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    Israel-Iran War: जब मोसाद ने 20 साल तक किया कत्लेआम, चुन-चुनकर 'म्यूनिख ओलंपिक नरसंहार' के कातिलों को मारा

    इजरायल की खूफिया एजेंसी 'मोसाद' काफी खतरनाक मानी जाती है। ईरान के साथ संघर्ष में इस खूफिया एजेंसी का अहम रोल माना जा रहा है। इतिहास के पन्ने अगर पलटें तो एक ऐसा ऑपरेशन याद आता है, जब मोसाद ने 'म्यूनिख नरसंहार' के कातिलों को 20 साल तक ढूंढ-ढूंढकर मारा था। 

    By Umesh Kumar Edited By: Umesh Kumar Updated: Sun, 22 Jun 2025 04:00 PM (IST)
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    इजरायल और ईरान के बीच संघर्ष जारी।

    उमेश कुमार, नई दिल्ली। इजरायल और ईरान के बीच संघर्ष को 9 दिन हो चुके हैं। इजरायल की खूफिया एजेंसी 'मोसाद' की भूमिका काफी अहम है। दोनों देशों के बीच जारी संघर्ष में मोसाद फिर चर्चा में है। मोसाद कई तरह के मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम दे चुका है।

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    इतिहास के पन्नों में मोसाद का एक ऐसा ही खुफिया ऑपरेशन दर्ज है जिसे 'रैथ ऑफ गॉड' के नाम से जाना जाता है। यह फिलिस्तानी आतंकवादियों के खिलाफ चलाया गया था। आज हम आपको बताते हैं उस ऑरेशन की पूरी कहानी के बारे में।

    म्यूनिख ओलंपिक से हुई शुरुआत

    कहानी की शुरुआत होती है, जर्मनी के म्यूनिख शहर में ग्रीष्मकालीन ओलंपिक 1972 से। म्यूनिख शहर में खेलों का महाकुंभ 10 दिनों तक अच्छी तरह से चला। खिलाड़ियों में जोश था और दर्शक भी अपनी टीमों के प्रदर्शन को लेकर उत्साहित थे। मगर, 5 सितंबर को अचानक सब कुछ बदल गया। सुबह के चार बजे के बाद एक ऐसा हमला शुरू हुआ, जिसने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया।

    ट्रैकसूट पहने 8 फिलिस्तीनी आतंकवादी म्यूनिख के ओलंपिक विलेज की दीवार फांदकर इजरायल के कैंप में घुस गए। ब्लैक सेप्टेंबर नामक समूह के सदस्य (जो फिलिस्तीन मुक्ति संगठन से जुड़े हुए थे) अपने साथ डफेल बैग में कलाश्निकोव राइफलें और ग्रेनेड ले गए।

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    म्यूनिख नरहसंहार में मारे गए एथलीटों को श्रद्धांजलि देते लोग। फोटो- IOC

    इजरायली एथलीटों की कर दी गई थी हत्या

    इजरायल के कैंप में मौजूद कुश्ती के कोच मोशे वेनबर्ग और वेटलिफ्टर योसेफ रोमानो ने बंदुकधारियों को रोकने का प्रयास किया। हाथापाई के दौरान आतंकवादियों ने दोनों की गोली मारकर हत्या कर दी। इसके बाद वहां मौजूद अन्य 9 एथलीटों को बंधक बना लिया।

    दरअसल, फिलिस्तीनी अंतकवादियों का मिशन इजरायली एथलीटों को बंधक बनाना और 236 कैदियों की रिहाई की मांग करना था। इसमें 234 कैदी इजरायल की जेलों में बंद थे। साथ ही पश्चिमी जर्मनी के बाडेर-मीनहोफ आतंकवादी समूह के दो नेता भी शामिल थे।

    बंधक बनाने की सूचना जब बाहर निकली तो टेलीविजन नेटवर्कों ने इस घटना को कवर करना शुरू किया। लाइव प्रसारण ने हमले के भयावह पहलू को सामने ला दिया। यह पहली बार था जब किसी आतंकवादी घटना का लाइव प्रसारण विश्व के तमाम देशों में हो रहा था।

    टीवी पर हुआ लाइव प्रसारण

    ओलंपिक प्रेस सेंटर में 11 मॉनिटर चल रहे थे, जिसमें से तीन एथलेटिक इवेंट दिखा रहे थे। वहीं, 3 अन्य मॉनिटर उस बिल्डिंग पर लगे थे, जहां इजरायलियों को बंधक बनाया गया था। दो इजरायली एथलीटों की हत्या करने के बाद आतंकवादियों ने बंधकों को चारा बनाकर कैंप की बिल्डिंग से सुरक्षित बाहर निकलने के लिए विमान की मांग की।

    'म्यूनिख 1972: ट्रेजडी, टेरर एंड ट्रायम्फ एट द ओलंपिक गेम्स' किताब के लेखक डेविड क्ले लार्ज ने लिखा कि जब 10 दिनों तक ओलंपिक शांति पूर्वक चल चुका था तो सुरक्षा अधिकारियों ने अपनी चौकसी कम कर दी थी। इसके चलते आतंकवादियों ने पहले से ही स्थान की टोह ले ली थी और वे आसानी से उस इमारत में घुस गए, जिसमें इजरायली एथलीट रहते थे।

    लार्ज ने किताब में लिखा कि बंदूकधारियों और उनके बंधकों को हेलीकॉप्टरों द्वारा म्यूनिख के बाहर फुरस्टेनफेल्डब्रुक हवाई अड्डे पर ले जाया गया। जहां, एक विमान आतंकवादियों का इंतजार कर रहा था। यहां कमांडों और अतंकवादियों के बीच गोलीबारी हुई है, जिसमें पांच आतंकवादियों को मार गिराया गया।

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    म्यूनिख ओलंपिक। फोटो- IOC

    'म्यूनिख नरसंहार' के नाम से किया जाता है याद

    एथलीटों को बंधक बनाने के करीब 20 घंटे बाद बंधक बनाने वालों 5 आतंकियों की मौत हो चुकी थी। बाकी बचे 3 आतंकवादियों ने बचे हुए 9 बंधकों की बेहरहमी से हत्या कर दी। साथ ही एक आतंकवादी ने ग्रेनेड से हमला करके एक हेलीकॉप्टर को उड़ा दिया। हमले में पश्चिमी जर्मनी के एक पुलिसकर्मी की भी मौत हो गई। ब्लैक सेप्टेंबर के तीन सदस्य भाग निकले, लेकिन जल्द ही उन्हें पकड़ लिया गया।

    1972 म्यूनिख ओलंपिक में हुए आतंकी हमले को 'म्यूनिख नरसंहार' के रूप में जाना जाता है। म्यूनिख नरसंहार के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दीर्घकालिक परिणाम हुए। पश्चिम के देशों ने आतंकवाद के खतरे के प्रति अन्य देशों को जागरूक किया। साथ ही इजरायल ने 'ऑपरेशन रैथ ऑफ गॉड' (Operation Wrath of God) चलाकर लगभग 20 साल तक म्यूनिख हमले के दोषियों को ढूंढ-ढूंढकर मार डाला।

    मोसाद को दी गई कातिलों को सजा देने की जिम्मेदारी

    तत्कालीन इजरायल की प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर ने अपने देश की संसद में 'आतंकवाद के खिलाफ युद्ध' का एलान किया था। उन्होंने इस हमले के जिम्मेदार लोगों की पहचान के लिए एक गुप्त कमेटी बनाई। इसके बाद खुफिया एजेंसियों में से एक 'मोसाद' को इन लोगों की हत्या करने की जिम्मेदारी दी गई थी। 'रैथ ऑफ गॉड' ऑपरेशन के दौरान इस हमले की जिम्मेदारी लेने वाले ब्लैक सेप्टेंबर ग्रुप के सदस्यों को पूरे यूरोप और मध्य पूर्व देशों में खोज-खोज कर मारा।

    डिस्क्लेमर- यह स्टोरी 'म्यूनिख 1972: ट्रेजडी, टेरर एंड ट्रायम्फ एट द ओलंपिक गेम्स' किताब और NPR साइट की मदद से तैयार की गई है। इस स्टोरी के माध्यम से जागरण ने केवल सूचना देना का काम किया है। किसी भी प्रकार की असुविधा होने पर पाठक अपने विवेक का इस्तेमाल करें।