आजादी के 70 वर्षः भारतीय खेल जगत में 10 सबसे बड़े व खास पल
खेल जगत के वो दस यादगार पल जिन्हें भारत कभी नहीं भुला पाएगा।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। भारत की आजादी को 70 साल हो चुके हैं और इन सालों में देश ने हर क्षेत्र में नए मुकाम हासिल किए। खेल जगत में भी भारत पीछे नहीं रहा। कभी तमाम खेलों के खिलाड़ियों ने सफलताओं से दिल जीते तो कभी देश ने बड़े खेल आयोजनों की मेजबानी कर अपना दम दिखाया। आपके सामने रखते हैं आजाद भारत के 10 ऐसे बड़े व खास पल जो दुनिया कभी नहीं भूल पाएगी।
- 1983, 2007 और 2011 विश्व कप
भारत में क्रिकेट एक धर्म की तरह है, यहां लोगों की नसों में क्रिकेट दौड़ता है। इसीलिए जाहिर है कि इस सूची में सबसे पहले इसी खेल की सफलताओं का जिक्र होगा। क्रिकेट उस देश की देन थी, जिसने भारत पर 200 से भी ज्यादा सालों तक जबरन कब्जा किया हुआ था। देश ने आजादी के बाद धीरे-धीरे अपने कदम आगे बढ़ाए और 1983 में वो मौका आया जब भारतीय क्रिकेट में सब कुछ बदल गया। कपिल देव की कप्तानी में उसी इंग्लैंड के प्रतिष्ठित लॉर्ड्स मैदान पर भारत ने दिग्गज वेस्टइंडीज को फाइनल में हराकर पहली बार विश्व कप का खिताब जीता। उसके बाद लंबा इंतजार चला। फिर 2007 में जब क्रिकेट का सबसे छोटा प्रारूप सामने आया तो यहां भी भारत ने इस फॉर्मेट के पहले विश्व कप को दक्षिण अफ्रीका में जीतकर खेल में नई जान फूंक दी। भारत ने वो सफलता महेंद्र सिंह धौनी की कप्तानी में हासिल की, लेकिन धौनी इतने से संतुष्ट नहीं हुए और 2011 में उनकी कप्तानी में 28 साल के लंबे इंतजार के बाद भारत ने फिर से वनडे विश्व कप पर कब्जा जमाया।
- 1948, 52, 56, 64, 75 और 80 में हॉकी की महान सफलताएं
भारत ने अपने राष्ट्रीय खेल हॉकी में एक ऐसा सुनहरा दौर देखा था, जिसकी शायद आज कल्पना भी नहीं कर सकते। आजादी से पहले तक हम इस खेल में तीन बार ओलंपिक चैंपियन बन चुके थे, लेकिन आजादी के बाद और भी बहुत कुछ होना बाकी था। भारतीय टीम ने 1948 से 1956 के बीच लगातार तीन ओलंपिक गोल्ड मेडल जीते, इसके बाद 1964 के टोक्यो ओलंपिक में भी हम चैंपियन बने, जबकि 1980 के मॉस्को ओलंपिक में भी भारत ओलंपिक चैंपियन बनने में सफल रहा। यही नहीं, इस बीच भारत ने पहली बार 1975 में हॉकी विश्व कप भी अपने नाम किया।
- पहला बड़ा खेल आयोजन
आजाद होने के चार साल बाद भारत ने अपनी जमीन पर अपने खेल इतिहास के एक सबसे बड़े पल को जिया था। ये मौका था 1951 के एशियन गेम्स का, जिसकी मेजबानी भारत को मिली थी। नई दिल्ली में 4 मार्च से 11 मार्च 1951 में आयोजित इन खेलों के आयोजन को भारतीय इतिहास में एक बड़े अवसर के रूप में देखा गया। भारत ने पहली बार इस तरह के खेल आयोजन की मेजबानी की थी। उस एशियन गेम्स में 11 एशियाई देशों के 491 एथलीटों ने हिस्सा लिया था। कुल 51 पदक जीतकर भारत अंक तालिका में दूसरे स्थान पर रहा था, जबकि 60 पदक जीतकर जापान शीर्ष पर रहा था।
- 'फ्लाइंग सिख' ने रचा इतिहास
फ्लाइंग सिख के नाम से मशहूर पूर्व भारतीय एथलीट मिल्खा सिंह ने अपने स्वर्णिम करियर में कई सफलताएं हासिल कीं, लेकिन उनकी एक सफलता सबसे यादगार साबित हुई। मिल्खा सिंह ने 1958 के कॉमनवेल्थ गेम्स (कार्डिफ) की 440 गज दौड़ में स्वर्ण पदक जीतकर दुनिया को हैरान कर दिया था। ये पहला मौका था जब किसी भारतीय खिलाड़ी ने इतने बड़े अंतरराष्ट्रीय खेल मंच पर ऐसी सफलता हासिल की थी। साल 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स में कृष्णा पूनिया द्वारा डिस्कस थ्रो में गोल्ड मेडल जीतने से पहले तक एकमात्र मिल्खा सिंह थे, जिन्होंने एथलेटिक्स में भारत के लिए कॉमनवेल्थ गेम्स जैसे मंच पर स्वर्ण पदक हासिल किया था। वैसे, मिल्खा एशियन गेम्स में भी चार बार स्वर्ण पदक जीत चुके हैं।
- शतरंज में भारत हुआ आनंदित
शतरंज के भारतीय स्टार विश्वनाथन आनंद 1988 में ही ग्रैंडमास्टर बन चुके थे, लेकिन सालों तक उन्होंने एक बड़ी सफलता का इंतजार किया। साल 2000 में वो पल आ ही गया जब दुनिया ने भारत और इस खिलाड़ी को सलाम किया। आनंद ने उस साल पहली बार विश्व चैंपियन बनने का गौरव हासिल किया। टूर्नामेंट का फाइनल मैच तेहरान में खेला गया था और उन्होंने उस मैच में रूसी खिलाड़ी एलेक्सी शिरोव को मात देकर विश्व चैंपियनशिप का खिताब हासिल किया था। इसके बाद आनंद कभी थमे नहीं।
- मोटरस्पोर्ट की दुनिया में भारत की पहली एंट्री
सालों तक मोटरस्पोर्ट की दुनिया भारत के लिए बस किसी सपने जैसी थी। मोटरस्पोर्ट जगत की सबसे चर्चित एफ-1 (फॉर्मूला वन) कार रेस में भारत का नामोनिशान दूर-दूर तक नहीं था। कोई भी भारतीय इस खेल में रफ्तार भरता नजर नहीं आया था..लेकिन 2005 में भारत के नारायण कार्तिकेयन ने इस कहानी को बदल डाला। उन्होंने जॉर्डन फॉर्मूला वन टीम के साथ करार किया और वो एफ-1 ट्रैक पर उतरने वाले पहले भारतीय बन गए। ये विश्व मोटरस्पोर्ट इतिहास में पहला मौका था जब कोई भारतीय एफ-1 ट्रैक पर रफ्तार भरता देखा गया।
- गोल्डन बॉय का कमाल
भारत ने ओलंपिक इतिहास में सिर्फ टीम गेम (हॉकी) में गोल्ड मेडल जीता था। सालों तक भारत ओलंपिक खेलों में हिस्सा लेता रहा, लेकिन भारत का कोई भी खिलाड़ी इस महामंच पर व्यक्तिगत गोल्ड मेडल जीतने में सफल नहीं हो पाया। ये मौका आया 2008 के बीजिंग ओलंपिक में जब भारतीय निशानेबाज अभिनव बिंद्रा ने 10 मीटर एयर रायफल में शीर्ष स्थान हासिल किया और वो ओलंपिक में व्यक्तिगत स्वर्ण पदक हासिल करने वाले पहले भारतीय बन गए। आज भी वो ऐसा करने वाले एकमात्र खिलाड़ी हैं।
- एक और बड़ा आयोजन
1951 के एशियन गेम्स के बाद भारत ने 1982 में भी एशियन गेम्स की मेजबानी की थी, लेकिन अब भी कॉमनवेल्थ गेम्स या ओलंपिक खेलों जैसे बड़े खेल आयोजनों से भारत दूर था। आखिरकार 2010 में वो मौका आया जब नई दिल्ली में कॉमनवेल्थ गेम्स का आयोजन हुआ। भारत ने पहली बार इतने बड़े खेल आयोजन की सफलतापूर्वक मेजबानी की, जिसमें 71 देशों के 6,089 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया। भारत ने उन गेम्स में 101 पदकों के साथ दूसरा स्थान हासिल किया। शीर्ष पर ऑस्ट्रेलिया 177 पदकों के साथ रहा।
- जब नम हुईं करोड़ों आंखें
ये किसी खेल में भारतीय खिलाड़ी की सफलता या फिर कोई बड़ा आयोजन नहीं था, लेकिन ये वो पल था जब पूरा भारत एक खिलाड़ी की विदाई से जुड़ गया था। जी हां, हम बात कर रहे हैं नवंबर 2013 की जब महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने क्रिकेट को अलविदा कह दिया। तकरीबन 24 सालों तक भारतीय क्रिकेट को सेवाएं देने वाले इस खिलाड़ी से पूरा भारत जुड़ चुका था और यही वजह थी कि जब उन्होंने विदाई ली तो उस दिन पूरे भारत में सिर्फ उन्हीं की चर्चा थी। अखबारों की सुर्खियों से लेकर टीवी चैनलों तक, हर जगह बस सचिन..सचिन का ही नजारा था। वो एक दौर का अंत था।
- 2016 ओलंपिक की वो यादगार सफलता
साल 2000 के ओलंपिक में वेटलिफ्टर कर्णम मलेश्वरी कांस्य पदक जीतकर ओलंपिक इतिहास में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनी थीं। इसके बाद 2012 के लंदन ओलंपिक में बैडमिंटन में साइना नेहवाल और मुक्केबाजी में मैरी कॉम ने कांस्य पदक जीतकर भारतीय महिलाओं का दम दिखाया। हालांकि भारतीय महिला अब भी ओलंपिक में कांस्य से आगे नहीं बढ़ पाई थीं। फिर आया 2016 का रियो ओलंपिक आया, जहां भारत की बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधू ने महिला सिंगल्स के फाइनल तक का सफर तय किया। वो ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला बैडमिंटन खिलाड़ी बनीं थीं। उस मैच में तो उन्हें हार मिली लेकिन वो ओलंपिक इतिहास में रजत पदक हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला बन गईं।