देश के लिए गढ़े सैकड़ों मेडलिस्ट
ढेरों जूडो खिलाड़ी ट्रेंड करने वाले जीवन शर्मा-दिव्या शर्मा न केवल जूडो के नेशनल कोच दंपति हैं, बल्कि उन्होंने लंदन ओलंपिक में भाग ले रही जूडो की इकलौती भारतीय चुनौती गरिमा चौधरी को भी ट्रेंड किया है
ढेरों जूडो खिलाड़ी ट्रेंड करने वाले जीवन शर्मा-दिव्या शर्मा न केवल जूडो के नेशनल कोच दंपति हैं, बल्कि उन्होंने लंदन ओलंपिक में भाग ले रही जूडो की इकलौती भारतीय चुनौती गरिमा चौधरी को भी ट्रेंड किया है
देश में अब तक जूडो के दो सौ से ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी तैयार कर चुके जीवन शर्मा और दिव्या शर्मा की खूबी सिर्फ यही नहीं कि उनके सिखाए सौ से ज्यादा खिलाड़ी इंटरनेशनल मेडलिस्ट हैं, बल्कि ये उपलब्धि भी है कि इस स्टार जोड़ी ने चार ओलंपियन भी 'पैदा' किए हैं। लंदन ओलंपिक में जूडो की इकलौती भारतीय चुनौती गरिमा चौधरी को पिछले एक दशक से ये दंपति ही ट्रेंड कर रहा है। पटियाला के नेताजी सुभाष नेशनल इंस्टीट्यूट आफ स्पोर्ट्स में करीब 29 बरस पहले जीवन-दिव्या ने जूडो का डिप्लोमा कोर्स किया। तब दोनों अलग-अलग भार वर्ग में जूडो के नेशनल चैपिंयन हुआ करते थे। संयोग बना और परिजनों ने दोनों को एक-दूजे के लिए चुन लिया, पर सब कुछ आसान नहीं था। कैसे बढ़ी जिंदगी की गाड़ी और कैसे पाया जूडो के दोनों नेशनल कोच का मुकाम। क्या कुछ हासिल किया, ये जानने के लिए हमने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स में रहने वाली इस जूडो फैमिली से खास मुलाकात की।
कहां से हैं आप और कैसे मिले?
नेशनल जूडो कोच जीवन शर्मा बोले, मैं हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले से हूं। दिव्या बोलीं और मैं दिल्ली से। हमने एक साथ 1983-84 में डिप्लोमा किया। ये मत समझिएगा कि हमारी लव मैरिज हुई। दिव्या चुटकी लेती हैं कि फादर इन लॉ ने मुझे बहू बनाने के लिए पसंद कर लिया था, पर मम्मी का कहना था कि दामाद उसी प्रोफेशन का होना चाहिए। बंगलूरू के एनआईएस में नौकरी लग गई, पर ये होशियारपुर में ही थे। अच्छी तरह याद है कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मौत के बाद के दिनों में इन्हें एप्वाइंटमेंट लेटर मिला था, जिसके बाद बड़ी जद्दोजहद के बाद ट्रांसफर करवाया और तब हुई 10 दिसंबर 1985 को शादी। बारात हिमाचल से आई, शादी दिल्ली में हुई और आ गए बंगलूरू। अब तो 27 साल हो गए शादी के।
क्या कमियां-खूबियां हैं आपमें?
देखिए हर किसी में खासियत और कुछ कमियां होती हैं। हमने तय किया कि वक्त के साथ किस बात की सबसे ज्यादा जरूरत है। दोनों नेशनल प्लेयर रहे हैं, इसलिए जो भी नतीजे आए, वो बेहतर आए।
देश को कितने खिलाड़ी दिए?
जीवन बताते हैं कि अभी तक चार खिलाड़ी ओलंपिक के लिए तैयार कर चुके हैं, जिनमें नजीब आगा, सुनित ठाकुर, दिव्या और गरिमा चौधरी हैं, जो अबकी बार लंदन ओलंपिक में जा रही हैं। कई खिलाड़ी ऐसे रहे, जो अर्जुन एवार्डी बने। करीब दो सौ इंटरनेशनल खिलाड़ी बनाए, जिनमें से सौ ने अंतर्राष्ट्रीय मेडल जीते। कॉमनवेल्थ चैंपियन और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश के लिए मेडल जीत लाए।
क्या कभी सम्मान मिला?
सम्मान के लिए ही काम करने की बात ठीक नहीं। ऐसा हो तो अच्छी बात नहीं। जीवन बोले, दिव्या के लिए कर्नाटक सरकार की ओर से डीजी ने एक बार एवार्ड के लिए नाम भेजा था, पर नहीं मिला। इंटरनेशनल बॉक्सर विजेंद्र सिंह ने नाम रिकमेंड किया, लेकिन सही मायनों में नॉमिनेट होकर एवार्ड मिले तो ठीक नहीं। इससे बड़ा एवार्ड और क्या होगा कि हमारे सिखाए इतने खिलाड़ी आज नाम रोशन कर रहे हैं। इससे बड़ा एवार्ड क्या होगा कि चैंपियन पहचाने और कहे कि ये हमारे कोच हैं।
किस बात पर गुस्सा आता है?
जवाब जीवन देते हैं, कि मैडम के बोलने पर गुस्सा आता है। बहुत बोलती हैं तो गुस्सा आना स्वाभाविक है। ऐसे में मुझे चुप हो जाना पड़ता है आपस में कोई एक-दूसरे को समझाता नहीं है। दिव्या कहती हैं कि इनमें कमियां तो ढूंढ़ने से भी नहीं मिलेंगी। शिकायत बस इतनी है कि वैसे तो बोलते नहीं, लेकिन गलतियों पर जरूर टोकते हैं। साथ ही कभी तारीफ नहीं करते।
किन देशों में गए आज तक?
दिव्या बताती हैं कि जूडो खेलने और अपने खिलाड़ियों के कोच के तौर पर दुनिया के करीब 42 देशों की यात्राएं कर चुके हैं हम दोनों।
कौन-कौन से एवार्ड जीते?
जीवन बताते हैं कि दिव्या नेशनल रिकार्ड होल्डर रही हैं। कम से कम भार वर्ग के लिहाज से 44 किलोग्राम में भी और 84 किलोग्राम भार वर्ग में भी। ओपन कैटेगरी में। फर्स्ट वुमेन कोच भी रहीं। फेडरेशन की ओर से ब्लैक बेल्ट आफर की गई उन्हें। सर्टिफिकेट इतने हैं कि कोई गिनती नहीं।
कैसे करते-कराते हैं प्रैक्टिस?
फैमिली और बच्चों की वजह से हममें से एक को घर में रुकना पड़ता है। अपने बच्चों पर कम और क्लास पर ज्यादा ध्यान रहता है। काफी लोगों को बहुत दिन तक पता नहीं चलता कि हम पति-पत्नी हैं। ग्राउंड में भी हम कोच की तरह ही मिलते हैं।
खिलाड़ी फैमिली है जीवन की
जीवन बताते हैं कि उनके पिता वेद प्रकाश शर्मा आर्मी में थे और सेना की ओर से बॉक्सिंग के खिलाड़ी थे। वे अपने जमाने के इंटरनेशनल बॉक्सर भी रहे हैं। दोनों छोटे भाई नेशनल प्लेयर रहे हैं, जिनमें कुलदीप शर्मा हिमाचल के ऊना में कोच हैं। बेटी ईशा शर्मा भी नेशनल प्लेयर रही है और फिलहाल चितकारा यूनिवर्सिटी में आर्किटेक्चर में पंजाब की सेकेंड रैंक होल्डर है। बेटा सिद्धांत दिल्ली यूनिवर्सिटी से लॉ की पढ़ाई कर रहा है।
निश्छल भटनागर
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