ऐसा नहीं कर सकती। अपनों के सहारे ही हमें आगे बढऩे का अवसर मिलता है,

लेकिन माना यही जाता है कि अगर कोई स्त्री बड़े सपने देखती है तो वह घर-परिवार की उपेक्षा करती होगी। हम किसी की मानसिकता नहीं बदल सकते। जब तक मैं खुद अपने काम से संतुष्ट नहीं होती, तब तक बिना रुके निरंतर काम करती हूं। परिवार और समाज का दबाव महसूस करते हुए कोई भी स्त्री आगे नहीं बढ़ सकती। इसके लिए जरूरी है कि वह खुद पर भरोसा रखे। हम किसी के दबाव में आकर अपने सपनों को नहीं छोड़ सकते। मैं

मानती हूं कि स्त्री किसी भी फील्ड में हो, उसे खुद को साबित तो करना ही पड़ता है। अपने अधिकारों के लिए लडऩा पड़ता है। उसे पुरुषों के मुकाबले ज्यादा मेहनत भी करनी पड़ती है। फिल्म इंडस्ट्री के बारे में कहूं तो यकीनन यहां की स्थितियां बाकी कई जगहों से अच्छी है। स्त्रियों का संघर्ष अन्य क्षेत्रों में यहां से कहीं ज्यादा है। सच कहूं तो भारत में स्त्रियों को आगे बढऩे के लिए आज भी कई बाधाएं पार करनी पड़ती हैं, मगर अब स्थितियां बदलने लगी हैं।

महत्वाकांक्षा बुरी नहीं पर दिशा सही हो

सोनम कपूर, अभिनेत्री

मैंने 21 साल की उम्र में बॉलीवुड में अपना कॅरियर शुरू किया था। लोग कहते थे कि अभिनेता अनिल कपूर की बेटी होने के कारण मैं चांदी की चम्मच के साथ पैदा हुई हूं। मुझे हर सुख- सुविधा मिली जरूर, पर जब बात कॅरियर की होती है तो मैं किसी की राय का इंतजार नहीं करती। हमारे यहां 21वीं सदी में भी हर लड़की को अपने फैसले खुद लेने की इजाजत नहीं है, पर मैं इस मामले में अलग हूं। मैं हर चीज खुद सीखने में विश्वास करती हूं, इसलिए फैसले भी खुद लेती हूं। मैं बहुत महत्वाकांक्षी हूं और कुछ ऐसे लक्ष्य निश्चित कर रखे हैं जिन्हें पूरा करना अपनी जिम्मेदारी समझती हूं। मैं यह नहीं देखती हूं कि दूसरे क्या कर रहे हैं और क्या नहीं। मैं किसी रेस का हिस्सा नहीं हूं। बस अपने काम में सर्वश्रेष्ठ देना चाहती हूं। महत्वाकांक्षी होना बुरा नहीं है, बस दिशा

और भावना सही होनी चाहिए। ऐसा भी न हो कि अपनी महत्वाकांक्षाओं के लिए बाकी हर चीज को नारे रख दिया जाए। मेरा मानना है हर लड़की सेल्फ रेस्पेक्ट की भावना होने के साथ ही एक भरोसा भी होना चाहिए कि वह सोसाइटी में हो रही गलत चीजों के खिलाफ अपना मजबूत पक्ष रख सकती है।

सपनों पर हो खुद का अधिकार

विद्या बालन, अभिनेत्री

हम सब अलग हैं। सबकी अपनी सोच, सपने और महत्वाकांक्षाएं हैं, जो करना चाहते हैं वह कर सकें, जैसे जीना चाहते हैं वैसे जिएं, किसी दूसरे को खुश करने के लिए नहीं, बल्कि अपने लिए। स्त्री कई रिश्तों में बंधी होती है और उसकी प्राथमिकताएं बदलती भी रहती हैं, लेकिन अपने सपनों व इच्छाओं का सम्मान करें। हम जहां जिस भी स्थिति में हैं, खुद को सुनें, जानें-समझें। अपने सपनों पर अपना हक रखें। किसी से होड़ में न रहें। जितना कर रहे हैं, उससे खुश रहें। महत्वाकांक्षाओं को इतना भी हावी न होने दें कि जीवन मुश्किल हो जाए। थोड़ा सा चैन और सुकून भी जिंदगी में जरूरी है। तभी व्यक्तित्व का संतुलित विकास संभव है।

स्त्री के पास सपोर्ट सिस्टम की कमी है

एलेना कजान, अभिनेत्री

जो करना चाहती हूं, वह कर सकूं, मेरे लिए यही महत्वाकांक्षा है। पुरुष आगे बढ़ता है तो उसके पीछे एक सपोर्ट सिस्टम होता है, मगर स्त्री के साथ ऐसा नहीं होता। सबकी महत्वाकांक्षा अलग होती है। एक स्त्री के लिए कॅरियर एंबिशन है तो दूसरी के लिए घर। गांव की स्त्री के सपने घर-परिवार-बच्चे तक सीमित हैं। कई लड़कियां जानती भी नहीं कि वे चाहती क्या हैं। मैं अपने सपने पूरे करने जर्मनी से भारत आई। महज 16 की उम्र में मैं अंग्रेजी पढऩे यूएस जाना चाहती थी, पर मां को लगा कि मैं छोटी हूं। फिर उन्होंने एक साल बाद मुझे बाहर पढऩे भेजा। शुरू में वह डरती थीं, पर अब आश्वस्त हैं। मैंने पिछले छह वर्र्षों में कई बंगाली-मराठी और हिंदी फिल्मों में काम किया। मुझे मनपसंद काम करते देख मेरे पैरेंट्स खुश हैं।

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