सौरभ चौधरी को समझ नहीं आती थी अंग्रेज कोच की भाषा, फिर ऐसा जीता गोल्ड मेडल
भारतीय निशानेबाज़ सौरभ चौधरी ने एशियन गेम्स 2018 में गोल्ड मेडल जीत लिया। ये भारत के लिए तीसरा गोल्ड मेडल रहा। ...और पढ़ें

मेरठ, जेएनएन। हुनर किसी भाषा का मोहताज नहीं होता। ये भारतीय निशानेबाज़ सौरभ चौधरी ने एशियन गेम्स 2018 में गोल्ड मेडल जीतकर दिखा दिया है। मेरठ के 16 साल के सौरभ चौधरी को अंग्रेज कोच की भाषा समझ में नहीं आती थी। किंतु उसे अर्जुन की तरह पता था कि मछली की आंख कहा है। कोच के भावों को समझते हुए सौरभ ने नई दिल्ली की कर्णी सिंह शूटिंग रेंज में निशानेबाजी को धार दी। खेल पंडितों की मानें तो ऐसी एकाग्रता का शूटर देशभर में नहीं है। गोल्ड जीतने के बाद सौरभ के गांव में जश्न का माहौल है। माता पिता ने अन्य परिजनों के साथ मिठाई बांटकर जश्न मनाया।
मेरठ के कलीना गांव का सौरभ चौधरी ने दोस्तों के बीच रहते हुए शूटिंग का हुनर विकसित किया। कोच की नजर पड़ी तो उसे बिनौली शूटिंग रेंज पर बुलाया। अप्रैल 2015 से उसने शूटिंग शुरू की। किसान परिवार एयर पिस्टल जैसे महंगे खेल का खर्च नहीं उठा पा रहा था, किंतु सौरभ की लगन को देखकर उन्होंने पांच माह बाद पिस्टल खरीद दी। इधर, पढ़ाई में भले ही दिल नहीं लगा, किंतु पदक के लिए दिल लगाने में कोई चूक नहीं की।
गांव वाले बताते हैं कि सौरभ पूरी तरह निशानेबाजी को समर्पित है। गांव के स्कूल से हाईस्कूल में पढ़ाई कर रहा है। सुबह पांच बजे रेंज पर पहुंचकर प्रैक्टिस में जुट जाता था। सौरभ के भाई नितिन बताते हैं कि उसने जबरदस्त एकाग्रता से 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा में अचूक खेल दिखाते हुए जापान एवं जर्मनी में भी पदक जीता। इसके बाद डा. कर्णी सिंह शूटिंग रेंज में लगे इंडिया कैंप में सौरभ ने और कड़ी मेहनत की। कोच विदेशी मिले तो सौरभ अंग्रेजी नहीं समझ पाता था, किंतु उसे पता था कि लक्ष्य कैसे भेदना है। कोच के भावों को समझने के साथ ही दूसरे कोच जसपाल ने भी उसकी मदद की।
सौरभ के पिता जगमोहन बताते हैं कि सौरभ सिर्फ 16 साल का है, किंतु उसकी एकाग्रता किसी भी उम्र के खिलाड़ी को मात दे देगी। शूटिंग में एकाग्रता ही सबसे बड़ी पूंजी है। मेरठ के शूटिंग कोच वेदपाल बताते हैं कि सौरभ बेहद सरल और गंभीर है। यह भविष्य में ओलंपिक मेडल भी जीतेगा। सौरभ के गोल्ड जीतने के बाद कलीना गांव में जश्न का माहौल है। माता-पिता व अन्य परिजनों ने मिटाई बांटकर खुशियां मनाईं। सौरभ के बाबा का कहना है कि पोते ने गोल्ड जीतकर गांव के साथ ही देश का नाम रोशन किया है।

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