विचार: तेल प्रतिबंध की चुनौती में अवसर, ऊर्जा आत्मनिर्भरता का नेतृत्वकर्ता भी बन सकता है भारत
अमेरिका द्वारा रूसी तेल कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने से भारत के लिए ऊर्जा संकट बढ़ गया है। भारत, जो अपनी तेल जरूरतों का एक बड़ा हिस्सा रूस से पूरा करता है, अब वैकल्पिक स्रोतों की तलाश में है। इन प्रतिबंधों से भारत के तेल आयात बिल में वृद्धि हो सकती है और महंगाई बढ़ने का खतरा है। भारत को अपनी ऊर्जा नीति में विविधता लाने और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने की आवश्यकता है।

सुरजीत सिंह गांधी। हाल में अमेरिका ने रूस की दो बड़ी तेल कंपनियों रोसनेफ्ट और लुकोइल पर प्रतिबंध लगाकर भारत का संकट बढ़ा दिया। इन प्रतिबंधों के तहत अब अगर कोई अंतरराष्ट्रीय बैंक इन रूसी कंपनियों के साथ तेल खरीद की रकम भेजता है या बीमा या फाइनेंस की सुविधा देता है तो अमेरिका उस पर जुर्माना लगा सकता है। इससे इन कंपनियों के साथ व्यापार करना अंतरराष्ट्रीय बैंकों के लिए जोखिमपूर्ण हो जाएगा।
इन तेल कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने का मुख्य उद्देश्य रूस की अर्थव्यवस्था पर दबाव डालना ही नहीं, बल्कि रूस द्वारा भारत और अन्य एशियाई देशों को सस्ते दामों पर दिए जा रहे तेल की आपूर्ति को बाधित करना भी है। अमेरिका इस वित्तीय दबाव के माध्यम से भारतीय तेल कंपनियों पर रणनीतिक और आर्थिक दबाव बनाने का प्रयास कर रहा है, जिससे वैश्विक ऊर्जा व्यापार, भू-राजनीति और भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को प्रभावित किया जा सके।
पिछले कुछ वर्षों में भारत और रूस के बीच तेल व्यापार बहुत तेजी से बढ़ा है। खासकर 2024 में भारत रूस से तेल आयात करने वाले प्रमुख देशों में शामिल हो गया। भारत अपनी कुल तेल जरूरतों का लगभग 36 प्रतिशत हिस्सा रूस से पूरा करने लगा। इनमें से करीब 60 प्रतिशत तेल रूसी कंपनियों रोसनेफ्ट और लुकोइल से ही आने लगा। रूस से सस्ता तेल मिलने से भारत को हर साल चार-पांच अरब डालर की बचत होती रही। यही कारण है कि भारत के लिए रूस रणनीतिक ऊर्जा सहयोगी बन गया।
अमेरिका द्वारा लगाए गए नए प्रतिबंधों ने इस साझेदारी को कठिन बनाने का काम किया है। पाबंदियों के बाद भारत की सबसे बड़ी निजी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज और सरकारी रिफाइनरी कंपनियां अब रूसी कच्चे तेल का आयात रोकने की तैयारी कर रही हैं।
भारत अपनी लगभग 85 प्रतिशत ऊर्जा जरूरतें आयात से पूरी करता है। ऐसे में अगर वैश्विक तेल बाजार में कोई संकट आता है, तो उसका सीधा असर हमारी अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। इंडियन क्रेडिट रेटिंग एजेंसी के अनुसार वैकल्पिक स्रोतों से तेल खरीदने पर भारत का तेल आयात बिल लगभग दो प्रतिशत बढ़ जाएगा। तेल की कीमतों के बढ़ने का असर पेट्रोल, डीजल के मूल्यों के साथ ट्रांसपोर्ट पर भी पड़ेगा। इसका असर महंगाई और उत्पादन लागत में वृद्धि के रूप में भी पड़ सकता है।
आने वाले समय में भारत को इन चुनौतियों से निपटने के लिए अपनी ऊर्जा नीति में ज्यादा लचीलापन और विविधता लाने की आवश्यकता है, ताकि किसी एक देश या कंपनी पर निर्भरता कम रहे और देश की ऊर्जा आपूर्ति सुरक्षित बनी रहे। इन चुनौतियों को अवसर में बदलने और आयात स्रोतों में विविधता लाने के लिए भारत को ऊर्जा क्षेत्र में अमेरिका तथा रूस के बीच संतुलन बनाकर मध्यस्थ और रणनीतिक खिलाड़ी के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत करना होगा। भारत को रणनीतिक और आर्थिक हितों में संतुलत बनाने के लिए रूस से सुरक्षा और रणनीतिक सहयोग और अमेरिका से व्यापार और तेल खरीद संबंध बनाना वर्तमान हालात में जरूरी हो गया है।
अपनी ऊर्जा सुरक्षा में विविधता लाने के लिए भारत को रूस के अलावा सऊदी अरब, यूएई, अमेरिका, अफ्रीका आदि से तेल आयात का मार्ग अपनाना होगा। भारत को अपनी ऊर्जा आपूर्ति शृंखला में लचीलापन बढ़ाने के लिए निजी कंपनियों के साथ मिलकर वैकल्पिक स्रोतों की तलाश पर अधिक ध्यान देना होगा। यद्यपि भारत ने आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए लगभग पांच करोड़ बैरल तेल का स्टाक बना रखा है।
इसके बावजूद ओएनजीसी, आइओसी जैसी कंपनियों को तेल और गैस की नई खोजों और उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान देना होगा, जिससे महंगे तेल से भारत के विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव को कम किया जा सके। वैश्विक ऊर्जा बाजार में अन्य देशों के साथ गठबंधन और प्रतिस्पर्धा का लाभ लेने की दिशा में आगे बढ़ते हुए भारत को अपने घरेलू ऊर्जा उत्पादन को बढ़ाने के साथ-साथ नवीकरणीय ऊर्जा और ऊर्जा सुरक्षा के भंडार पर अधिक निवेश और प्रोत्साहन की दिशा में ध्यान देना होगा।
इसी के साथ वैकल्पिक ऊर्जा के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करना होगा। इसके लिए सौर, पवन, हाइड्रोजन जैसे ऊर्जा स्रोतों में निवेश बढ़ाकर हरित और स्वदेशी ऊर्जा पर निर्भरता को बढ़ाना होगा। महंगे तेल से बढ़ने वाली महंगाई के प्रभाव को कम करने के लिए सरकार को ईंधन सब्सिडी पर भी विचार करना होगा। महंगे तेल से महंगाई को नियंत्रित करने के लिए ऊर्जा दक्षता सुधार पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
अमेरिकी प्रतिबंधों ने भारत के सामने एक कठिन स्थिति बना दी है, लेकिन यही समय है जब भारत साहसिक निर्णय लेकर अपनी ऊर्जा नीति को और मजबूत बना सकता है।
यदि भारत आयात पर निर्भरता घटाने, नवीकरणीय ऊर्जा बढ़ाने और रणनीतिक संतुलन बनाए रखने में सफल होता है, तो यह संकट एक नए आत्मनिर्भर भारत की नींव बन सकता है। भारत केवल सस्ता तेल खोजने वाला देश न रहे, बल्कि ऊर्जा नीति में नवाचार और आत्मनिर्भरता का नेतृत्वकर्ता बने। इसके लिए वैकल्पिक तेल स्रोतों की खोज और लंबी अवधि के समझौते, घरेलू उत्पादन और नवीनीकरण ऊर्जा में निवेश, अमेरिकी और रूसी दबाव के बीच संतुलित विदेश नीति ऊर्जा सुरक्षा को बनाए रखने का उत्तम मार्ग है।
(लेखक अर्थशास्त्र के प्राध्यापक हैं)

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