Pankaj Advani Interview: मीडिया कवरेज के आधार पर नहीं मिलने चाहिए खेल अवार्ड
Pankaj Advani Interview देश को लगभगल दो दर्जन बार विश्व चैंपियन बनाने वाले बिलियर्ड्स-स्नूकर खिलाड़ी पंकज आडवाणी ने दैनिक जागरण को दिए इंटरव्यू में कहा है कि मीडिया के आधार पर राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों का वितरण नहीं होना चाहिए।
नई दिल्ली, जागरण इंटरव्यू। देश के शीर्ष क्यू खिलाड़ी पंकज आडवाणी सोमवार को 11वीं बार चैंपियन बने। एशियन गेम्स में दो बार के स्वर्ण पदक विजेता और 23 बार के विश्व चैंपियन बिलियर्ड्स-स्नूकर खिलाड़ी पंकज को लगता है कि मीडिया कवरेज के आधार पर खेल अवार्ड नहीं मिलने चाहिए। इस बार केंद्र सरकार ने 12 खिलाड़ियों को खेल रत्न ओर 35 को अर्जुन अवार्ड दिए। अर्जुन अवार्डी, पद्मश्री और पद्मभूषण पंकज आडवाणी से अभिषेक त्रिपाठी ने विशेष बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश-
-एक ऐसे खेल में इतनी उपलब्धि हासिल करना जिसे देश में लोग ज्यादा नहीं देखते हैं, क्या इस बात को लेकर दुख होता है?
- हर देश में अलग-अलग खेल प्रसिद्ध होते हैं, जैसे यूरोप में फुटबाल, भारत में क्रिकेट और आस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड में रग्बी। जब मैंने 10 साल की उम्र में खेलना शुरू किया था तो मैंने नहीं सोचा था कि मैं जो खेल चुन रहा हूं उसे लोग ज्यादा नहीं देखेंगे। मैं इस खेल को खेलता हूं क्योंकि इसमें मेरा कौशल है। मैं अन्य खेल भी खेलता हूं जैसे बैडमिंटन, क्रिकेट या टेबल टेनिस लेकिन इसमें मेरा एक अलग कौशल था जिसके कारण मैंने इसे चुना। हां, मैं सोचता रहता हूं कि इस खेल को टीवी पर ज्यादा दिखाया जाए जिससे युवा इसे देखें और जुड़े लेकिन यह महासंघ का काम है खिलाड़ी का नहीं।
-भारत में या तो क्रिकेट चलता है या फिर कामनवेल्थ गेम्स, एशियन गेम्स और ओलिंपिक के समय ओलिंपिक खेलों को तवज्जो दी जाती है। क्या किया जाना चाहिए?
-बहुत लंबी प्रक्रिया है क्योंकि इसमें केंद्र सरकार, राज्य सरकार और महासंघ को जुड़ना पड़ता है। सबको साथ में काम करना चाहिए। इसके लिए अकादमी खुलनी चाहिए और अगर टीवी पर टूर्नामेंट दिखाए जाएं तो बड़ी बात होगी। एक पेशेवर लीग की जरूरत होगी। नियमित रूप से टूर्नामेंट होने भी जरूरी हैं क्योंकि खेल के प्रति लोगों की जागरूकता बढ़ी है। इंटरनेट की वजह से लोग इसमें रुचि ले रहे हैं।
-माल और क्लब में भी पूल टेबल होती है। जहां युवा क्यू गेम्स खेलते हैं, लेकिन इसके बावजूद खिलाड़ियों के प्रति झुकाव क्यों नहीं?
- हां, देश में पेशेवर भले ही ज्यादा नहीं हों लेकिन लोग स्नूकर खेलते हैं। लोगों को दिलचस्पी तो है। हर स्कूल में क्यू गेम्स की दो टेबल लगाई जानी चाहिएं।
-इंटरनेट मीडिया के आने से इस तरह के खेलों और खिलाड़ियों को फायदा मिला है। आप भी अपनी बात कह सकते हैं, लोगों से जुड़ सकते हैं?
- हां, इससे काफी फायदा मिला है। मैं मेड इन इंडिया पर विश्वास करता हूं। कू एप के माध्यम से मैं ज्यादा से ज्यादा इन खेलों का प्रचार प्रसार करता हूं। काफी लोग मुझसे सवाल-जवाब करते हैं।
-आपने अपना 23वां विश्व खिताब अपनी मां को समर्पित किया है। मां के साथ आपकी कैसी बांडिंग रही है और क्या कारण रहा कि यह उपलब्धि आपने उन्हें समर्पित की?
- बहुत सारे कारण हैं। जब मैं छह साल का था तो मेरे पिताजी गुजर गए थे। हम लोग कुवैत में थे तो भारत शिफ्ट करना मुश्किल था। मेरी मां ने सब अकेले किया और हम लोगों को मानसिक रूप से मजबूत बनाया। उन्होंने बताया कि कभी हार नहीं माननी। पिछली सदी के आखिरी दशक के मध्य में मैंने इस खेल को खेलना शुरू किया। तब स्नूकर के बारे में ज्यादा कोई जानता भी नहीं था। उस समय मां से जो मुझे प्रेरणा मिली वो काफी मायने रखती है। हालांकि, खेल के साथ ही उन्होंने पढ़ाई पर भी ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा। मैंने इस कारण से अपनी उपलब्धि उन्हें समर्पित की।
-नीरज चोपड़ा के एक स्वर्ण पदक ने भारत की भाला फेंक खेल के प्रति सोच बदल दी। आप 23 बार के विश्व चैंपियन हैं। क्या ओलिंपिक में पदक जीतना ही महत्वपूर्ण है?
-ओलिंपिक महत्वपूर्ण है ही। यह चार साल में एक बार आता है लेकिन एशियाई गेम्स भी हैं। मुझे इसकी महत्ता का पता है। 2006 और 2010 में मैंने स्वर्ण पदक जीता है। बहुत अच्छा लगता है जब राष्ट्रीय ध्वज ऊपर जाता है और राष्ट्रगान बजता है। चार साल में एक बार जब ओलिंपिक आता है तब मीडिया कवर करती है और तीन साल तक सब चुप हो जाते हैं। हर खेल को दिखाना चाहिए। हर खेल की उपलब्धि को अलग तरीके से देखा जाता है। अगर आप ओलिंपिक खेलों में नहीं हैं तो आपको सरकार से कम समर्थन मिलता है। इसमें बदलाव की जरूरत है। अगर हमें खेल में आगे बढ़ना है तो सिर्फ ओलिंपिक खेलों को ही तवज्जो नहीं देनी है। सभी खेलों को समर्थन देना होगा।
- हम जब भी आपको देखते हैं तो लगता है आप सौम्य हैं। क्या आप वाकई में ऐसे हैं?
-मेरे जीवन में खेल का अहम योगदान है। इसने मुझे बहुत कुछ सिखाया है। आप लोगों के साथ कैसे बात करते हैं और प्रशंसकों के साथ कैसे जुड़ते हैं, यह काफी जरूरी है। इस खेल में आपको अपनी आक्रामकता खेल में दिखानी होती है लेकिन टेबल के बाहर मैं सौम्य ही रहना पसंद करता हूं। सभी को एक दिन रिटायर होना है जिससे नया चैंपियन आए। क्रिकेट में महेंद्र सिंह धौनी ने सबकुछ हासिल करने के बाद आराम से संन्यास लिया। जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है।
- आपको धौनी के तरीके का नेतृत्व पसंद हैं?
- हां, मैं उनकी सराहना करता हूं। क्रिकेट एकदम अलग हैं जिसमें हाइप ज्यादा है। उन्होंने जो हासिल किया है इसके बावजूद वह कितने सामान्य और शांत रहे हैं। वो शानदार है।
- आपने कहा कि लोग सोचते हैं इस खेल में मानसिक मेहनत है लेकिन शारीरिक रूप से भी मेहनत करनी होती है?
- स्टिक उठाने के लिए आपको स्थिर हाथ की जरूरत होती है। अगर आप लक्ष्य बना रहे हैं तो आपका हाथ हिलना भी नहीं चाहिए। थोड़ा सा हाथ हिलने से मुश्किल हो सकती है। आपको टेबल पर झुकना भी पड़ता है, आपका फिट रहना जरूरी है, इसमें लचीला होना भी जरूरी है। इसके लिए व्यायाम की जरूरत होती है।
-आपके पास 23 बड़े खिताब हैं, लेकिन आपको लगता है कि इसके अलावा कुछ होता तो और भी अच्छा होता?
- लोग कहते हैं यह अमीर लोगों का खेल है और कैसा खेल है जिसमें भाग दौड़ नहीं है। मैं चाहता हूं कि लोग इसे स्वीकार करें। जैसे निशानेबाजी या तीरंदाजी है जो एक तरह का माइंड गेम है। हर खेल में आपको फिट रहना पड़ता है। हमारे खेल में भी कई बार छह घंटे का फाइनल होता है। अगर आप फिट नहीं रहेंगे तो विश्व चैंपियनशिप में कैसे प्रदर्शन करेंगे। टीवी पर आने से इस खेल को लोग पहचानेंगे लेकिन लोगों को इसे खेल के रूप में स्वीकार करना होगा।
-इस साल इतने सारे राष्ट्रीय खेल पुरस्कार बांटे गए। क्या आप इससे सहमत हैं?
-सरकार को अवार्ड देने के समय काफी कुछ देखना होता है लेकिन आप इस आधार जा रहे हो कि इसे मीडिया कवरेज मिल रहा है तो मैं इससे सहमत नहीं हूं। 12 खिलाड़ियों को खेल रत्न मिला जो बड़ी संख्या है। मैं हालांकि, इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं बोलना चाहता। शायद नियम में कुछ बदलाव हो। सरकार इस बारे में ज्यादा जानती है।