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यूं ही कोई मैरीकॉम नहीं बन जाता, जानिए क्यों दुनिया में सबसे अलग है ये बॉक्सर?

2000 में डिंको सिंह ने उन्हें मुक्केबाज बनने के लिए प्रेरित किया लेकिन घर वाले मुक्केबाजी के खिलाफ थे। उनकी कड़ी मेहनत और लगन ने सबको झुकने के लिए मजबूर कर दिया।

By Pradeep SehgalEdited By: Published: Sun, 25 Nov 2018 12:07 PM (IST)Updated: Mon, 26 Nov 2018 10:47 AM (IST)
यूं ही कोई मैरीकॉम नहीं बन जाता, जानिए क्यों दुनिया में सबसे अलग है ये बॉक्सर?
यूं ही कोई मैरीकॉम नहीं बन जाता, जानिए क्यों दुनिया में सबसे अलग है ये बॉक्सर?

नई दिल्ली, अभिषेक त्रिपाठी। इस साल अप्रैल में जब मैरीकॉम कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक जीतकर लौटी थीं तो उनके बच्चे उनके ऊपर टूट पड़े थे क्योंकि वह महीनों से उनसे दूर थीं। मैरी गोल्ड कोस्ट से बच्चों के लिए खूब सारी खाने-पीने की चीजें लेकर आईं थी जिससे वे मान जाएं। मैरी ने कहा था कि अब तो दो बच्चे कुछ बड़े हो गए हैं लेकिन तीसरा अभी छोटा है। वे मेरा साथ देते हैं लेकिन पहले बहुत दिक्कत होती थी। जब उनसे दैनिक जागरण ने पूछा था कि आप संन्यास कब लेंगी तो उन्होंने कहा था कि ये संन्यास क्या होता है? सात महीने बाद उन्होंने विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर बता दिया कि इस 35 वर्षीय युवा मां में अभी बहुत जान बाकी है और इसका नजारा 2020 में जापान में होने वाले ओलंपिक पदक में दिखाई दे सकता है।

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आसान नहीं था मैरीकॉम का सफर

एक मार्च 1983 को उत्तर पूर्वी राज्य मणिपुर के चुराचांदपुर जिले के काडथेइ गांव के बेहद गरीब परिवार में जन्मीं मैरी बॉक्सिंग रिंग में ही नहीं बल्कि उसके बाहर भी निडरता की असली परिचायक हैं। मैंगते चंग्नेइजैंग जैसी एक आम लड़की जब संघर्ष की भट्ठी में तपती है तब मैरीकॉम बनती है। एक किसान की बेटी के लिए बॉक्सिंग रिंग में अपना करियर बनाना आसान काम नहीं था। 2000 में डिंको सिंह ने उन्हें मुक्केबाज बनने के लिए प्रेरित किया लेकिन घर वाले मुक्केबाजी के खिलाफ थे। उनकी कड़ी मेहनत और लगन ने सबको झुकने के लिए मजबूर कर दिया। गांव में बना अभ्यास करने की जगह थी और ना ही सुविधाएं मौजूद थीं। मुक्केबाजों को जो डाइट चाहिए होती है वह भी उन्हें मुश्किल से ही मिल पाती थी लेकिन उन्होंने सब बाधाओं को पार किया।

मां बनने के बाद भी कम नहीं हुआ बॉक्सिंग से प्यार

सुपर मॉम के नाम से पहचान बनाने वाली 35 वर्षीय मैरी ने 2005 में ओनलर कॉम से शादी की। 2007 में जुड़वा बच्चों को जन्म देने के बावजूद उनका इस खेल के प्रति प्रेम कम नहीं हुआ। मां बनने के बाद उन्होंने विश्व खिताब हासिल किया और 2008 में उन्हें मैग्नीफिशेंट मैरीकॉम की उपाधि से नवाजा गया।

अभ्यास और मुकाबलों के लिए विदेश जाने के कारण वह ज्यादा समय अपने बच्चों को नहीं दे पाती हैं लेकिन जब भी वह पदक जीतकर लाती हैं तो बच्चे उसे लपक लेते हैं। उनकी फिटनेस देखकर कोई नहीं कह सकता कि वह तीन बच्चों की मां हैं। विरोधी पर मैरीकॉम पंच की बरसात करती हैं और बहुत ही तेजी से खुद को उनके प्रहारों से बचाती भी हैं। 

इस मुक्केबाज़ से अपनी तुलना करती हैं मैरी

छह बार की विश्व चैंपियन, लंदन ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता, कॉमनवेल्थ गेम्स और एशियन गेम्स की स्वर्ण पदक विजेता मैरी का मंत्र है कि अगर मैं फिट रहूंगी तो स्वर्ण पदक मेरे कब्जे में रहेगा। जब उन्हें राज्य सभा के लिए मनोनीत किया गया तो वह उनके लिए भी चौंकाने वाली ही खबर थी। जहां एक ओर सचिन तेंदुलकर से लेकर रेखा जैसी हस्तियों पर राज्यसभा में अनुपस्थित रहने पर सवाल उठते हैं तो वहीं मैरी भारत में रहने पर सुबह सात बजे इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में अभ्यास करती हैं और घर आकर कपड़े बदलकर संसद सत्र में शामिल होने के लिए निकल पड़ती हैं। वह नहीं चाहती कि उनकी अनुपस्थिति पर सवाल उठें। मैरी अपनी तुलना फिलीपींस के प्रोफेशनल मुक्केबाज मैनी पैक्युआओ से करती हैं जो वहां के सीनेट मेंबर भी हैं। मैरी का मानना है कि उनका दायरा मैनी से भी बड़ा है क्योंकि वह एक मां भी हैं।

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