सचिन नाग की जन्मशताब्दी पर खेल अवार्ड मिलने की उम्मीद, 1951 एशियन गेम्स में जीता था गोल्ड
1951 में आयोजित एशियन गेम्स में पहला स्वर्ण पदक जीतने वाले तैराक सचिन नाग के परिजनों को 69 वर्षो से सम्मान मिलने का इंतजार आज भी है।
अनिल भारद्वाज, गुरुग्राम। भारत में पहली बार 1951 में आयोजित एशियन गेम्स में पहला स्वर्ण पदक जीतने वाले तैराक सचिन नाग के परिजनों को 69 वर्षो से सम्मान मिलने का इंतजार आज भी है। पांच जुलाई 1920 उत्तर प्रदेश के शहर बनारस में जन्में सचिन ने नई दिल्ली में खेले गए एशियाई गेम्स में तैराकी के 100 मीटर फ्री स्टाइल स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता, तो खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उनके गले में स्वर्ण पदक डाला था।
एशियन गेम्स में किसी भारतीय तैराक को इसके बाद आज तक स्वर्ण पदक हासिल करने का गौरव हासिल नहीं हुआ। उसी हीरो को सम्मान दिलाने के लिए आज तक परिवार संघर्ष कर रहा है। सचिन के बेटे अशोक नाग का कहना है कि उनके पिता की 1987 में मृत्यु हो चुकी है। उसी के बाद पिता को सम्मान दिलाने के लिए संघर्ष शुरू किया। दुख है कि जिसने देश के लिए स्वर्ण पदक जीता उसे सम्मान नहीं मिला।
अशोक का कहना है कि 2009 में खेल मंत्रालय और 2012 में खेल फेडरेशन ने उनके पिता का नाम अर्जुन अवार्ड के लिए भेजा था। इसके बावजूद उन्हें यह नहीं मिला। वहीं गुरुग्राम खेल विभाग में तैराकी प्रशिक्षक पैरा अंतरराष्ट्रीय तैराक अर्जुन अवार्डी प्रशांत कर्माकर ने 2019 में सचिन नाग का नाम लाइफ टाइम ध्यानचंद अवार्ड के लिए प्रस्तावित किया और अब 2020 के लिए एक बार फिर इसके लिए उनका नाम प्रस्तावित किया जा रहा है। प्रशांत का कहना है कि सचिन सम्मान के हकदार हैं। अगर उन्हें सम्मान नहीं मिला तो यह ऐसे ही होगा जैसे किसी स्वतंत्रता सेनानी की कुर्बानी को भुला देना है।
सचिन नाग की उपलब्धियां
- 1951 एशियन गेम्स में 100 मीटर फ्रीस्टाइल में स्वर्ण पदक
- 1951 एशियन गेम्स में 400 मीटर फ्री स्टाइल रिले स्पर्धा में कांस्य पदक
- 1951 एशियन गेसम् में 300 मीटर मेडले रिले स्पर्धा में कांस्य पदक
- 1948, 1952 के ओलंपिक में वाटरपोलो टीम के सदस्य रहे
- 1948 के लंदन ओलंपिक में चिली के खिलाफ मिली एकमात्र 7-4 से जीत में नाग के चार गोल थे