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    जागरण संपादकीय: भारत–चीन संबंध, गलवन झड़प के बाद राजनाथ सिंह की पहली यात्रा

    Updated: Fri, 20 Jun 2025 11:20 PM (IST)

    चीन भी बदले हालत में भारत से संबंध सुधारना चाहता है। वह यह भी जान रहा है कि ट्रंप पाकिस्तान को उसके पाले से निकालना चाहते हैं। पता नहीं ट्रंप ऐसा कर पाएंगे या नहीं, लेकिन यह अच्छा है कि रूस को भी ट्रंप का रवैया नहीं भा रहा है।

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    राजनाथ सिंह का चीन दौरा

    रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के रक्षा मंत्रियों की बैठक के लिए प्रस्तावित चीन यात्रा इसलिए अधिक महत्वपूर्ण है कि यह चीन के साथ संबंध सुधारने के साथ वैश्विक समीकरणों में बदलाव का जरिया भी बन सकती है। इसलिए बन सकती है कि एक तो अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की मनमानी टैरिफ नीति से अनेक देश आजिज आ गए हैं और दूसरे, आतंकवाद के पोषक एवं पहलगाम में आतंकी हमले के जिम्मेदार पाकिस्तान के खिलाफ भारत की साहसिक सैन्य कार्रवाई पर उनका रवैया बहुत ही विचित्र और पाकिस्तानपरस्ती वाला रहा।

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    इसका ताजा प्रमाण ट्रंप का जिहादी सोच वाले पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष आसिम मुनीर से मुलाकात करना रहा। मुनीर पाकिस्तान के शासनाध्यक्ष नहीं हैं, पर सब जानते हैं कि वही वहां के सबसे ताकतवर व्यक्ति हैं। ट्रंप ने इस जिहादी जनरल की प्रशंसा के पुल ही नहीं बांधे, ऐसे भी संकेत दिए कि वे पाकिस्तान की धोखेबाजी और उसके आतंकी चेहरे की जानबूझकर अनदेखी कर ईरान के खिलाफ उसका इस्तेमाल करना चाहते हैं, जो इन दिनों इजरायल के निशाने पर है। अमेरिका ने पहले भी अपने संकीर्ण हितों के लिए पाकिस्तान को गले लगाया है, लेकिन अब ट्रंप का ऐसा करना भारत के लिए चिंता की बात है। हालांकि बीते दिनों प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रंप से फोन पर बात करते समय कश्मीर और आपरेशन सिंदूर पर उन्हें खरी-खरी सुनाई, लेकिन लगता नहीं कि वह पाकिस्तानपरस्ती का परित्याग करेंगे। ऐसे में भारत के लिए उनसे सतर्क होना और चीन जैसे देशों के इरादों को टटोलना आवश्यक है।

    चीन भी बदले हालत में भारत से संबंध सुधारना चाहता है। वह यह भी जान रहा है कि ट्रंप पाकिस्तान को उसके पाले से निकालना चाहते हैं। पता नहीं ट्रंप ऐसा कर पाएंगे या नहीं, लेकिन यह अच्छा है कि रूस को भी ट्रंप का रवैया नहीं भा रहा है। रूस से भारत के अच्छे संबंध हैं और वे अमेरिका और यूरोप की आपत्ति के बाद भी कायम हैं।

     

    रूस शंघाई सहयोग संगठन का महत्वपूर्ण सदस्य है। भारत 2001 में स्थापित इस संगठन का सदस्य बाद में बना और फिर पाकिस्तान जैसे देश भी उससे जुड़े। यह उल्लेखनीय है कि गलवन में चीनी सेना से खूनी झड़प के बाद भारतीय रक्षा मंत्री पहली बार चीन जा रहे हैं। वहां उनकी द्विपक्षीय मुलाकात अन्य देशों के रक्षा मंत्रियों के साथ चीनी रक्षा मंत्री से भी हो सकती है। पिछले कुछ समय से भारत-चीन संबंध सुधरते दिख रहे हैं। भारतीय रक्षा मंत्री की चीन यात्रा सीमा विवाद सहित अन्य मुद्दों को भी सुलझाने की राह खोल सकती है, लेकिन भारत को उससे सतर्क भी रहना होगा। वह पाकिस्तान को भारत के खिलाफ इस्तेमाल करता है और सब जानते हैं कि पहलगाम आतंकी हमले पर उसका रवैया भारत विरोधी ही था।