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सियोल एशियन गेम्स मेरे जीवन के सुनहरे पल : पीटी ऊषा

पीटी ऊषा ने 1986 सियोल एशियन गेम्स में चार स्वर्ण और एक रजत पदक जीतकर सनसनी फैला दी थी।

By Sanjay SavernEdited By: Published: Sat, 11 Aug 2018 07:05 PM (IST)Updated: Sun, 12 Aug 2018 10:35 AM (IST)
सियोल एशियन गेम्स मेरे जीवन के सुनहरे पल : पीटी ऊषा
सियोल एशियन गेम्स मेरे जीवन के सुनहरे पल : पीटी ऊषा

 सुनहरी यादें :

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भारत की उड़न परी के नाम से मशहूर पीटी ऊषा ने 1986 सियोल एशियन गेम्स में चार स्वर्ण और एक रजत पदक जीतकर सनसनी फैला दी थी। वह एक ही एशियन गेम्स में खेलते हुए इतने पदक जीतने वाली पहली भारतीय एथलीट बनीं थीं। उन्होंने इन गेम्स में 200 मीटर, 400 मीटर, 400 मीटर बाधा दौड़ और 4 गुणा 400 मीटर रिले में स्वर्ण जीते जबकि 100 मीटर में रजत पदक जीता था। पीटी ऊषा से उनके एशियन गेम्स की यादों को लेकर योगेश शर्मा ने खास बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश :

-क्या आपको उम्मीद थी कि एक ही एशियन गेम्स में पांच पदक जीत पाओगी?

-मैं अपने करियर में 1982 से लेकर 1994 तक सभी एशियन गेम्स में दौड़ी लेकिन 1986 मेरे लिए खास था। जब मैं सियोल एशियन गेम्स में खेलने जा रही थी तो मुझे उम्मीद थी कि मैं स्वर्ण पदक जीत जाऊंगी लेकिन मन में एक डर था। यह डर तो हर खिलाड़ी के अंदर होता है लेकिन मुझे खुद पर भरोसा था कि मैं हर स्पर्धा में पदक जीत सकती हूं। मैंने इसके लिए कड़ी मेहनत की थी और मुझे इसमें सफलता मिली। मैं चार स्पर्धाओं में स्वर्ण जीत गई लेकिन 100 मीटर की दौड़ में मैं पीछे रह गई। यह सच है कि 100 मीटर की रेस में फिलिपींस की लीडिया मुझसे अच्छा दौड़ी थी और रेस जीतने में सफल हो गई।

- आपके पदक ने ही भारत को शीर्ष-पांच में पहुंचाया?

-जब तक मैंने पदक नहीं जीते थे तो भारत शायद 14वें स्थान पर चल रहा था लेकिन जैसे ही मेरे चार स्पर्धाओं में स्वर्ण पदक आए तो भारत पांचवें स्थान पर आया और इन गेम्स में वह पांचवें स्थान पर रहा था। उस दौरान भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने खेल मंत्री से पूछा था कि भारतीय एथलीटों को अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में ज्यादा से ज्यादा खेलने क्यों नहीं भेजा जाता, जब एक ही एथलीट इतने पदक जीत रहा है। 1982 में मैंने अपने पहले एशियन गेम्स में दो रजत जीते थे और इसके बाद मुझे मलेरिया हो गया था। लेकिन मैंने अपने प्रदर्शन पर काम किया और इसका नतीजा 1986 में स्वर्ण के साथ मिला था।

- हिमा दास को लेकर आपका क्या कहना है और उससे क्या उम्मीदें है?

- हिमा का फिनलैंड में स्वर्ण पदक जीतना शानदार पल था। अगर हिमा का पूरा ध्यान रखा जाए तो वह 2020 और 2024 ओलंपिक में भारत की पदक की उम्मीद बन जाएंगी। मैं हिमा के लिए बस यहीं कहूंगी कि चाहे कुछ भी हो जाए आप अपनी कड़ी मेहनत को जारी रखो क्योंकि यहीं आपको आगे ले जाने में मदद करेगा। मैं भविष्य के लिए उन्हें शुभकामनाएं देती हूं।

-टिंटू लुका आपकी शिष्य है और कितने एथलीटों को आप प्रशिक्षण दे रही है ?

-हां, लुका मेरी ही शिष्य है और वह शानदार एथलीट हैं। उसने भी एशियन गेम्स में स्वर्ण और रजत पदक जीता हुआ है। मैं अभी 120 एथलीटों को प्रशिक्षण दे रही हूं और सभी अपने लक्ष्य को पाने के लिए कड़ी मेहनत कर रह हैं। हमारे देश में भी अच्छे एथलीट है लेकिन बस उन्हें सही दिशा दिखाने और सही प्रशिक्षण देने की जरूरत है।


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