आर्थिक तंगी और दिव्यांगता को पीछे छोड़ शैलेश ने रचा इतिहास
बिहार के जमुई जिले के पैरा एथलीट शैलेश कुमार ने विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। पोलियो से प्रभावित शैलेश ने पुरुषों की ऊंची कूद टी63 स्पर्धा में 1.91 मीटर की छलांग लगाकर चैंपियनशिप रिकार्ड बनाया। किसान परिवार में जन्मे शैलेश ने गरीबी और शारीरिक मुश्किलों को पार करते हुए यह मुकाम हासिल किया। 2017 में नंगे पांव दौड़कर पहला पदक जीता था।

लोकेश शर्मा, जागरण नई दिल्ली। कहते हैं सपनों की उड़ान को पंख परिस्थितियां नहीं, बल्कि हौसला देता है। इस बात को सच कर दिखाया है, बिहार के जमुई जिले के छोटे से गांव इस्लामनगर के पैरा एथलीट शैलेश कुमार ने। बचपन से ही दाहिने पैर से पोलियो प्रभावित शैलेश ने तमाम मुश्किलों को पार करते हुए विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में देश के लिए पहला स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया।
जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में पुरुषों की ऊंची कूद टी63 स्पर्धा में उन्होंने 1.91 मीटर की छलांग लगाकर न सिर्फ स्वर्ण पदक अपने नाम किया, बल्कि नया चैंपियनशिप रिकार्ड भी बनाया।
बचपन की कठिनाइयां और संघर्ष
शैलेश का जन्म किसान परिवार में हुआ। पिता शिवनंदन यादव किसान और मां प्रतिमा देवी गृहिणी हैं। आर्थिक स्थिति ऐसी थी कि पढ़ाई और खेल का खर्च उठाना बड़ा बोझ था। बचपन में शैलेश को इलाज के लिए पटना और नवादा ले जाया गया, तब डॉक्टरों ने ऑपरेशन की सलाह दी, लेकिन आर्थिक तंगी की वजह से पिता ने मना कर दिया था। इसके बाद कई महीनों तक एक्सरसाइज और इलाज चला, पर पैर पहले जैसा नहीं हो सका। स्वजन को चिंता थी कि यह बच्चा आगे चलकर खुद को कैसे संभालेगा।
लेकिन शैलेश ने अपनी इस शारीरिक कमी को कभी कमजोरी नहीं बनने दिया। उनके पास स्पोर्ट्स शू तक नहीं थे। शुरुआती दिनों में खेतों में नंगे पांव दौड़ना ही उनकी ट्रे¨नग का हिस्सा था।
पहला मेडल और प्रेरणा
2017 में जयपुर में आयोजित नेशनल पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में शैलेश ने नंगे पांव दौड़कर कांस्य पदक जीता था। यह उपलब्धि उनके संघर्ष का पहला बड़ा सबूत बनी। इसके बाद पिता ने पढ़ाई और खेल के खर्च के लिए दो बीघा जमीन गिरवी रख दी और कर्ज लिया। नाना-नानी ने भी हर कदम पर मदद की। बिहार पुलिस में कार्यरत बड़े भाई कौशल कुमार ने लगातार हौसला बढ़ाते रहे। करियर तब निखरा जब उनका चयन 2019 में गांधीनगर स्थित स्पोर्ट्स अथारिटी आफ इंडिया (साई) में हुआ। वहां उन्हें रहने-खाने की सुविधा और दस हजार मासिक मदद मिलने लगी।
यहीं से उन्होंने पेशेवर ट्रेनिंग पाई और जूनियर विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई। हालांकि 2024 पेरिस पैरालंपिक में वे चौथे स्थान पर रहे और पदक से चूक गए। इसके बाद कोच रौनक मलिक और परिवार के सहयोग से उन्होंने खुद को संभाला और अगली चुनौती के लिए तैयार किया। विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में जब शैलेश मैदान में उतरे, तो घरेलू दर्शकों का जोश और ऊर्जा उनके साथ थी।
उन्होंने कहा हम 10 दिन पहले यहां आए थे और माहौल के अनुकूल ढलने का समय मिला। दिल्ली की गर्मी ने मुश्किलें बढ़ाईं, लेकिन स्वर्ण जीतना बेहद खास अहसास है। कभी सोचा नहीं था कि दिव्यांग होकर भी इतना आगे बढ़ूंगा। अगर परिवार का सहारा और खुद पर विश्वास न होता, तो शायद यह सफर यहीं खत्म हो जाता। इस स्पर्धा में अमेरिका के मौजूदा पैरालंपिक चैंपियन एज्रा फ्रेच रजत पदक से संतोष करना पड़ा, जबकि भारत के ही वरुण सिंह भाटी ने कांस्य पदक जीतकर देश को डबल खुशी दी।
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